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जल संकट एक समस्या एक चुनौती

By SHYAM NARAYAN RANGA - Wednesday, June 12, 2019 No Comments
water problem in india 
पृथ्वी के अधिकांष रहने वाले भयंकर जल संकट के दौर से गुजर रहे हैं। गांवों से लेकर कस्बो शहरों तक पानी के घमासान मचा होने की खबरें आ रही है। ये हालात किसी एक देष विषेष के नहीं बल्कि पूरी दुनिया के है। यह विडम्बना है कि धरती के सत्तर प्रतिषत क्षेत्र में पानी होने के बावजूद भारत सहित पूरा विष्व जल संकट का सामना कर रहा है। आज के ये हालात भयावह भविष्य की ओर संकेत कर रहे हैं। एक आंकडे के अनुसार पृथ्वी जल उपलब्ध कुल जल का महत एक प्रतिषत ही पीने योग्य है बाकि महासागरों का जल इतना खारा व लवणीय है कि वह जानलेवा है। पृथ्वी पर उपस्थित ग्लेषियर भी ग्लोबल वार्मिंग के कारण तेजी से पिघल रहे हैं और वह पीने योग्य पानी भी महासागरों का हिस्सा बनता जा रहा है।
नदियों व झीलों सहित नहरों का पानी भी इतना प्रदूषित हो चुका है कि वह बिना निष्चित प्रक्रिया के पीया नहीं जा सकता । इस कारण प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता लगातार घटती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक प्रति वर्ष विष्व में 12.5 से 14 अरब क्यूबिक मीटर पानी इंसान के प्रयोग के लिये उपलब्ध होता है, सन 1989 में प्रति व्यक्ति 9000 क्यूबिक मीटर सालाना था, जो सन 2000 में घटकर 7800 क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष रह गया था। वर्तमान हालात इससे भी खतरनाक है। पानी की कमी की गति लगातार ऐसी ही बनी रही, तो 2025 तक पानी की उपलब्धता घटकर 5100 क्यूबिक मीटर ही रह जाएगी जो इस बात का संकेत है कि विष्व जल त्रासदी की तरफ खिसक रहा है। पिछले कुछ दषकों में जल संकट का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता नजर आ रहा है लेकिन अफसोस की बात यह है कि इतना होने के बावजूद भी मानव अभी तक सतर्क नहीं हुआ है और जल संकट की इन परिस्थितियों को बहुत सामान्य मान रहा है। अगर अब भी हम चैकन्ने न हुए तो आने वाली पीढिया बूंद बूंद पानी के लिए तरसेगी जिसके जिम्मेदार हम होंगे।  घरेलू तथा औद्यौगिक इकाइयों कचरा व अपषिष्ट इतनी बडी मात्रा व इतनी तेज गति से नदियों व अन्य जल स्रोतों में मिलाया जा रहा है कि यह पानी किसी के भी पीने योग्य नहीं रहा। खेती के काम में लाए जाने वाले रसायन, रासायनिक खाद, खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी की बहुत अधिक मात्रा पानी में बहकर नदी व अन्य जलस्रोतों में पहुंच रही है इससे इसका पानी प्रदूषित हो रहा है। इसके अलावा नाना प्रकार के जैविक पदार्थ व मल आदि से नदियां प्रदूषित हो रही है। विष्व में विकसित देषों के अलावा बहुत कम देष ऐसे हैं जहां मानव व पषु मल के निस्तारण की कोई वैज्ञानिक व उचित व्यवस्था हो। ऐसे प्रबंधन के अभाव में यह समस्त अपषिष्ट नदियों व अन्य जल स्रोतें में प्रवाहित कर दिया जाता है। तेजी से बढ रहे महानगरीकरण व शहरीकरण के कारण इस समस्या ने विकराल रूप ले लिया है। इस सब का प्रभाव है कि भारत में यमुना और गंगा जैसी बडी नदियां भी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है।
