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बीकानेर: एक नजर

By SHYAM NARAYAN RANGA - Thursday, January 28, 2021 No Comments

Junagarh Fort, Bikaner
बीकानेर राजस्थान राज्य का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक ‘जंगल धर बादशाह’ कहलाते हैं। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था।


बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि ७३ डिग्री पूर्वी अक्षांश २८.०१ उत्तरी देशंतार पर स्थित है। समुद्र तल से ऊँचाई सामान्य रूप से २४३मीटर अथवा ७९७ फीट है

बीकानेर का इतिहास

बीकानेर एक अलमस्त शहर है, अलमस्त इसलिए कि यहाँ के लोग बेफिक्र के साथ अपना जीवन यापन करते है। बीकानेर नगर की स्थापना के विषय मे दो कहानियाँ लोक में प्रचलित है। एक तो यह कि, नापा साँखला जो कि बीकाजी के मामा थे उन्होंने राव जोधा से कहा कि आपने भले ही राव सांतल जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनाया किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक सहायता सहित सारुँडे का पट्टा दे दीजिये। वह वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा। जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली। और पचास सैनिकों सहित पट्टा नापा को दे दिया। बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नाथा जी और नन्दा जी ये पाँच सरदार जो जोधा के सगे भाई थे साथ ही नापा साँखला, बेला पडिहार, लाला लखन सिंह बैद, चैथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत, विक्रम सिंह राजपुरोहित, सालू जी राठी आदि कई लोगों ने राव बीका जी का साथ दिया। इन सरदारों के साथ राव बीका जी ने बीकानेर की स्थापना की। सालू जी राठी जोधपुर के ओंसिया गाँव के निवासी थे। वे अपने साथ अपने आराधय देव मरूनायक या मूलनायक की मूर्ति साथ लायें आज भी उनके वंशज बीकानेर में साले की होली पर होलिका दहन करते है। साले का अर्थ बहन के भाई के रूप में न होकर सालू जी के अपभ्रंश के रूप में होता है।

बीकानेर की स्थापना के पीछे दूसरी कहानी ये हैं कि एक दिन राव जोधा दरबार में बैठे थे बीकाजी दरबार में देर से आये तथा प्रणाम कर अपने चाचा कांधल से कान में धीरे धीरे बात करने लगे यह देख कर जोधा ने व्यँग्य में कहा “मालूम होता है कि चाचा-भतीजा किसी नवीन राज्य को विजित करने की योजना बना रहे हैं। इस पर बीका और कांधल ने कहाँ कि यदि आप की  कृपा हो तो यही होगा। और इसी के साथ चाचा भतीजा दोनों दरबार से उठ के चले आये तथा दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। इस संबंध में एक लोक दोहा भी प्रचलित है-

पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर

थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर


इस प्रकार एक ताने की प्रतिक्रिया से बीकानेर की स्थापना हुई। वैसे ये क्षेत्र तब भी निर्जन नहीं था इस क्षेत्र में जाट जाति के कई गाँव थे। जिनका स्वयं का शासन चलता था। बीका ने यहाँ एक योगी का रूप धरा और राजा के दरबार मे पेश हुआ और करतब दिखाए राजा प्रसन्न हो गया। बीका ने शर्त रखी कि अगला काम अगर महाराज कर दे तो मैं उनका ताउम्र दास बनकर रहूंगा अन्यथा उनको अपना राज्य मुझे सौंपना पड़ेगा, राजा ने यह स्वीकार कर लिया। बीका ने पैर के अंगूठे से अपने माथे को छूकर कहा महाराज यह करके दिखाए। राजा यह न कर सका। शर्तवश राजा ने अपना राज्य बीका को सुपुर्द कर दिया और कहा कि जब इतना बड़ा इनाम मिल रहा है तो इसकी निशानी भी रहनी चाहिए अतः आज के बाद तुम्हारा और तुम्हारे वंशजों का राजतिलक जाट जाति करेगी और तुमने इस करतब में पैर के अंगूठे के इस्तेमाल किया है तो गोदारा गोत का जाट अपने पैर के अंगूठे से तुम्हारा राजतिलक करेगा। बीका ने स्वीकार कर लिया, आज तक यही होता आ रहा है, बीकानेर शासकों का तिलक गोदारा जाट अपने पैर के अंगूठे से करता है!


