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जय जय जननी माॅं

By SHYAM NARAYAN RANGA - Monday, June 22, 2015 No Comments
Shyam Narayan Ranga
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
यह कविता है या नहीं मुझे नहीं पता पर एक कविता मानकर मैंने इस रचना को 1.02.1991 को लिखा था जब मैं राजस्थान बाल मंदिर स्कूल में कक्षा नौंवीं ए का विद्यार्थी था। उस समय मेरी उम्र 15 साल की थी। आज आप सबके सम्मुख मेरी उस समय की मतलब बालक श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’ की रचना प्रस्तुत है। आपको जैसी भी लगे प्रतिक्रिया जरूर दें। यहाॅं जननी माॅं से तात्पर्य इस भारत भूमि की मिट्टी से है जिसमें हम सबने जन्म लिया है।

जय जय जननी माॅं हे तू जय जय जननी माॅं
हिन्दू भी है यहाॅं, सिक्ख भी है यहाॅं, मुस्लिम और ईसाई,
दामन फैलाए बैठी माॅं तू तेरी लीला अपरम्पार,
जय जय जननी माॅं हे तू जय जय जननी माॅ ।

हिन्दू को भी अपनाया तूने, मुस्लिम को भी अपनाया
भेद न किया तूने माॅं बस अपना प्या जताया।
तेरे लिए सब एक समान, तेरी लीला अपरम्पार,
जय जय जननी माॅं हे तू जय जय जननी माॅं।

पापी को भी अपनाया तूने, बेईमानों को भी अपनाया,
आज के भ्रष्टाचारियों को सही मार्ग दिखलाया,
सबके साथ समान भाव से अपना प्या जताया,
तेरे लिए सब एक समान, तेरी लीला अपरम्पार,
जय जय जननी माॅं हे तू जय जय जननी माॅं।

अपने बेटों की विनती सुनलो माॅं इसी तरह अपना प्यार जताओ,
भटके हुओं को सही मार्ग दिखाओ,
तेरा आषीष हमारे सिर पर हमेषा साथ साथ,
जय जय जननी माॅं हे तू जय जय जननी माॅं तेरी लीला अपरम्पार। 


श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’ 
Shyam Narayan Ranga "abhimanue"

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