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बात 1952 की है जब भारत में आजादी के बाद पहली बार लोकतांत्रिक सरकारों के गठन के लिए चुनाव हुआ। उस समय चुनाव लोकसभा सदस्य और विधानसभा सदस्य दोनों के लिए एक साथ हुआ था। घटना बीकानेर में ऐसी घटी कि एक जैसे चुनाव चिन्ह ने बीकानेर के मोतीचंद खचांजी को बीकानेर का पहला विधायक होने का अवसर प्रदान किया। मोतीचंद खजांची अपने समय के जाने माने सेठ और समाजसेवी थे और उन्होंने 1952 में बीकानेर में विधायक के लिए चुनाव लड़ने का मन बनाया। बीकानेर सांसद के लिए उस समय पहला चुनाव तत्कालीन महाराज करणीसिंह लड़ रहे थे। जनमानस के हिसाब से महाराजा करणीसिंह का सांसद बनना तय था लेकिन विधायक कौन बनेगा जो राजस्थान की विधानसभा में बीकानेर का पहला विधायक बनकर जायेगा यह तय नहीं था।
इन सबके बीच एक जानी मानी शख्सियत ऐसी थी जो महाराजा करणीसिंह के नजदीकी तो थे ही साथ मोतीचंद खंजाची के भी नजदीकी थे। वे थे एम ए साहब जी हां एम ए साहब सूरजकरण जी आचार्य। सूरजकरण जी आचार्य बीकानेर में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने एम ए की परीक्षा पास की थी इसलिए लोग इनको सम्मानपूर्वक एम ए साहब ही कहने लगे। सूरजकरण जी ने अपने मित्र मोतीचंद खजांची को एक राय दी कि आप अपना चुनाव निषान तीर कमान मांग ले। क्योंकि सूरजकरण जी आचार्य यह बात जानते थे कि महाराजा करणीसिंह ने भी चुनाव निषान तीर कमान मांगने का मानस बनाया है। इसलिए उन्होंने अपनी बुद्धिमता की राय खजांची जी को भी दी। मोतीचंद जी खजांची ने यह राय मानी और चुनाव में महाराजा करणीसिंह जी का सांसद के लिए चुनाव निषान तीर कमान बना और विधायक चुनाव के लिए मोतीचंद खंजांची का  चुनाव निषान भी तीर कमान बना। लोगों ने पहली बार मतदान किया था और चुनाव प्रक्रिया की बहुत ज्यादा जानकारी आमजन को नहीं थी इसलिए लोगों ने महाराजा करणीसिंह जी चुनाव निषान तीर कमान को आधार मानकार दोनों बैलेट पेपर पर तीर कमान को वोट दिया और सांसद के लिए महाराजा करणीसिंह जी के साथ साथ मोतीचंद जी खजांची भी चुनाव जीत कर बीकानेर के पहले विधायक बने। मोतीचंद खजांची को इस चुनाव मंे 5095 वोट प्राप्त हुए जबकि उनके प्रतिद्धद्धी दिनानाथ को, जो कि रामराज्य परिषद के उम्मीदवार थे, 4546 वोट प्राप्त हुए। ये किस्सा आज भी शहर के लोगों की जुबान पर है और जब भी चुनाव होते हैं तो ये चर्चा रहती है। पहला चुनाव पहला सांसद और पहला विधायक एक दिलचस्प किस्सा बनाती है।

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