इस समय से पहले बीकानेर में रुनिया का बारह बास विख्यात थे जिनमे शेरेरा, हेमेरा, बदा बास, राजेरा, आसेरा, भोजेरा जेसे १२ गाँव शामिल थे जिनमे सारस्वत और गोदारों का वर्चस्व था। आदिकाल में इस जगह पर इनका ही राज्य था।


जिनमे सरस गद के राजा सरस जी महाराज और अन्य कई राजा राज्य करते थे। तदन्तर राव बीका जी ने बीकानेर नगर की स्थापना की।


बीकानेर के राजा

राव बीकाजी की मृत्यु के पश्च्यात राव नरा ने राज्य संभाला किन्तु उनकी एक वर्ष से कम में ही मृत्यु हो गयी। उसके बाद राव लूणकरण ने गद्दी संभाली। इसके बाद


राय सिंह (1573-1612)

कर्ण सिंह (1631-1669)

अनूप सिंह (1669-1698)

सरूपसिंह (1698-1700)

सुजान सिंह (1700-1736)

जोरावर सिंह (1736-1746)

गजसिंह (1746-1787)

राजसिंह (1787)

प्रताप सिंह (1787)

सुरत सिंह (1787-1828)

रतन सिंह (1828-1851)

सरदार सिंह (1851-1872)

डूंगरसिंह (1872-1887)

गंगासिंह (1887-1943)

सार्दुल सिंह (1943-1950)

करणीसिंह (1950-1988)

नरेंद्रसिंह (1988-वर्तमान)

यह सब बीकानेर के शाशक हुए।


 

बीकानेर का भूगोल

ऐतिहासिक बीकानेर राज्य के उत्तर में पंजाब का फिरोजपुर जिला, उत्तर-पूर्व में हिसार, उत्तर-पश्चिम में भावलपुर राज्य, दक्षिण में जोधपुर, दक्षिण-पूर्व में जयपुर और दक्षिण-पश्चिम में जैसलमेर राज्य, पूर्व में हिसार तथा लोहारु के परगने तथा पश्चिम में भावलपुर राज्य थे।


वर्तमान बीकानेर जिला राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है। यह २७ डिग्री ११ और २९ डिग्री ०३ उत्तर अक्षांश और ७१ डिग्री ५४ और ७४ डिग्री १२ पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल ३२,२०० वर्ग किलोमीटर है। बीकानेर के उत्तर में गंगानगर तथा फिरोजपुर, पश्चिम में जैसलमेर, पूर्व में नागौर एंव दक्षिण में जोधपुर स्थित है।


बीकानेर जिले के साथ पाकिस्तान से लगने वाली अन्तर्राष्ट्रीय सीमा की लंबाई 168 कि॰मी॰ है जोकि राजस्थान के राज्यों के साथ लगने वाली सबसे छोटी सीमा है।


बीकानेर की जलवायु

यहाँ की जलवायु सूखी, पंरतु अधिकतर अरोग्यप्रद है। गर्मी में अधिक गर्मी और सर्दी में अधिक सर्दी पडना यहाँ की विशेषता है। इसी कारण मई, जून और जुलाई मास में यहाँ लू (गर्म हवा) बहुत जोरों से चलती है, जिससे रेत के टीले उड़-उड़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर बन जाते हैं। उन दिनों सूर्य की धूप इतनी असह्महय हो जाती है कि यहाँ के निवासी दोपहर को घर से बाहर निकलते हुए भी भय खाते हैं। कभी-कभी गर्मी के बहुत बढ़ने पर अकाल मृत्यु भी हो जाती है। बहुधा लोग घरों के नीचे भाग में तहखाने बनवा लेते हैं, जो ठंडे रहते है और गर्मी की विशेषता होने पर वे उनमें चले जाते हैं। कड़ी भूमि की अपेक्षा रेत शीघ्रता से ठंड़ा हो जाता है। इसलिए गर्मी के दिनों में भी रात के समय यहाँ ठंडक रहती है। शीतकाल में यहाँ इतनी सर्दी पड़ती है कि पेड़ और पौधे बहुधा पाले के कारण नष्ट हो जाते है।


