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प्रगति पथ पर समस्याओं से जूझते स्थानीय नगरीय निकाय

By SHYAM NARAYAN RANGA - Wednesday, January 27, 2021 No Comments

Bikaner Nagar Nigam
भारतीय लोकतंत्र का आधार जनता द्वारा, जनता का, जनता के लिए शासन ही नहीं है अपितु उसका मूल आधार सत्ता का विकेन्द्रीयकरण भी है। इसका प्रमाण संविधान की सातवीं अनुसूची है, जिसमें संघ सूची व राज्य सूची तथा समवर्ती सूची का समावेश करके विधान विषयों का संघ व राज्यों के बीच वितरण किया गया है लेकिन उस समय निचले स्तर पर स्थानीय निकायों के संबंध में संविधान में उल्लेख नहीं हो सका। महात्मा गांधी का मानना था कि स्थानीय स्तर पर किए गए कार्य चूंकि वहां के नागरिकों द्वारा किए जाते हैं, इसलिए वे शीघ्र, सही और मिव्ययिता के साथ होंगे। अतः महात्मा गांधी स्थानीय निकायों को पुष्ट करना चाहते थे। इसी दृष्टि से सन् 1992 में 74वाॅं संविधान संशोधन किया गया। इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य शहरों में रहने वाले लोगों को यह अधिकार देना है कि वे स्वयं अपने नगर के विकास की योजनाएं बनाएं और स्वयं ही इसे क्रियान्वित कर लोकतंत्र को सुदृढ. बनाने में योगदान दें। 23 अप्रेल 1993 को राजस्थान राज्य द्वारा इस संशोधन का अनुमोदन किया गया और 1 जून 1994 से यह संशोधन राज्य में प्रभावी हो गया। इसी संशोधन से बडे़ नगरीय क्षेत्रों के लिए नगर निगम, नगरीय क्षेत्रों के लिए नगर परिषद् और ग्रामीण से नगरीय क्षेत्र में क्रमोन्नत क्षेत्रों के लिए नगरपालिका के गठन का प्रावधान करने के साथ पिछड़े अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण व्यवस्था भी लागू की गई। इसके बोर्ड की अवधि पहली बैठक {जिसमें अध्यक्ष का चुनाव हो} से 5 वर्ष निश्चित कर दी गई। 

74 वें संविधान संशोधन के तहत संविधान में 12वीं अनुसूची जोड़कर स्थानीय नगरीय निकायों के निम्नलिखित कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है:-

1. नगरीय नियोजन सहित शहरी नियोजन

2. भवन निर्माण - भू उपयोग का नियमन

3. आर्थिक और सामािजक विकास के लिए नियोजन

4. सड़क और पुल निर्माण

5. घर, वाणिज्य और उद्योग हेतु जल आपूर्ति

6. जन स्वास्थ्य सफाई और कूड़ा कचरा प्रबंधन

7. अग्निशमन सेवा

8. नगरीय वन, वातावरण की सुरक्षा और पारिस्थिकी संतुलन

9. विकलांगों व मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों सहित समाज के कमजोर वर्गों के हितों की सुरक्षा

10.गंदी बस्ती का विकास व पुनरोत्थान

11.शहरी गरीबी का उन्मूलन

12.शहरी सुविधाएं जैसे पार्क, बगीचा, खेल के मैदान की व्यवस्था

13.शहर में सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौन्दर्य के कार्यों को बढावा देना

