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अलग पहचान है बीकानेर की रम्मतों की

By SHYAM NARAYAN RANGA - Friday, January 29, 2021 1 Comment

Rammat At Bikaner In Holi Festival
होली का त्योहार पूरे विश्व में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। भारत में यह त्योहार भारतीय सभ्यता और संस्कृति का शानदार प्रतीक है। भारत का प्रत्येक प्रदेश होली में अपनी विशिष्टता लिए है। जिस प्रकार ब्रज की लट्ठमार होली ने अपनी अलग पहचान बनाई है, उसी प्रकार राजस्थान के बीकानेर की होली में खेली जाने वाली रम्मतों में भी अपनी खास विशेषता है।


रम्मत का शाब्दिक अर्थ है खेलना। लेकिन बीकानेर में यह खेल शहर के पाटों पर और चैकों में खेला जाता है और होली के मौसम में इन रम्मतों में बीकानेर की संस्कृति की समृद्धता स्पष्ट झलकती है।


रम्मतें नाटक की एक विधा है जिसमें मनोरंजन के लिए तरह-तरह के नाटक खेले जाते हैं या विभिन्न प्रकार की गायकी से दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है। बीकानेर में मूलतः दो तरह की रम्मतें देखने को मिलती हैं।

पहली प्रकार की रम्मतें स्वांग मेरी की रम्मतें हैं जिनमें ख्याल, लावणी व चैमासों के माध्यम से प्रस्तुति दी जाती है। रम्मतों में ख्याल हर साल नए जोड़े जाते हैं और इन ख्याल के माध्यम से देश व प्रदेश की वर्तमान व्यवस्थाओं पर तथा सामाजिक कुरूतियों पर भी कटाक्ष किया जाता है और इसका प्रभावशाली प्रस्तुतिकरण होता है।


सामंतशाही दौर में दम्माणी चैक में खेली जाने वाली रम्मत में स्वर्गीय बच्छराज जी व्यास ने ख्याल में श्भगवान पधारो भारत में, तुम बिन पड़ रहया है फोड़ा.......श् का प्रस्तुतिकरण इतना प्रभावी तरीके से किया कि उस समय इस ख्याल पर सरकारी प्रतिबंध लग गया था।


इसी तरह वर्तमान में भी महंगाई, राजनैतिक भ्रष्टाचार सहित दहेज, भ्रूण हत्या, दल-बदल सहित कईं विषयों को इन ख्यालों के माध्यम से उठाया जाता हैं।


इस साल की रम्मतों में राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी सहित अरविंद केजरीवाल भी शामिल है और भ्रष्टाचार को ज्यादा तवज्जो दी गई है। इन रम्मतों का दूसरा आकर्षण है लावणी।

बीकानेर की रम्मतों में लावणी दो तरह की है। एक तो भक्ति रस पर आधारित लावणी है, जिसमें भगवान कृष्ण व राधा के रूप सौंदर्य का वर्णन किया गया है और दूसरी है सुंदर नायिका के नख-शिखा सौंदर्य से वर्णित शायरी। इन रम्मतों की लावणी में नायक अपनी नायिका को बरसों बाद देखता हैं और उसके रूप सौंदर्य का वर्णन करता है और यह साबित करने की कोशिश करता है कि मेरी नायिका से सुंदर कोई स्त्री इस पृथ्वी पर नहीं है। नायिका अपने इस सौंदर्य से परिचित है और वह नायक को अपने पतिव्रत होने का सबूत देती है।


इसी प्रकार इन रम्मतों का अगला चरण है चैमासा। चैमासे को लेकर यह बात है कि इस मरू प्रदेश के पुरुष किसी समय में दूर देशों में कमाने के लिए जाया करते थे और चैमासे की ऋतु में उनकी पत्नी या प्रेयसी उनको याद करती थी और भगवान से प्रार्थना करती थी कि इस चैमासे में उसका पति या प्रेमी घर आए।

वास्तव में चैमासे में नायक व नायिका की विरह वेदना का वर्णन किया जाता है। स्वांग मेरी की इन रम्मतों में ख्याल लावणी चैमासे के क्रम से गुजरती यह रम्मत रात भर चलती है और अलसुबह इसका समापन हो जाता है।