बीकानेर में रेगिस्तान की अधिकता होने के कारण कुएँ का बहुत अधिक महत्व है। जहाँ कहीं कुआँ खोदने की सुविधा हुई अथवा पानी जमा होने का स्थान मिला, आरंभ में वहाँ पर बस्ती बस गई। यही कारण है कि बीकानेर के अधिकांश स्थानों में नामों के साथ सर जुड़ा हुआ है, जैसे कोडमदेसर, नौरंगदेसर, लूणकरणसर आदि। इससे आशय यही है कि इस स्थान पर कुएं अथवा तालाब हैं। कुएं के महत्व का एक कारण और भी है कि पहले जब भी इस देश पर आक्रमण होता था, तो आक्रमणकारी कुओं के स्थानों पर अपना अधिकार जमाने का सर्व प्रथम प्रयत्न करते थे। यहाँ के अधिकतर कुएं ३०० या उससे फुट गहरे हैं। इसका जल बहुधा मीठा एंव स्वास्थ्यकर होता है।


वर्षा

जैसलमेर को छोड़कर राजपूताना के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा बीकानेर में सबसे कम वर्षा होती है। वर्षा के अभाव में नहरे कृषि सिंचाई का मुख्य स्रोत है। वर्तमान में कुल २३७१२ हेक्टेयर भूमि की सिंचाई नहरों द्वारा की जाती है।


कृषि

अधिकांश हिस्सा अनुपजाऊ एंव जलविहीन मरुभूमि का एक अंश है। जगह-जगह रेतीले टीलें हैं जो बहुत ऊँचे भी हैं। बीकानेर का दक्षिण-पश्चिम में मगरा नाम की पथरीली भूमि है जहाँ अच्छी वर्षा हो जाने पर किसी प्रकार पैदावार हो जाती है। उत्तर-पूर्व की भूमि का रंग कुछ पीलापन लिए हुए हैं तथा उपजाऊ है।


यहाँ अधिकांश भागों में खरीफ फसल होती है। ये मुख्यतरू बाजरा, मोठ, ज्वार,तिल और रुई है। रबी की फसल अर्थात गेंहु, जौ, सरसो, चना आदि केवल पूर्वी भाग तक ही सीमित है। नहर से सींची जानेवाली भूमि में अब गेंहु, मक्का, रुई, गन्ना इत्यादि पैदा होने लगे है।


खरीफ की फसल यहाँ प्रमुख गिनी जाती है। बाजरा यहाँ की मुख्य पैदावार है। यहाँ के प्रमुख फल तरबूज एवं ककड़ी हैं। यहाँ तरबूज की अच्छी कि बहुतायत से होती है। अब नहरों के आ जाने के कारण नारंगी, नींबू, अनार, अमरुद, आदि फल भी पैदा होने लगे हैं। शाकों में मूली, गाजर, प्याज आदि सरलता से उत्पन्न किए जाते है।


जंगल

बीकानेर में कोई सधन जंगल नहीं है और जल की कमी के कारण पेड़ भी यहाँ कम है। साधारण तथा यहाँ श्खेजड़ा (शमी)श् के वृक्ष बहुतायत में हैं। उसकी फलियाँ, छाल तथा पत्ते चैपाये खाते हैं। नीम, शीशम और पीपल के पेड़ भी यहाँ मिलते हैं। रेत के टीलों पर बबूल के पेड़ पाए जाते हैं।


थोड़ी सी वर्षा हो जाने पर यहाँ अच्छी घास हो जाती है। इन घासों में प्रधानतरू श्भूरटश् नाम की चिपकने वाली घास बहुतायत में उत्पन्न होती है।


पशु-पक्षी

यहाँ पहाड़ व जंगल न होने के कारण शेर, चीते आदि भयंकर जंतु तो नहीं पर जरख, नीलगाय आदि प्रायरू मिल जाते है। घास अच्छी होती है, जिससे गाय, बैल, भैंस, घोड़े, ऊँट, भेड़, बकरी आदि चैपाया जानवर सब जगह अधिकता से पाले जाते हैं। ऊँट यहाँ बड़े काम का जानवर है तथा इसे सवारी, बोझा ढोने, जल लाने, हल चलाने आदि में उपयोग किया जाता है। पक्षियों में तीतर, बटेर, बटबड़, तिलोर, आदि पाए जाते हैं।


