Mothers day जैसे दिन अप्रांसगिक लगते हैं। दैनिक जीवन में हर दिन माँ से शुरू होकर माँ पर समाप्त होता है। प्यार, प्रेम, समर्पण का प्रदर्शन नहीं होता और माँ के प्यार का तो प्रदर्शन बिल्कुल ही नहीं। हर दिन mothers day है। वैसे मैं पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का विरोधी नहीं हूं पर किसी भी बात या विचार का आंख मूंदकर समर्थन करना मेरे लिए मुमकिन नहीं। कॉर्पोरेट जगत के बनाये ये व्यावसायिक day जिनके लिए महत्वपूर्ण है वे उसको मनाए उससे भी मुझे आपत्ति नहीं न ही उनके किसी सेलिब्रेशन पर प्रश्न चिन्ह। बस माँ,पिता, भाई, बहन, पत्नी, भाभी, मौसी, ताया, ताई, चाचा, चाची, जैसे सामाजिक रिश्ते सदैव जीवंत रहे और सदैव इनका सम्मान हो ऐसा ही जरूरी है। ऐसे दिन सेलिब्रेशन करने के पीछे कॉर्पोरेट जगत की बडी व्यावसायिक सोच है जो भावनाओं को भुनाती है। ऐसे लोग जो ऐसे दिन सेलिब्रेट नहीं करते उनके सामने इस मिलेजुले सामाजिक परिवेश में कभी कभी संकट उत्पन्न हो जाता है। आस पास पड़ोस के लोग, कुछ रिश्तेदार केक काटते हैं, बैलून फोड़ते हैं और fb तथा।wup पर शेयर करते हैं तो एक अजीब स्तिथि से वो लोग रूबरू होते हैं और ऐसे आलेख लिखकर अपने मन की बात स्पष्ट करते हैं। आज के दौर में सब रिश्ते मजबूती माँग रहे हैं, विश्वास मांग रहे हैं, अपनत्व माँग रहे हैं, त्याग माँग रहे है। नमन और प्रणाम उन तमाम रिश्तों को उन तमाम लोगों को जो है या नहीं भी है पर जिनके कारण आज हमारा सामाजिक तानाबाना मजबूत रहा है।
लेखक : श्याम नारायण
लेखक : श्याम नारायण
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