1.राव बीका (1465-1504)
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Rao Bikaji |
2. राव लूणकरण
नारा का देहांत 13 जनवरी 1505 को हो गया। नारा के निःसंतान होने से उसका छोटा भाई लूणकरण बीकानेर का शासक बना। राव लूणकरण पिता की भांति साहसी और वीर योद्धा था। उसकी शक्ति का लोहा रुद्रेवा, चायलवाडा आदी स्थानों के सरदार मानते थे, जिनका उसने निजी भुजबल से दमन किया व बड़ा दानी था। करमचंदवशोकिर्तनम काव्य में उसकी दानशीलता कर्ण से की गई है, बिठू सुजा ने अपने जैतसी रो छंद में कलयुग का कर्ण कहां है। 1526 में धोसा नामक स्थान पर इसकी मृत्यु हो गई थी।
3. राव जैतसी (1526-1542 ई.)
बीकानेर राज्य का प्रतापी शासक एवं राव लूणकरण का पुत्र था इनके समय कामरान ने भटनेर पर आक्रमण किया उस पर अधिकार कर लिया 1534 में राव जैतसी में मुगल सेना पर आक्रमण कर भटनेर को मुगलों से छुड़ा लिया। इस युद्ध का वर्णन बिट्ट सुजा द्वारा लिखित राव जैतसी रो छंद में मिलती है खानवा के युद्ध में राव जैतसी अपने कुंवर कल्याण को सांगा की सहायता के लिए भेजा था । पहोबाध्साहेबा- बीकानेर शासक राव जैतसी में मारवाड़ के शासक मालदेव के बीच युद्ध हुआ इस युद्ध में राव जैतसी मारा गया था बीकानेर राज्य की पराजय हुई मालदेव ने बीकानेर का व्यवस्थापक कुंपा को नियुक्त किया था।
4.राव कल्याणमल(1544-1574)
1544 में कल्याणमल बीकानेर का राजा बना। राव जैतसी के पुत्र जिन्होंने गिरिसुमेल के युद्ध मे शेरशाह सूरी की सहायता की थी । इस युद्ध के बाद शेरशाह ने बीकानेर राज्य का शासन राव कल्याणमल को सौंपा। बीकानेर के पहले शासक जिन्होंने 1570 ई. के अकबर के नागौर दरबार मे अकबर की अधीनता स्वीकार की और वैवाहिक संबंध स्थापित किए तथा अपने छोटे पुत्र पृथ्वीराज को , जो उच्च कोटि का कवि और विष्णु भक्त था, अकबर की सेवा में भेजा । इन्ही पृथ्वीराज ने ‘वेलि किसन रुक्मणी री’ की रचना की। अकबर ने 1572 में कल्याणमल के पुत्र रायसिंह को जोधपुर का शासक नियुक्त किया।
5. महाराजा रायसिंह(1574-1612) का जन्म 20 जुलाई 1541 को हुआ। इसके पिता राव कल्याणमल थे। इनको राजपूताने का कर्ण महाराजा की उपाधि प्रदान की गई। नागौर दरबार के बाद 1572 ई. में अकबर ने इन्हें जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया। मुगल दरबार में जयपुर के बाद बीकानेर राजघराने का ही अकबर से अच्छा संबंध कायम हुआ। महाराजा रायसिंह ने 1573 में गुजरात के मिर्जा बंधुओं का दमन किया, 1574 में मारवाड़ के चंद्रसेन व देवड़ा सुरताण का दमन किया। महाराजा रायसिंह 1591 में खानेखाना की सहायता के लिए कंधार गये थे, 1593 रायसिंह थट्टा अभियान के लिए दानियाल का दमन करने गए, अकबर ने 1593 में जूनागढ़ तथा 1604 में शमशाबाद तथा नूरपुर की जागीर दी, जहांगीर ने रायसिंह का मनसब 5000 जात व 5000 सवार कर दिया। 1594 ई. में मंत्री कर्मचंद की देखरेख में बीकानेर किले (जूनागढ़) का निर्माण कराया जिसमे ‘रायसिंह प्रशस्ति’ उत्कीर्ण करवाई। महाराजा रायसिंह को मुंशी देवीप्रसाद द्वारा ‘राजपूताने का कर्ण’ की उपमा दी गयी।‘रायसिंह महोत्सव’ व ‘ज्योतिष रत्नमाला’ की भाषा टीका, महाराजा रायसिंह द्वारा लिखित रचनाएँ। ‘कर्मचन्द्रों कीर्तनकम काव्यम’ इस ग्रन्थ में महाराजा रायसिंह को राजेन्द्र कहा गया है तथा लिखा है कि वह विजित शत्रुओं के साथ भी बड़े सम्मान का व्यवहार करते थे। महाराजा रायसिंह की मृत्यु सन 1612 ई. में बुरहानपुर में हुई।