धर्म

राज्य में हिंदु एंव जैन धर्म को मानने वाले लोग की संख्या सबसे अधिक है। सिख और इस्लाम धर्म को मानने वाले भी अच्छी संख्या में है। यहाँ ईसाई एवं पारसी धर्म के अनुयायी बहुत कम हैं।


हिंदुओं में वैष्णवों की संख्या अधिक है। जैन धर्म में श्वेताबर, दिगंबर और थानकवासी (ढूंढिया) आदि भेद हैं, जिनमें थानकवासियों की संख्या अधिक है। मुसलमानों में सुन्नियों की संख्या अधिक है। मुसलमानों में अधिकांश राजपूतों के वंशज हैं, जो मुसलमान हो गए। उनके यहाँ अब तक कई हिंदु रीति-रिवाज प्रचलित हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ अलखगिरी नाम का नवीन मत भी प्रचलित है तथा जसनाथी नाम का दूसरा मत भी हिंदुओं में विद्यमान है।


बीकानेर की जातियां: बीकानेर में मुख्यतः राजपूत, जाट, चारण, बिश्नोई, मेघवाल, भील, सुथार, बनिया, स्वामी, पुष्करणा ब्राह्मण सहित मुस्लिम जाती के लोग निवास करते हैं।

राजनीति

बीकानेर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र

बीकानेर राजनीति के लिहाज से भी महत्वपूर्ण भुमिका निभाता है। राजस्थान के प्रथम नेता-प्रतिपक्ष जसवन्तसिहजी बीकानेर के ही थे। एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है और यहाँ से वर्तमान साँसद अर्जुन राम मेघवाल हैं जो भारतीय जनता पार्टी से संबद्ध हैं। बीकानेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं। बीकानेर के राजपरिवार के महाराजा करणीसिंह जी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में बीकानेर के सबसे लंबे समय तक सांसद रहे हैं। बाॅलीवुड अभिनेता धर्मेन्द्र और कद्दावर नेता बलराम जाखड ने भी बीकानेर के सांसद के रूप में भारत की संसद में प्रतिनिधित्व किया है। बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में निम्नलिखित विधानसभा क्षेत्र सम्मिलित हैं: 

खाजूवाला

बीकानेर पश्चिम

बीकानेर पूर्व

कोलायत

लूणकरनसर

डूंगरगढ़

नोखा

बीकानेर की संस्कृति

पोशाक

शहरों में पुरुषों की पोशाक बहुधा लंबा अंगरखा या कोट, धोती और पगड़ी है। मुसलमान लोग बहुधा पाजामा, कुरता और पगड़ी, साफा या टोपी पहनते हैं। संपन्न व्यक्ति अपनी पगड़ी का विशेष रूप से ध्यान रखते हैं, परंतु धीरे-धीरे अब पगड़ी के स्थान पर साफे या टोपी का प्रचार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण लोग अधिकतर मोटे कपड़े की धोती, बगलबंदी और फेंटा काम में लाते हैं। स्रियो की पोशाक लहंगा, चोली और दुपट्टा है। मुसलमान औरतों की पोशाक चुस्त पाजामा, लम्बा कुरता और दुपट्टा है उनमें से कई तिलक भी पहनती है। 


भाषा

यहाँ के अधिकांश लोगों की भाषा मारवाड़ी है, जो राजपूताने में बोली जानेवाली भाषाओं में मुख्य है। यहाँ उसके भेद थली, बागड़ी तथा शेखावटी की भाषाएं हैं। उत्तरी भाग के लोग मिश्रित पंजाबी अथवा जाटों की भाषा बोलते हैं। यहाँ की लिपि नागरी है, जो बहुधा घसीट रूप में लिखी जाती है। राजकीय दफ्तरों तथा कर्यालयों में अंग्रेजी एवं हिन्दी का प्रचार है।


