Flash

Latest Posts

टूटते परिवार बिखरते रिश्ते

- Wednesday, October 16, 2024 No Comments

 टूटते परिवार बिखरते रिश्ते 

बिखरते परिवार टूटते रिश्ते 

लाचार परिवार बेबस रिश्ते 

बेबस परिवार लाचार रिश्ते 

रिसते परिवार सीलते रिश्ते 

अनजाने परिवार मनमाने रिश्ते

सुलगते परिवार अंगारते रिश्ते 

बीमार परिवार रोगी रिश्ते 

घबराते परिवार डरते रिश्ते

सकुचाते परिवार सिमटते रिश्ते

स्व होते परिवार स्वाहा होते रिश्ते

घर होते परिवार बन्द होते रिश्ते

ऑफलाइन परिवार आनलाइन रिश्ते

आभाषी परिवार आभाषी रिश्ते 

सम्मानित परिवार अपमानित रिश्ते 

बड़े बड़े परिवार छोटे होते रिश्ते

मुक्त होते परिवार रिक्त होते रिश्ते

ऐसे कैसे परिवार कैसे ऐसे रिश्ते 

बचा लो परिवार निभा लो रिश्ते 

जोड़ो परिवार जोड़ो रिश्ते

आपके परिवार मेरे परिवार 

आपके रिश्ते मेरे रिश्ते


Shyam Narayan Ranga

श्याम नारायण रंगा

कौन करेगा पंचायती, गोविंद या अर्जुन

- Monday, May 13, 2024 No Comments


भारत में वर्तमान में देश की सबसे बडी पंचायत के लिए चुनाव हो रहे हैं। विभिन्न चरणों में हो रहे इस चुनाव में कांग्रेस बीजेपी सहित समस्त राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दल पूरे जोश खरोश व ताकत के साथ मैदान में है। बीकानेर में भी यह चुनाव प्रथम चरण में ही सम्पन्न हो चुका है। कांग्रेस ने अशोक गहलोत सरकार के केबिनेट मंत्री रहे गोेविंद मेघवाल को मैदान में उतारा वहीं बीजेपी ने केन्द्रीय मंत्री और तीन बार  बीकानेर से सांसद रहे अर्जुनराम मेघवाल पर ही दाव खेला। चूंकि दोनों ही अपने अपने क्षेत्र के कददावर राजनेता माने जाते हैं इसलिए चुनावी मुकाबला भी आसान नहीं था। बीजेपी कांग्रेस संगठन सहित दोनों उम्मीदवारों ने भी पूरी ताकत के साथ यह चुनाव लडा। खास बात यह रही कि कांग्रेस का संगठन भी इस चुनाव में पूरी मेहनत करता नजर आया। जहां भाजपा को केडरबेस पार्टी माना जाता है और भाजपा के लिए यह खास बात नहीं होती कि संगठन पूरी तरह मैदान में उतरे वहीं कांग्रेस जैसे मासबेस संगठन ने भी इस बात एक मंच पर आकर पूरी अपनी उपस्थिति दर्ज ही नहीं कराई वरन पूरी शिद्दत से काम भी किया। कांग्रेस के प्रदेश स्तर के बडे नेता बीडी कल्ला अपने क्षेत्र में अपनी टीम के साथ गली गली घूमते नजर आए और पश्चिम बीकानेर में एक कार्यालय खोलकर वहां से चुनाव संचालित किया। इसी तरह गहलोत सरकार में केबिनेट मंत्री रहे भंवरसिंह भाटी ने भी पूरी मेहनत के साथ चुनाव में काम किया। लूणकरणसर के बडे लीडर वीरेन्द्र बेनीवाल को राजी किया गया और इसी तरह मंगलाराम गोदारा, बडे जाटनेता रामेश्वर डूडी की पत्नी विधायक सुशीला डूडी और उनकी टीम भी मैदान में पसीना निकालती नजर आई। अनूपगढ विधायक शिमला नायक भी पूरे उत्साह के साथ चुनाव में काम कर रही थी। पार्टी के शहर अध्यक्ष यशपाल गहलोत व देहात अध्यक्ष विशनाराम भी दिनरात मेहनत में जुटे थे। उधर बीजेपी में अगर गौर किया जाए तो अर्जुनराम मेघवाल खुद केन्द्र में मंत्री है तो उनके साथ उनकी टीम ने पूरी ताकत चुनाव में झोंक रखी थी। शहरी क्षेत्र में सत्यप्रकाश आचार्य और उनकी टीम ने कमान संभाल रखी थी। जहां भाजपा संगठन फील्ड में काम कर रहा था वहीं क्षेत्र के विधायक ज्यादा सक्रिय नजर नहीं आए। लोकसभा क्षेत्र के बीजेपी के कुछ विधायक तो खानापूर्ति करते ही नजर आ रहे थे। पर परम्परा की तरह भाजपा का संगठन आरएसएस के साथ पूरी ताकत से लगा हुआ था। चुनाव विशलेषकों का मानना है कि बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में किसी समय जो हालत कांग्रेस की थी वर्तमान चुनाव में वो हालत भाजपा की नजर आई। फिर भी गोविंद मेघवाल और अर्जुनराम मेघवाल ने चुनाव को रोचक बनाकर रखा और आज तक वोटर यह बता नहीं पा रहा है कि चुनाव जितेगा कौन। 