14.शवदाह व कब्रगार की व्यवस्था करना

15.जानवरों के प्रति क्रूरता को रोकना व केटल पाउंड की व्यवस्था

16.जन्म और मृत्यु का पंजीकरण सहित जीवन मृत्यु के आंकड़ों का संधारण

17.प्रकाश, पार्किंग व्यवस्था, बस स्टाॅप व जनहितार्थ जन सुरक्षा के कार्य करना

18.पशुवध गृह व चमड़ा पकाने संबंधी कार्यों का नियमन

अतः नगरीय निकायों को नागरिकों की समस्याओं के निवारण और उन्हें अधिकाधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए अनेक कार्य करने होते हैं लेकिन समस्या यह है कि इन नगरीय निकायों की वित्तिय स्थिति अत्यंत दयनीय है। नगरपालिकाओं की आय के दो प्रमुख स्रोत {चुंगी और गृह कर} के समाप्त होने के बाद तो इन्हें धनाभाव की स्थिति का निरंतर सामना करना पड़ रहा है। सफाई जैसे महत्वपूर्ण और प्राथमिक कार्य को सम्पन्न कराने के लिए इनके पास कर्मचारियों की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। ऐसी स्थिति में इन स्थानीय नगरीय निकायों को पूर्णतः राज्य सरकार के अनुदान पर निर्भर रहना पड़ता है। अनुदान की राशि प्रत्येक वर्ष सरकार की अनुकम्पा पर घटती बढती रहती है। हालांकि 74वें संविधान संशोधन की एक सुखद बात यह है कि इसके द्वारा प्रत्येक पांच वर्ष हेतु राज्य वित आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है, जो इन नगरीय निकायों की वित्तिय स्थिति की समीक्षा की सिफारिश राज्यपाल को करता है। राज्य वित आयोग के प्रमुख कार्यों में एक यह भी है कि आयोग नगरीय निकायों की वित्तिय स्थिति सुधारने के लिए आवश्यक उपायों की सिफारिश करेगा। इस संबंध में नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ करने हेतु हाल ही में जारी किए गए नये अध्यादेश से नगरीय निकायों को सफाई शुल्क वसूल करने का अधिकार दिया गया है। नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के संबंध में कुछ अन्य सुझाव निम्नलिखित हैं:-

1. अचल सम्पत्ति के हस्तांतरण पर 1/2 प्रतिशत सरचार्ज नगरीय निकायों को दिलाये जाने की पुख्ता व्यवस्था हो।

2. नगरीय निकायों के लिए आय का बड़ा स्रोत भूमि विक्रय ही बचा है लेकिन अतिक्रमण से त्रस्त इस स्रोत को कानूनी संबल प्रदान कर निकायों की भूमि अतिक्रमियों से मुक्त कराना आवश्यक है।

3. मनोरंजन कर पूर्व में नगरीय निकायों के पास था और इससे इन निकायों को अच्छी खासी आय भी प्राप्त होती थी। आय का यह स्रोत जो स्थानीय प्रकृति का ही है, नगरीय निकायों को फिर से सौंपा जाना चाहिए।

4. राज्य सरकार को नगरों से करों की जो आय प्राप्त होती है, उसमें से एक आनुपातिक हिस्सा नगरीय निकायों को दिया जाना चाहिए, ताकि वे नगरीय निकाय विकास के अपने कत्र्तव्य का भली भांति निर्वहन कर सके।

5. विद्युत निगम द्वारा नगरीय क्षेत्र के उपभोक्ताओं से जो बिल की राशि वसूल की जाती है, इस पर एक निश्चित प्रतिशत नगरीय निकायों को दिलाया जाना चाहिए, क्योंकि नगरीय क्षेत्र में स्ट्रीट लाईट की व्यवस्था नगरीय निकायों को करनी होती है। पूर्व में इस प्रकार के आदेश राज्य सरकार ने जारी भी किये थे, लेकिन अपरिहार्य कारणों से इस पर रोक लगा दी गई थी। 

Nagar Nigam 
अतः देश की स्वायत्ता और विकेन्द्रीयकरण की प्रतीक नगरीय निकाय एक ऐसी संस्था है जो जन जन की सेवा के महत्वूपर्ण क्रियाकलापों से जुड़ी हैं और राजनीति की प्राथमिक पाठशाला भी है। इसकी सेवाओं और कार्यों का जनजीवन पर व्यापक और प्रत्यक्ष असर पड़ता है। इन्हीं कारणों से इन निकायों की दक्ष और कुशल सेवाओं को सम्बल प्रदान करने के लिए इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ बनाने के लिए प्रत्येक पहलू पर विचार किया जाना अपेक्षित है ताकि ये नगरीय निकाय अपने कार्य में आत्मनिर्भर बनकर स्वायत्ता से प्रगति पथ पर आगे बढ सकें। 


सुरेश कुमार भाटिया, {लेखक सेवानिवृत राजस्व निरीक्षक नगर परिषद बीकानेर हैं}

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