दस्तकारी

भेड़ो की अधिकता के कारण यहाँ ऊन बहुत होता है, जिसके कबंल, लोईयाँ आदि ऊनी समान बहुत अच्छे बनते है। यहाँ के गलीचे एवं दरियाँ भी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त हाथी दाँत की चूड़ियाँ, लाख की चूड़ियाँ तथा लाख से रंगी हुई लकड़ी के खिलौने तथा पलंग के पाये, सोने-चाँदी के जेवर, ऊँट के चमड़े के बने हुए सुनहरी काम के तरह-तरह के सुन्दर कुप्पे, ऊँटो की काठियाँ, लाल मिट्टी के बर्त्तन आदि यहाँ बहुत अच्छे बनाए जाते हैं। बीकानेर शहर में बाहर से आने वाली शक्कर से बहुत सुन्दर और स्वच्छ मिश्री तैयार की जाती है जो दूर-दूर तक भेजी जाती है।


साहित्य

साहित्य की दृष्टि से बीकानेर का प्राचीन राजस्थानी साहित्य ज्यादातर चारण, संत और जैनों द्वारा लिखा गया था। चारण राजा के आश्रित थे तथा डिंगल शैली तथा भाषा में अपनी बात कहते थे। बीकानेर के संत लोक शैली में लिखतें थे। बीकानेर का लोक साहित्य भी काफी महत्वपूर्ण है। राजस्थानी साहित्य के विकास में बीकनेर के राजाओं का भी योगदान रहा है उनके द्वारा साहित्यकारों को आश्रय मिलता रहा था। राजपरिवार के कई सदस्यों ने खुद भी साहित्य में जौहर दिखलायें। राव बीकाजी ने माधू लाल चारण को खारी गाँव दान में दिया था। बारहठ चैहथ बीकाजी के समकलीन प्रसिद्ध चारण कवि थे। इसी प्रकार बीकाने के चारण कवियों ने बिठू सूजो का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उनका काव्य ‘राव जैतसी के छंद‘ डिंगल साहित्य में उँचा स्थान रखती है। बीकानेर के राज रायसिंह ने भी ग्रंथ लिखे थे उनके द्वारा ज्योतिष रतन माला नामक ग्रंथ की राजस्थानी में टीका लिखी थी। रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज राठौड राजस्थानी के सिरमौर कवि थे वे अकबर के दरबार में भी रहे थे वेलि क्रिसन रुक्मणी री नामक रचना लिखी जो राजस्थानी की सर्वकालिक श्रेष्ठतम रचना मानी जाती है। बीकानेर के जैन कवि उदयचंद ने बीकानेर गजल (नगर वर्णन को गजल कहा गया है)रचकर नाम कमाया था। वे महाराजा सुजान सिंह की तारीफ करते थे।


ज्योतिषियों का गढ़

बीकानेर ज्योतिषियों का गढ़ है। यहाँ पूर्व राजघराने के राजगुरू गोस्वामी परिवार में अनेक विख्यात एवं प्रकांड ज्येातिषी एवं कर्मकांडी विद्वान हुए। ज्योतिष के क्षेत्र में दिवंगत पंडित श्री श्रीगोपालजी गोस्वामी का नाम देश-विदेश में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। ज्योतिष और हस्तरेखा के साथ तंत्र, संस्कृत और राजस्थानी साहित्य के क्षेत्र में भी श्रीगोपालजी अग्रणी विशेषज्ञों में शुमार किए जाते थे। पंडित बाबूलालजी शास्त्री, के जमाने में बीकानेर में ज्योतिष विद्या ने नई ऊंचाइयों को देखा। इसके बाद हर्षा महाराज, मम्मू महाराज, देव किराडू, अशोक थानवी, प्रेम शंकर शर्मा, अविनाश व्यास जैसे कृष्णामूर्ति पद्धति के प्रकाण्ड विद्वानों ने दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई और गुजरात में अपने ज्ञान का लोहा मनवाया। इसके अलावा अच्चा महाराज, व्योमकेश व्यास और लोकनाथ व्यास जैसे लोगों ने ज्योतिष में एक फक्कड़ाना अंदाज रखा। संभ्रांतता से जुडे इस व्यवसाय में इन लोगों ने औघड़ की भूमिका का निर्वहन किया है। नई पीढ़ी के ये ज्योतिषी अब पुराने पड़ने लगे हैं। अधिक कुण्डलियाँ भी नहीं देखते और नई पीढ़ी में भी अधिक ज्ञान वाले लोगों को एकान्तिक अभाव नजर आता है।


