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Lalchand G Bissa (lala bissa)
बीकानेर अलमस्त शहर, मनमौजियां का शहर, यहां लोग निराले और यहां के लोगों की बातें निराली, ऐसी ही एक दास्तां आज आपके लिए। नत्थूसर गेट के अंदर, बारहगुवाड़ चौक की तरफ जो सड़क जाती है उसी रोड़ पर एक गली है जिसका नाम है लाला बिस्सा की गली। जी हां लाला बिस्सा, बीकानेर शहरी क्षेत्र का प्रत्येक शख्स इस नाम से आज भी परिचित है, मनमौजी, अलमस्त, शानौ-षौकत से जीने वाला शौकीन बीकानेरी लाला बिस्सा का नाम लालचंद बिस्सा था, वैसे जन्म के समय इनके पिताजी बलदेवदास जी ने इनका नाम रावतमल रखा था पर बाद में कब यह लालचंद हुआ पता नहीं चला।
दादा ठाकुरदास बीकानेर राजघराने में मुनीम थे और लाला बिस्सा के पिताजी कपड़े की दलाली का काम करते थे। अन्न, धन और दौलत से पूर्ण वैभवषाली घर में जन्म लेने वाले लाला बिस्सा ने अपने जीवन को ऐषो आराम से जीया और अपने पूर्वजों की दौलत का जमकर दोहन किया। कईं किस्से आज भी बीकानेर की गलियों में उनके नाम से सुने सुनाए जाते हैं।
       एक बार की बात है लाला बिस्सा अपने दोस्तों के साथ कोलायत मेले में गए, उस समय मेले से दस दिन पहले ही मेले के शौकीन लोग कोलायत पहुॅंच जाया करते थे और एक बनिए सेठ की धर्मषाला में रूकने के लिए घुसे, सेठ ने यह कहकर उनको जगह नहीं दी कि तुम यहां हुडदंग करोगे और भांग घोटोगे। रईस पिता की संतान लाला बिस्सा को बात इतनी चोट कर गई फिर क्या था- बाहर निकल कर नजर दौड़ाई, ठीक सामने एक जमीन खाली पड़ी थी, तुरंत पता किया किसकी है जमीन। पता चला यह जमीन बीकानेर के किसी सुनार जाति के व्यक्ति की है, उसी समय उस व्यक्ति को बुलवाया गया और मुॅंह मांगी किमत कर लाला बिस्सा ने वह जमीन खरीद ली और उस पर एक मकान बनवाया। फिर जिसने मना किया उसी सेठ की धर्मषाला के सामने लाला बिस्सा की महफिल जमती थी और कभी किसी से रहने के लिए मकान मांगने की जरूरत को लाला बिस्सा ने खत्म कर दिया। 
       इसी तरह लाला बिस्सा का एक किस्सा नोट जलाकर भांग उबालने का है। बात कुछ ऐसी हुई कि एक मेले में सब दोस्तों के संग गए भांग के शौकीन लाला बिस्सा एक संकट में पड़ गए। भांग लेने का समय हो गया और भांग की तलब पूरा जोर मार रही थी। पर मूसलाधार बारिष ने भांग उबालने के सारे रास्ते बंद कर दिए थे। सूखी भांग पास मे तो थी पर उबाले कैसे क्योंकि बारिष के कारण सारी लकड़ी और घास भीग चुके थे। एक बात दिमाग में आई, लाला बिस्सा ने अपने कमरे में माचिस की तीली जलाई, दो ईंट पर पतीला रखा गया और आग के हवाले करने लगे अपने जेब से निकाल कर नोट। वो भी तब तक जब तक भांग पूरी तरह से उबल न जाए। सारे दोस्त देखते रह गए पर मनमौजी लाला बिस्सा रूके नहीं, भांग की तलब और शौक के आगे सैकड़ों नोट स्वाहा हो गए और भांग गटक ली गई।  
       
Lala Bissa apne tange par
उस दौर में नागौर से पांच सौ रूपये में घोड़ी लेकर आए, तांगा लिया, उसमें बैटरी से चलने वाला रेडियो लगवाया और अपनी महिला मित्र विलास को तांगे में बैठाकर शहर में घूमने निकलते थे लाला बिस्सा। उनके इस शानौ शौकत को देखकर उनके मित्र झमण सा जोषी ने एक ख्याल लिख दिया जो डूम जाती के लोग आज भी बधाई गीत के तौर पर शहर मे गाते हैं। उस ख्याल के कुछ बोल आपके लिए सहेज कर लाया हॅूं।



ओ भाई लाला बिस्सा, कर लो थे सेर बिकोणे री मौज, ओ भाई लाला बिस्सा,
लायो बोत मोंगा, रेडिये से संग में तोंगा,
बैठ कर हवा खावने जाय, रे भई पी क ेनसा- ओ भाई लाला बिस्सा....
चाल बा चाले ऐसी, जैसे सागर में मच्छी,
नागौरण चाले खूब चाल, नहीं झेले रस्सा, ओ भाई लाला बिस्सा......
मौज नहीं किनी थोड़ी, पांच सौ में लायो घोड़ी,
जावे तेलीवाडे़ मोय केऊ साचा किस्सा, ओ भाई लाला बिस्सा.....
केऊ हकीकत सारी, लायो विलास प्यारी,
जगत नारायण सेठो, अबकी हूवेला बेटो,
शरण तू आसापुरा की जाय,
झमण जोषी ख्याल बणावे, मण्डली सब मिलकर गावे
चारू दिसा में आनंद छावे, ओ भाई लाला बिस्सा, कर लो थे सेर बिकोणे री मौज....

       इतना ही नहीं अपने माता पिता व परिवार के लिए शमषान भूमि अलग से बनाई जो आज भी नत्थूसर गेट के बाहर चौतोलाई शमषान के पास स्थित है। अपने माता पिता का अंतिम संस्कार इसी शमषान भूमि पर किया। अपनी मौत को भी लाला बिस्सा ने अलग अंदाज दे दिया। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी शवयात्रा के आगे आगे बैंण्ड बाजा बजवाया गया, ढोल ताषे मंगवाए गए और उनके ही दोस्त झमण सा का बनाया ख्याल के बोल बैण्ड की धुन पर बजाया गया.............ओ भाई लाला बिस्सा, कर लो थे सेर बिकोणे री मौज.....................।

तो ऐसे थे लाला बिस्सा जिनका हर अंदाज अलग और निराला था। 

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