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Gokul Prashad Purohit 
लगभग साढे छः फिट की लम्बाई, गोल चेहरा, ओजस्वी आंखे, रौबदार आवाज और व्यक्तित्व में जबरदस्त आत्मविश्वास जी हां कुछ ऐसा ही व्यक्तित्व था मजदूर नेता और स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय गोकुल प्रसाद जी पुरोहित का। बीकानेर की राजनीति के कालजयी व्यक्तित्व गोकुल प्रसाद जी पुरोहित को आज गुजरे 29 साल हो गए हैं परंतु शहर की गलियों में चैक और पाटों पर आज भी बाबा का नाम श्रद्धा व आदर के साथ लिया जाता है।
गोकुल प्रसाद जी पुरोहित बीकानेर में कंाग्रेस पार्टी के प्रथम विधायक थे और बीकानेरआने से से पहले ही वे भीलवाड़ा के मांडल के रास्ते विधानसभा में प्रवेश पा चुके थे। ये वो दौर था जब राजनीति में व्यक्तित्व हावी होते थे और बीकानेर में भी एक कद्दावर व्यक्तित्व की जरूरत कांग्रेस को थी इसीलिए सोची समझी रणनीति के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाडिया ने  श्री गोकुल प्रसाद जी पुरोहित को बीकानेर अपने समय के मजबूत विपक्षी नेता मुरलीधर व्यास को हराने के लिए भेजा था। सुखाडिया जी यह कदम शानदार रहा और बीकानेर को मिला एक मजबूत प्रतिनिधित्व जिसने आज तक बीकानेर की राजनीतिक गलियारों में अपनी साख बना रखी है। बीकानेर विधानसभा या लोकसभा का आज भी कोई चुनाव ऐसा नहीं होता जिसमें कोई नेता बाबा को याद न करता हो।
Shyam Narayan Ranga 
गोकुल प्रसाद जी पुरोहित का बीकानेर आगमन बीकानेर की राजनीति के लिए व बीकानेर के लोगों के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित हुआ। बीकानेर ने इससे पहले विपक्ष की राजनीति ही देखी थी पहली बार बीकानेर को सत्ता में भागीदारी मिली और बीकोनर के लोगों ने आमजन ने जयपुर की ओर नजरें दौड़ाई। यह वह समय था जब बीकानेर में आर्थिक सामाजिक राजनैतिक व अन्य परिवर्तन होने थे। गोकुल प्रसाद जी पुरोहित ने बीकानेर की समस्त गतिविधियों में काजलयी परिवर्तरन किए और सही मायने में बीकानेर के जननेता बनकर उभरे। बात चाहे जामसर में मजदूर आंदोलन की हो या नोखा में सामंतशाही के खिलाफ लोकतांत्रिक मूल्यों की हो, चाहे रामपुरिया काॅलेज के अनुदान का मामला हो या राजकीय श्री डूॅंगर काॅलेज में विभिन्न विषयों के विस्तार की बात हो बाबा हर हर जगह बीकानेर के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर साथ रहे। आजादी के आंदोलन बिहार बंगाल और राजस्थान में अंग्रेजों व सामंतों के खिलाफ लम्बी लड़ाई ने गोकुल प्रसाद जी को एक मंझा हुआ नेता बना दिया था। माणिक्यलाल वर्मा के सानिध्य ने स्वामी सहजानंद सरस्वती के आशीर्वाद का ही ये कारण था कि बीकानेर के लोगों की हर आवाज को बाबा ने अपनी आवाज बनाया। उस दौर में राजनीति में अपने से आगे लाकर युवाओं का मार्ग प्रशस्त कर बाबा ने बीकानेर की राजनीति की नईं पौध तैयार की और अपने ही घर से बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देकर बीकानेर में शिक्षा की  अलग जगाई। रोजगार के अवसरों का फायदा बीकानेर के तत्कालीन युवाओं को ईतना मिला कि उस दौर में पकड़ पकड़ कर सरकार की नौकरियों में युवाओं को भागीदारी मिली और आज वह दौर है कि उस समय का युवा आज रिटायर होकर अपने घर बाद में जाता है बाबा की मूर्ति पर शीश नवाने पहले आता है। 
राष्ट्र के प्रति बाबा का समर्पण यह था कि स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़चढ़ कर और खुल कर हिस्सा लेने वाले गोकुल प्रसाद जी पुरोहित ने कभी भी स्वतंत्रता सेनानी का ताम्रपत्र नहीं लिया उनका मानना था कि राष्ट्र की सेवा का तमगा लेने की जरूरत नहीं है। अधिकारियों की तानाशाही पर बाबा का लोकतांत्रिक डंडा हर वक्त चलता था और ईमानदारी की उनकी छवि ऐसी थी हर अधिकारी उनके सामने श्रद्धा से ही बात करता था। उनके प्रयासों से बना पुष्करणा स्टेडियम आज कईं राष्ट्रीय आयोजनों का साक्षी बन चुका है। भूमिहीनों का जमीनें दिलाकर उन्होंने गांव गांव में आजादी का अहसास करवाया। आज बाबा हमारे बीच नहीं ह ै लेकिन उनके किए कार्यों को आज भी लोग याद करते हैं। 


श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
पुष्करणा स्टेडियम के पास
बीकानेर 

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