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क्यों नाहक बदनाम होता है स्टोप तू

By SHYAM NARAYAN RANGA - Friday, June 12, 2015 No Comments
shyam narayan ranga
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
ये कविता मैंने बचपन में लिखी थी जब स्टोप का चलन था और मुझे याद है कि उस समय में राजस्थान बाल मंदिर स्कूल का विद्यार्थी था और काफी मंचों पर मैंने इस कविता का पाठ किया है। इस कविता को मैंने आकाषवाणी बीकानेर के युववाणी कार्यक्रम में भी पढ़ा है। मेरी यह पुरानी लिखी कविता आज मैं अपने ब्लाॅग पर आप सबके साथ बांट रहा हूॅं। उम्मीद है बालक श्याम नारायण रंगा की यह कविता आपको पंसद आएगी ।



क्यों नाहक बदनाम होता है स्टोप तू
और सासूएॅं बच जाती है, बस थोड़ा सा हाथ होता है ननद का
और बहुएॅं जल जाती है।
समधी जिसने कभी मांगी थी राजदूत,
न देने पर वो भी बन गया यमदूत
इस दौड़ में कम नहीं होते हैं देवर,
मरने के बाद इकट्ठे कर लेते हैं भाभी के सारे जेवर,
और बना देते हैं भाभी को पूजनीय
जिसकी हालत इन्होंने कर दी दयनीय
इस सबमें पति का भी कुछ नहीं जाता है,
बस अगले ही साल नई दुल्हन का आगमन हो जाता है,
लेकिन यार स्टोप तू बदनाम ही रह जाता है !!!
एक बात तो बता यार,
तेरी लपट हमेषा बहू को ही क्यों जाती है !!
सास और ननद क्यों बच जाती है !!
खैर जाने दे तू भी क्या कहेगा, खैर जाने दे तू भी क्या कहेगा
नारी को मारने नारी ही आगे आती है, नारी को मारने नारी ही आगे आती है।



श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
पुष्करणा स्टेडियम के पास,
नत्थूसर गेट के बाहर,
बीकानेर  {राजस्थान} 334004

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