6. दाव दलपत (1612-13)
महाराजा रायसिंह की मृत्यु के बाद दलपत सिह बीकानेर का शासक बना। राव दलपत का सम्राट जहांगीर से मनमुटाव हो गया। जहांगीर ने दलपत को गद्दी से हटाकर उसके भाई सूरसिह को शासक बना दिया।
7. महाराजा कर्ण सिंह (1631-1669)
पिता सुरसिंह के देहावसान के बाद ये सन 1631 में बीकानेर के सिंहासन पर बैठे। ये बीकानेर के प्रतापी शासक थे मुगल शासक औरंगजेब ने इन्हें जांगलधर बादशाह की उपाधि दी। मुगल शहजादों मे उतराधिकार संघर्ष के समय कर्णसिहं तटस्थ रहे। लेकिन उन्होंने अपने दो पुत्रों- पद्मसिंह और केसरीसिंह को औरंगजेब की ओर से भेजा।
मतीरे की राड़ - 1644 में कर्ण सिंह और अमर सिंह के बीच हुई थी जिसमें अमर सिंह विजय रहे । 17 वी शाताब्दी में बीकानेर शासक कर्ण सिंह ने बीकानेर से 25ाउ दूर देशनोक में करणी माता का मंदिर बनाया था। कर्णसिंह के काल की रचनाओं मे साहित्य कल्पद्दुम व कर्णभूषण (गंगा नंद मैथिली द्वारा रचित) प्रमुख हैं।
8. महाराजा अनूप सिंह –
- औरंगजेब द्वारा ‘माही मरातिव’ और महाराजा की उपाधि
- बीकानेरी चित्रकारी का स्वर्ण युग, उस्ता कला को लाहौर से बीकानेर लाने का श्रेय
- अनूप संग्रहालय का निर्माण
- 33 करोड़ देवी देवताओं के मंदिर की संज्ञा वाले बीकानेर के हेरम्भ गणपति मंदिर का निर्माण का
9. सूरत सिंह राठौड
हनुमानगढ़ को पहले भटनेर (भट्टी राजपूतों का दुर्ग) कहा जाता था। 1805 ई. में बीकानेर रियासत में शामिल किये जाने के बाद इसको ‘हनुमानगढ़’ का नाम दिया गया था। सूरत सिंह के समय 1805 ई. में 5 माह के विकट घेरे के बाद राठौड़ों ने इसे ज़ाबता ख़ाँ भट्टी से छीना
यहाँ बीकानेर राज्य का एकाधिकार हुआ। मंगलवार के दिन इस क़िले पर अधिकार होने के कारण इस क़िले में एक छोटा सा हनुमान जी का मंदिर बनवाया गया तथा उसी दिन से उसका नाम ‘हनुमानगढ़’ रखा गया।
गंगानगर के सूरतगढ़ शहर तथा बीकानेर के सूरसागर झील के निर्माण का श्रेय
सूरत सिंह ने 1818 ई. में अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सन्धि कर ली थी।
10. महाराजा सरदार सिंह –
क्रांति के समय न केवल बीकानेर के महाराजा बल्कि अंग्रेजो की सहायता हेतु बाडलू गाँव (हिस्सार) तक जाने वाले एकमात्र राजस्थानी शासक
11. महाराजा गंगा सिंह –
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Mahara Gangasingh |
- प. नेहरू द्वारा राजस्थान के भागीरथ की संज्ञा
- आधुनिक बीकानेर के निर्माता
- अंग्रेजो द्वारा ‘केसर ऐ हिन्द’ की उपाधि
- ऊँटो की सैन्य टुकड़ी – गंगा रिसाला
- 1899 में चीन के साथ अफीम युद्ध में तथा 1900 में दक्षिण अफ्रीका में डचों के विरुद्ध बोआर के युद्ध में अंग्रेजो के साथ
- 26 अक्टूम्बर 1927 में राजस्थान की प्रथम गंगनहर सिंचाई परियोजना का लोकार्पण
- लन्दन में आयोजित तीनो गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने का श्रेय
- आधुनिक गंगानगर शहर का निर्माण
- 1922 से 1928 तक b.h.u. के कुलपति
12. महाराजा सार्दुल सिंह
आजादी एंव एकीकरण के समय बीकानेर के महाराजा
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