तांत्रिकों का स्थान

बीकानेर में तंत्र से जुडे भी कई फिरके हैं। इनमें जैन एवं नाथ संप्रदाय तांत्रिक अपना विशेष प्रभाव रखते हैं। मुस्लिम तंत्र की उपस्थिति की बात की जाए तो यहाँ पर दो जिन्नात हैं। एक मोहल्ला चूनगरान में तो दूसरा गोगागेट के पास कहीं। गोगागेट के पास ही नाथ संप्रदाय को दो एक अखाड़े हैं। गंगाशहर और भीनासर में जैन समुदाय का बाहुल्य है। ऐसा माना जाता है कि जैन मुनियों को तंत्र का अच्छा ज्ञान होता है लेकिन यहाँ के स्थानीय वाशिंदों ने कभी प्रत्यक्ष रूप से उन्हें तांत्रिक क्रियाएं करते हुए नहीं देखा है।


बीकानेर के मेले

पर्व एवं त्योहार

यहाँ हिंदुओं के त्योहारों में शील-सप्तमी, अक्षय तृतीया, रक्षा बंधन, दशहरा, दिवाली और होली मुख्य हैं। राजस्थान के अन्य राज्यों की तरह यहाँ गणगौर, दशहरा, नवरात्रा, रामनवमी, शिवरात्री, गणेश चतुर्थी आदि पर्व भी हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। तीज का यहाँ विशेष महत्व है। गणगौर एवं तीज स्त्रियों के मुख्य त्योहार हैं। रक्षाबंधन विशेषकर ब्राह्मणों का तथा दशहरा क्षत्रियों का त्योहार है। दशहरे के दिन बड़ी धूम-धाम के साथ महाराजा की सवारी निकलती है। मुसलमानों के मुख्य त्योहार मुहरर्म, ईदुलफितर, ईद उलजुहा, शबेबरात, बारह रबीउलअव्वल आदि है। महावीर जयंती एवं परयुशन जैनों द्वारा मनाया जाता है। यहाँ के सिख देश के अन्य भागों की तरह वैशाखी, गुरु नानक जयंती तथा गुरु गोविंद जयंती उत्साह के साथ मनाते है। नगर का स्थापना दिवस अक्षय द्वितीया भी सभी जाति धर्म के लोग पूरी आस्था से मनाते हैं। 


मेले

बीकानेर के सामाजिक जीवन में मेलों का विशेष महत्व है। ज्यादातर मेले किसी धार्मिक स्थान पर लगाए जाते हैं। ये मेले स्थानीय व्यापार, खरीद-बिक्री, आदान-प्रदान के मुख्य केन्द्र हैं। महत्वपूर्ण मेले निम्नलिखित हैं-



कतरियासर जसनाथ जी का मेला


कतरियासर गाँव में जसनाथ जी महाराज जो जसनाथ सम्प्रदाय के आराधना देव हैं इस सम्प्रदाय के लोग ज्यादातर जाट जाति के लोग हैं तथा अन्य जातियाँ के लोग भी हैं तथा कतरियासर गावँ में जसनाथ जी का भव्य मंदिर है जहाँ भव्य मेला लगता हैं भक्तगण बाड़मेर, नागौर, चुरू, जोधपुर, जैसलमेर, सीकर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं, हरियाणा तथा पंजाब व उत्तरप्रदेश से आते हैं यहाँ ओर विश्व प्रसिद्ध अग्नि नृत्य होता हैं जो धधकते अंगारो पर किया जाता हैं जो एक चमत्कार हैं जसनाथ जी महाराज का जो देखने लायक हैं अग्नि नृत्य के बीच फर्हे फर्हे(फतेह-फतेह) का घोष किया जाता हैं व साथ ही में सिंभुदड़ा का पाठन किया जाता हैं कतरियासर गाँव में जसनाथजी के मंदिर के अलावा सती माता काळलदेजी(जसनाथ जी महाराज की अर्धांगनी) का पवित्र मंदिर हैं जहाँ इनका भी भव्य मेला भरता हैं जसनाथ जी महाराज के 36 नियम हैं जिसमे पर्यावरण, वन्य जीव जंतुओं का संरक्षण, आदि के बारे में लोगों को जागरूक किया गया हैं