बीकानेर के चौक, गलियों, मौहल्लों और पाटों पर आजकल यह चर्चा आम नजर आती है कि लोग एक दूसरे से पूछते हैं कि आखिर जितेगा कौन। पाटे पर चर्चा करने वाले लोगों की राय है कि अर्जुनराम मेघवाल के पास अपना काम गिनाने के लिए भले ही कुछ खास न था और न ही केन्द्रीय मंत्री होने के नाते वो कोई बडा काम बीकानेर में करवा सके बावजूद इसके मोदी के नाम पर और राम मंदिर के नाम पर भाजपा ने यह चुनाव शानदार लडा है।वहीं कुछ लोगों की राय है कि गोविंद मेघवाल बडबोले हैं और जातिगत टिप्पणियों के कारण हमेशा चर्चा में रहे और इसी कारण खाजूवाला में उनकी हार हुई लेकिन फिर भरी क्षेत्र के मतदाता ने गोविंद मेघवाल को गंभीरता से लिया और ऐसी छोटी मोटी बातों को नजरअंदाज भी किया है। गोविंद मेघवाल अपनी टिप्पणीयों के कारण आमजन से माफी भी मांगते घूम रहे थे और अर्जुनराम मेघवाल जयश्रीराम के नारे के साथ मोदी की गारंटी की चर्चा पूरे चुनाव में करते रहे। चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले वोटों की कम कास्टिंग को एक वर्ग  लोग कांग्रेस लिए अच्छा मान रहा है तो एक वर्ग कम कास्टिंग को अर्जुनराम मेघवाल के जीत के अंतर को कम करने की दृष्टि से भी देख  रहा है। उम्मीदवारों से बात करने पर यह साफ होता है कि अर्जुनराम मेघवाल शहरी मतदाताओं को लेकर आशान्वित है तो गांविंदराम मेघवाल ग्रामीण मतदाताओं को लेकर उत्साह में नजर आते हैं। चुनावी पंडितों का भी मानना है कि बीकानेर पूर्व व पश्चिम शहरी मतदाता मोदी की गारंटी पर बटन दबाकर आए हैं, ऐसा लगता है  और ग्रामीण मतदाता ने कांग्रेस की न्याय सहित अन्य गारंटियों पर विश्वास जताया है। अब परिणाम का उंट किस करवट बैठता है यह तो चार जून को ही पता लगेगा पर यह जरूर है कि दोनों की पार्टीयां और उनके समर्थक सकारात्मक है। यह तो सब जगह चर्चा है कि टक्कर एकतरफा नजर नहीं आ रही थी, टक्कर जोरदार रही। अब देखना यह है कि बीकानेर से देश की सबसे बडी पंचायत में किसे पंचायती करने का अधिकार मिलता है।