दूसरी तरह की रम्मतें है कथानक प्रधान। इनमें प्रमुख रूप से हड़ाऊ मेरी की रम्मत, भक्त पूरणमल की रम्मत और शहजादी नौटंकी और वीर अमरसिंह राठौड़ की रम्मत का मंचन किया जाता है। इन सब कथानकों की कहानी अलग-अलग है। इसमें हड़ाऊ मेरी की रम्मत में प्यार है, छेड़छाड़ है और राजा-रानी का रूठना-मनाना भी है।

भक्त पूरणमल की रम्मत में पूरणमल सौतेली मां को प्यार करने से मना कर देता है और अपने जीवन का बलिदान तक कर देता है। इस रम्मत में वेदों व पुराणों का उल्लेख किया गया है और शानदार जीवन चरित्र का प्रस्तुतिकरण है।

शहजादी नौटंकी में भी कथानक शानदार है और शहजादी से शादी करके नायक अपना प्रण पूरा करता है। वीर अमरसिंह राठौड़ की रम्मत वीर रस की शानदार कथानक लिए हुए रम्मत है, जिसमें नागौर के राव अमरसिंह के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है। वास्तव में बीकानेर में खेली जाने वाली इन रम्मतों में परिवार व एक विशेष प्रकार की जाति समुदाय के लोग जुड़े हैं और इन्होंने अपने परिवार की परम्परा के तौर पर इन रम्मतों को आज तक कायम रखा है।

कुछ रम्मतें जरूर बंद हो गई है परंतु जो रम्मतें वर्तमान में खेली जा रही है, उनके प्रति कलाकारों का समर्पण व उनकी कला की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। लुप्त हो रही यह कला बीकानेर में आज भी जीवित है और इनका मंचन करने वाले कलाकारों को यह नहीं पता कि वे इस देश की एक शानदार समृद्ध वैभवशाली परम्परा को संजोकर रख रहे हैं।

Rammat At Bikaner Holi

मैं यहां यह बता देना चाहता हूं कि बीकानेर की यह रम्मतें पद्य में है और रातभर गाकर इनका मंचन किया जाता है। जो इन रम्मतों की व इनको प्रस्तुत करने वालों की कला में जान डाल देने वाला पक्ष है।

भक्त पूरण मल की रम्मत के कलाकर किसन कुमार बिस्सा ने बताया कि किसी कारणवश दिल्ली व जयपुर में जवाहर कला केन्द्र और रवीन्द्र रंगमंच पर रम्मत प्रस्तुत करने का मौका मिला, तो वहां उपस्थित कलाकारों व दर्शकों ने अपने दांतों तले अंगुली दबा ली और काफी प्रस्ताव इन रम्मतों को देश व प्रदेश में प्रस्तुत करने के लिए आ रहे हैं लेकिन साधन के अभाव में वह यह काम नहीं कर पा रहे हैं।

इसी तरह ख्याल का निर्माण व लावणी को गाना व रम्मत में दौबेला, चैबेला, कड़ा, दौड, लावणी, ध्रुपद, कली, भेटी सहित विभिन्न प्रकार के पद्यात्मक प्रयोग इन रम्मतों के स्तर को काफी बड़ा कर देते हैं।


इन रम्मतों में संगीत की मुश्किल से मुश्किल साधना को काफी सरलता से साधा जाता है। जिस किसी बड़े कलाकार ने आज तक इनका मंचन देखा है उसने इसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। जरूरत है सरकारी स्तर पर या संगठनात्मक स्तर पर ऐसे प्रयासों की कि बीकानेर की यह रम्मतें अपना वैभव कायम रख सके और इनको संजोकर रखा जा सकें। आज के युवाओं में इनका रूझान दिन-ब-दिन घटता जा रहा हैं, ऐसे में इनका संरक्षण काफी जरूरी है ताकि भारत के सुदूर प्रांतों में फैली यह परम्परा अपना अस्तित्व कायम रख सकें।


श्याम नारायण रंगा

1 One Comment " अलग पहचान है बीकानेर की रम्मतों की "

उमाकान्त व्यास June 17, 2021 at 9:14 AM

बहुत ही शानदार तरीके से आपने हमारे बीकानेर की इस पहचान को तकनीकी पटल पर रखा है। आप इसके लिये धन्यवाद के पात्र हैं। मेरी और से बहुत बहुत धन्यवाद।