कोलायत मेला -

यह मेला प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष के अंतिम दिनों में श्री कोलायत जी में होता है और पूर्णिमा के दिन मुख्य माना जाता है। यहाँ कपिलेश्वर मुनि के आश्रम होने के कारण इस स्थान का महत्व बढ़ गया है। ग्रामीण लोग काफी संख्या में यहाँ जुटते है तथा पवित्र झील में स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि कपिल मुनि, जो ब्रह्मा के पुत्र हैं ने अपनी उत्तर-पूर्व की यात्रा के दौरान स्थान के प्राकृतिक सुंदरता के कारण तप के लिए उपर्युक्त समक्षा। मेले की मुख्य विशेषता इसकी दीप-मालिका है। दीपों को आटे से बनाया जाता है जिसमें दीपक जलाकर तालाब में प्रवाह कर दिया है। यहाँ हर साल लगभग एक लाख तक की भीड़ इकढ्ढा होती है।


मुकाम मेला -

नोखा तहसील में मुकाम नामक गाँव में एक भव्य मेला लगता है। यह मेला श्री जंभेश्वर जी की स्मृति में होता है, जिन्हें बिश्नोई संप्रदाय का स्थापक माना जाता है। फाल्गुन अमावस्या के दिन मेला भरता हैं। लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए देश के विभिन्न भागों से आते है। पर्यावरण एवं वन्य जीव प्रेमी बिश्नोई समाज के लिए मुकाम अंत्यत पवित्र स्थान हैं।


देशनोक मेला -

यह मेला चैत सुदी १-१० तक तथा आश्विन १-१० दिनों तक करणी जी की स्मृति में लगता है। ये एक चारण स्री हैं जिनके विषय में ऐसा माना जाता है कि इनमें दैविय शक्ति विद्यमान थी। देश के विभिन्न हिस्सों से इनका आशीर्वाद लेने के लिए लोगों ताँता लगा रहता है। यहाँ लगभग ३०,००० हजार लोगों तक की भीड़ इकठ्ठा होती है।

यहाँ के अन्य महत्वपूर्ण मेलो में कतरियासर का मरु मेला, तीज मेला, शिवबाड़ी मेला, नरसिंह चर्तुदशी मेला, सुजनदेसर मेला, केनयार मेला, जेठ भुट्टा मेला, कोड़मदेसर मेला, दादाजी का मेला, रीदमालसार मेला, धूणीनाथ का मेला आदि हैं।


सीसा भैरू-

तीन दिवसीय चलने वाले मेले का आयोजन भैरू भक्त मण्डल पारीक चैक सोनगिरी कुआं, डागा चैक अनेक स्थानों से लोगो का बाबा भैरूनाथ के दर्शन के लिए आते है शहर के साथ-साथ नापासर, नौखा ग्रामिण क्षेत्रों से पैदल यात्री जत्थों के साथ भैरूनाथ के जयकारे के साथ सीसाभैरव आते है इस मेले की विशेषता यह है कि यहाँ एक विशाल हवन का आयोजन किया जाता है। इसमें लगभग 5,००० श्रद्धालुगण आते है जिनमें ब्राह्मणों की संख्या अधिक होती है। यह मेला भादों में होता है। देश के विभिन्न हिस्सों से इनका आशीर्वाद लेने के लिए लोगों ताँता लगा रहता है।


लाधूनाथ जी मेलाः


राजस्थान के मशहूर लोक देवता एवं नायक समाज के प्रिय देवता श्री लादू नाथ जी महाराज का मेला बीकानेर जिले में मसूरी गाँव में भरा जाता है। यह राजस्थान के मशहूर संत एवं लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं इन्होंने अपने जीवन में अनेक ग्रंथों की रचनाएं की यह लोग देवता होने के साथ-साथ बहुत बड़े संत भी थे इन के मेले में नायक समाज के लोगों की अधिकता दिखाई देती है यह राजस्थान का तीसरा सबसे बड़ा मेला है इस मेले में कई समाज के लोग आते हैं श्री लादू नाथ जी महाराज एक चमत्कारी और बहुत बड़े संत के रूप में माने जाते हैं इनका मेला बड़ी धूम-धाम से और मनोरंजन का एक प्रमुख स्थान है।


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