Shyam Narayan Ranga

जैसा था पहले वैसा नहीं है अब बीकानेर

- Thursday, May 9, 2024 1 Comment


एक समय था जब पश्चिमी राजस्थान के सूदूर रेगिस्तान में बसा बीकानेर शहर अपनी सरलता, सहजता, सौम्यता और संस्कृति के कारण पूरे देश में विशिष्ट स्थान रखता था। बीकानेर का नाम आते ही सभी के दिल में पाटों पर बसा, रेगिस्तान में फैला, सर्दियों में भयंकर ठंड के साथ कोहरे की चादर लपेटे और गर्मियों में जबरदस्त लू के थपेडों के साथ धूल भरी आधियों की छवि सामने आती थी। साथ ही तस्वीर बनती थी ऐसे शहर की जो होली के रंगों से सरोबार है और गणगौर के गीत गा रहा है। ऐसा शहर जहां जैन समाज के महान संतों ने अपनी वाणी सुनाई और जहां मुस्लिम समाज ने साथ बैठकर दिपावली मनाई। बीकानेर से बाहर रहने वाले प्रवासी अपने शहर बीकानेर में घी, दूध, दही छाछ पीने आते थे । जब प्रवासी बीकानेरी अपनी कर्मभूमि  पर बीमार हो जाता तो वहां उसको सलाह दी जाती थी कि आप अपने शहर बीकानेर चले जाईए और स्वस्थ हवा पानी लिजिए। अपणायत की संस्कृति के साथ सबको अपने में समेटे ये शहर सबका स्वागत करता था और जहां चैन था, सूूकून था, शांति थी। अपराध नाममात्र का था। एक ऐसा शहर जहां लोग सुरक्षित थे और ऐसा कहा जाता था कि अगर देर रात्रि में भी कोई औरत गहनों से लदी हुई अकेली अपने घर जा रही है तो वो अपनी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत है। जहां अनजान व्यक्ति को देखकर पाटों पर बैठे लोग आवाज देकर पूछते थे कि भाई कौन हो, किसका पूछ रहे हो। यह सामाजिक मोनिटरिंग बीकानेर की धरोहर थी और किसी की हिम्मत नहीं थी कि वो कोई गैर कानूनी हरकत कर सके। परंतु समय की करवट जब बदली तो उसका असर बीकानेर पर  भी पडा। आज बीकानेर वैसा नहीं रहा जैसा हुआ करता था। आज बीकानेर वो ही है, पाटे  वो ही है, त्यौंहार वैसे ही आते है  लेकिन जो रंगत जो रौनक और जो अपनायत थी उसका अभाव साफ देखने को मिलता है। स्व की कोटर में कैद होता शहरवासी रोकने टोकने की आदत छोड चुका है। सामाजिक मोनिटरिंग के अभाव ने अपराधों को बढावा दिया है। आज आमजन के मन में यह बात घर कर गई है कि हम क्यों किसी को कुछ कहें, टूटते परिवारों में साझा चूल्हे की विरासत को नष्ट कर दिया है और संबंध दरकते नजर आते हैं। आज घर का  बुजुर्ग भी अपने ही घर के युवा को टोकने से डरता है। बुजुर्ग का ये सोचना है कि अगर सामने बोल गया तो मेरी बची खुची इज्जत भी जाती रहेगी। नशे जैसी जानलेवा बीमारी ने अपने पांव पसार लिए हैं। क्रिकेट के सट्टे ने गली गली में नए व्यवसायी पैदा कर दिए हैं। साम्प्रदायिक सौहार्द भी दरकता नजर आता है। पिछले दशक में कईं बार साम्प्रदायिक सौहार्द पर चोट होती नजर आई। मगर साम्प्रदायिक सौहार्द को कहीं न कहीं आज भी बचाकर रखा गया है। उत्तेजना के पल कईं बार आते हैं परंतु लगभग साढ़े पांच शताब्दी की विरासत भारी पडती है। जुए की लत ने युवाओं को दिशाहीन किया है। अनचाहे ब्याज का धंधा कईं जीवन लील चुका है। कहा जाता था कि बीकानेर में पीने का पानी कुओं से निकाला जाता था इसलिए गहरा पानी पीने वाले लोगों की सोच भी गहरी होती थी और उनका जीवन संजीदा होता था परंतु नहरी सतही पानी पीने वाले लोग अब गहरी सोच के नहीं रहे। नहर के गंदे पानी ने विचार को भी दूषित किया है। नित होती चैन स्नेचिंग, लूटपाट, चोरी आदि की घटनाओं ने आमजन में असुरक्षा की भावना बनाई है। खाने पीने में मिलावट खुलेआम जारी है। आए दिन सरकारी अमला मिलावट और जमाखोरी को पकडता है। मिलावट करने वाले लोग भीतर छुपे ऐसे आतंकवादी हैं जो इस शहर की मूल संस्कृति को खराब कर रहे हैं। आज कोलकत्ता, मुम्बई सहित प्रवासी बीकानेरी यह बात खुलेआम कहता नजर आता है कि आज बीकानेर के दूध दही घी छाछ में पहले जैसी बात बिलकुल भी नहीं रही है। त्यौंहारों की चमक और रौनक भी पहले जैसी बिलकुल नहीं रही है। किसी समय अक्षय तृतीया और अक्षय द्वितीया पर महीने महीने भर पतंग उडाने वाला शहर आज त्यौंहार के दिन भी उस उत्साह में नजर नहीं आता है। होली की रौनक में पिछले दो दशकों से खासा फीकापन आया है। दिपावली तो ऐसे लगता है जैसे   दिखावे का ही त्यौंहार रह गया है। शादी विवाह में  भी परम्पराओं का स्थान आधुनिकता ने ले लिया है। बढ चढ कर खर्चा करना इस मितव्वययी शहर में रच बस सा गया है। धार्मिक स्तर पर भी एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृति बढी ही है। कुल मिलाकर जैसा था वैसा नहीं रहा मेरा शहर। आज स्थापना दिवस पर एक बार इस विषय पर जरूर सोचें और मनन चिंतन करें कि हम लगभग साढे पांच सौ साल की विशाल व समृद्ध परम्परा को कैसे अक्षुण बनाए रखें और शहर के प्रति सच्चा प्रेम ये ही होगा कि कि हम सब जी जान से प्रयास करें कि बीकानेर को बीकानेर रहने दें। जय जय बीकाणा।