जलचक्र वो तरीका है जो धरती पर जलीय सन्तुलन बनाए रखता है। भूगर्भ के इतिहास की बात करें तो अनेकों बार हिमकाल व विष्व तापन का दौर आया है लेकिन इससे पृथ्वी पर उपलब्ध पानी की मात्रा में कोई खास अंतर नहीं आया फर्क आया तो पानी के स्परूप और वितरण में ही। हिमकाल के समय पानी बर्फ के रूप में जमकर बड़े रूप में उत्तरी पूर्वी अमेरीका और पष्चिमी यूरोप में जमा हो गया था और जब विष्व में तापन का समय आया तो ये बर्फ के रूप में जमा पानी शुद्ध जल के रूप में बहने लगा और धीरे धीरे लवणीय जल के रूप में महासागरों में मिल गया। वर्तमान समय तापन का समय है जिसमें आर्कटिक और अंटार्कटिक सहित बड़े बड़े ग्लेषियर पिघल रहे है। हिमालय आल्पस, एंडीज की हिमानी तेज गति से तापन का षिकार हो रही है। इसके पिघलने की गति यह है कि वर्तमान में आर्कटिक में जमीन की सतह दिखने लगी है। इस भयंकर जल संकट के लिए सभ्यता का सबसे समझदार प्राणी मनुष्य व उसकी लापरवाही और उपेक्षा ही जिम्मेदार है। अतिदोहन ने आज पेयजल तक का संकट पैदा कर दिया है।
भारत सहित समस्त दक्षिण एषिया भी जल संकट से सामना कर रहा है। नदियां झीलें सूख गए हैं, गांव गांव में पानी के लिए लंबी लंबी लाईनें देखने को मिल रही है। यहां तक की हाल ही में राजस्थान व उत्तरप्रदेष सहित देष के कईं हिस्सों में गांवों में पानी के लिए लाठी भाटा जंग के हालात भी बने हैं। न पीने योग्य पानी भी लोग पीने को मजबूर हो रहे हैं, यह तो शुरूवाती दस्तक मात्र है अगर आज ये हालत है तो आने वाले वर्षों में जो होगा व अकल्पनीय है।
अब बात यह कि इन सबसे मुकाबला कैसे किया जाए तो पानी की उपलब्धता का सबसे बेहतर साधन बरसात ही है। बरसात के समय बूंद बूंद को सहेज कर ही हम इस संकट का निडरता से सामना कर सकते हैं। इस पानी का पर्याप्त संरक्षण व संग्रहण ही सबसे श्रेष्ठ उपाय है। देश की ज्यादातर नदियों में पानी की मात्रा काफी कम हो गई है, इनमें कृष्णा, गोदावरी, कावेरी, माही, ताप्ती, साबरमती और पेन्नार आदि प्रमुख हैं, जबकि नर्मदा, कोसी, ब्रह्मपुत्र स्वर्णरेखा, मेघना, महानदी मे जल की मात्रा में कमी देखने का मिल रही है। ऐसे हालात में सतही जल का जहाँ ज्यादा भाग हो वहीं पानी को संरक्षित करना श्रेष्ठ उपाय है। अन्तरराष्ट्रीय जल प्रबन्धन संस्थान के एक अनुमान के अनुसार भारत में 2050 तक अधिकांश नदियों में पानी का स्तर बहुत नीचे हो जाएगा। भारत में 4500 बड़े बाँधों में 220 अरब घनमीटर पानी के संग्रहण की क्षमता है। 11 मिलियन ऐसे कुएँ हैं, जिनकी संरचना पानी के पुनर्भरण के अनुकूल है। यदि मानसून अच्छा रहता है, अर्थात बारीश अच्छी होती है तो इनमें 25-30 मिलियन घनमीटर पानी का पुनर्भरण हो सकता है। साथ ही बरसात से पहले परम्परागत जल स्रोतों का संरक्षण व संवर्द्धन करके भी इस प्रयास केा सफल बनाया जा सकता है। याद रखना होगा कि जल के हमारे पुराने स्रोत काफी वैज्ञानिक व उपयोगी है। गांव गांव व घर घर में पानी की उपलब्धता ने इनको अनुपयोगी बना दिया था लेकिन अब समय की जरूरत को समझते हुए इन परम्परागत जल स्रोतों के पुनर्जीवीत करने की जरूरत है। साथ ही पानी के साथ संवेदनात्मक संबंध बनाना जरूरी है। जल के दुरूपयोग को दैनिक जीवनचर्या बदल कर रोका जाना अत्यंत आवष्यक है। यह एक आंदोलन की भांति जब तक नहीं किया जाएगा इसके लिए आमजन में गंभीरता नहीं आएगी। अगर पानी को अमृत समझकर व्यवहार किया जाए तब ही यह समस्या हल होगी। जल भागीदारी के बिना तमामा प्रयास असफल ही होंगे। आमजन को जल के महत्व को अब समझना बेहद जरूरी है। अगर हमें हमारी पीढियों को आगे ले जाना है तो हमें जल के प्रति अपने नजरिये को बदलना होगा और जीवनषैली में परिवर्तन करना होगा। अन्यथा तृतीय विष्व युद्ध जल के लिए होने की भविष्यवाणी किसी विषेषज्ञ ने तो कर ही रखी है लेकिन सभ्यता का बचना भी जरूरी है इसलिए हम इस भविष्यवाणी को जुठला सकें वो प्रयास हो।
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
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