श्याम नारायण रंगा 

मेरा बचपन मेरा पार्क

- Wednesday, June 30, 2021 1 Comment

Laimai Park, Bikaner
इक्कड बिक्कड बम्बे बो से गुजरा मेरा सुनहरा बचपन जिसकी यादें मेरे स्मृतिपटल पर ज्यों की त्यों पड़ी है, लुकाछिपी, धाडधुक्कड, मारदडी, सतोलिया, सावन के झूले, बहनों के साथ बर्फी का खेल, रस्सीकुद, पत्थर के टुकडों से गडडे खेलने के सजा मेरा बचपन चिंता, भय, फिक्र, मान, अपमान से एकदमदूर, अल्लहडता, फक्कडपन, चुहलबाजी के साथ बीता। कभी मेरे खुद के घर पर तो कभी शहर के अंदरूनी भाग में स्थित ननिहाल में। मीडिल क्लास परिवार का मैं अपने माता पिता की एकलौती संतान भले था पर जीवन में आज तक कभी इस बात का अहसास मेरे परिवार के भाई बहनों ने होने ही नहीं दिया। पापा के दस भाई बहनों की संतानों में मेरे दादाजी का सबसे बडा पोता और मेरे ननिहाल में नानाजी का सबसे बडा नाती मैं ही हंूं। हमारे साझे चूल्हे में, मेरा बचपन कईं यादों से घिरा है उसमें से एक है महात्मा लाली माई पार्क जो मेरे घर के पिछवाडे में स्थित है और मौहल्ले के बच्चों का प्रिय स्थल भी। पार्क में उस समय बडे बडे सफेदे के पेड हुआ करते थे जिनकी छांव में गर्मियों की तपती दुपहर में शीतल छांव का अहसास होता रहता था। इस पेड के फल को ईलायची मानकर हजारों बार हम सबने खाया है। इसके पत्ते की बंदरवार बनाकर खेलने से हम चूकते नहीं थे। जेठ की गर्म दुपहरी में जब स्कूल की छुट्टियां होती थी तो यह पार्क हमारा दोपहर के समय का स्थायी पता ही होता था। यहां लगी दूब में खेलने का एक फायदा यह था कि अगर गिर भी जाओ तो चोट लगने का भय नहीं होता था। पार्क में लगे झूलों पर बारी बारी से झूलने में कभी कभार गलत गिनती गिनकर ज्यादा झूले खाने पर जो महानता का अहसास होता था उसका कोई सानी नहीं था। फिर खुद ही यह बता देना कि आज मैंने झूठ बोलकर दस झूलों का ज्यादा आनंद लिया है बाकी भाई बहनों के चिढाने का कारण भी बन जाता था। पार्क में बनी गाय की कुंडी में गाये ंतो पानी पीती ही थी साथ ही साथ हमारे लिए वह कुंडी किसी स्वीमिंग पूल से कम न थी। जब तक कोई बडा बुजुर्ग डांट डपट कर भगा न देता गर्मी के उस स्वीमिंग पूल से बाहर निकलने का मन ही नहीं करता था। कभी कभी हम सभी बच्चे मिलकर ईंट के टुकडों से इस गाय की कुडी की सफाई भी कर देते थे। गाय की कुडी पर लगे सार्वजनिक नल के स्टेंड से गिरकर चोट भी खाई है और ज्यादा दर्द तो तब होता जब यह चोट टोंटी की नोंक से लगी होती और कभी कभार हल्का खून भी आ जाता था। इस पार्क में प्रवेश करने का जो गेट था वह गोल था और उसको घुमाकर एक एक करके हम बच्चे पार्क में प्रवेश करते थे, बहुत बार ऐसा होता कि उस गेट में हमारी चप्पल फंस जाती या कभी पांव का अंगूठा या उंगली उसकी भेंट चढ जाती तो खून जरूर आता फिर सभी भाई बहन मिलकर कोई बी डी का कागज ढूंढते जो बडी मुश्किल से मिलता और उस घाव पर बी डी के कागज की बैण्डेज लगाकर निष्फिक्र हो जाते कि हो गया ईलाज और उससे घाव पर बहता खून रूक भी जाता। पार्क के एक हिस्से में प्याऊ बनी हुई थी जो आज भी कायम है, उस प्याऊ की मटकियों से ठण्डे पानी पीने से जो गला तर होता उसकी संतुष्टि आज भी दिल को सुकुन देती है। पार्क में कुछ झाडियां थी और कभी कभी अगर कोई कांटा चुभ गया तो सभी भाई बहन डाॅक्टर बन जाते और कांटा निकालने का प्रयास करते अगर निकल गया तो ठीक वरना मेरे चाचाजी जो ऐसे कांटे निकालने में एक्पर्ट थे उनसे कांटा निकलवाया जाता, वे डांटते और बिना चप्पल बाहर जाने के लिए खरी खोटी सुनाते सुनाते वह छोटा सा आॅपरेशन कर ही देते थे। फिर वही घोडे वही मैदान। खेलते खेलते भूख लगना तो स्वाभाविक ही था और याद आती घर की रसोई की और एक ने भूख की बात छेड दी तो सभी भाई बहनों को भी भूख लग जाती। सारे के सारे पहुंचते घर की रसोई में और दादी, मम्मी या चाची दोपहर की भूख मिटाते। कभी कभार ऐसा होता कि घर में सिर्फ रोटी होती और सब्जी नहीं बनी होती तो ऐसे में नमक मिर्ची की चटनी बनाकर खाना एक प्यारा शगल था। रोटी पर हल्की तेल की धार देकर उस पर नमक मिर्च लगाकर बीडकी बनाकर खाने को मैं कभी नहीं भूल सकता। भुजिया के साथ रोटी जो बचपन से लेकर आज तक खाई जा रही है। आज गर्मियां भी आती है, पार्क भी वहीं हैं, सफेदे के पेडों का स्थान नीम पीपल के पेडों ने ले लिया है, दूब तो आज भी बेहतर ढंग से लगी हुई है, पार्क का गेट, झूले सब ज्यो के त्यों है अगर नहीं है तो वो नहीं है मेरा बचपन। बस याद है बचपन की, मन करता है आज भी खेलता खेलता आऊ और आवाज दूं बाई {मेरी दादी} भूख लगी है बीडकी बना दें। पर ए मेरे दिल जरा ठहर ...आज बाई भी नहीं है और दादा एक चाचा और पापा भी नहीं हैं जिनके कारण वो निष्फिक्र बचपन था। बस यादें ..यादें रह जाती है। 


श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’


बीकानेर का राठौड राजवंश

- Friday, January 29, 2021 No Comments

 
बीकानेर नगर की स्थापना राठौड़ राजा राव जोधा के पुत्र राव बीका ने की थी। ऐसा नहीं है कि नगर स्थापना से पूर्व यह क्षेत्र निर्जन था। राठौड़ राजा राव बीका की नगर स्थापना से पूर्व बीकानेर के क्षेत्र जांगल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यह क्षेत्र मारवाड़ के उत्तर क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। इस प्रदेश को उस समय कुरू प्रदेश के नाम से जाना जाता था। मारवाड़ के शासक राव जोधा के छः रानियां व 17 पुत्र थे। जिसमें दूसरे पुत्र बीका ने 1465 में जांगल प्रदेश में राठौड़ वंश की रियासत की स्थापना की तथा 1488 में बीकानेर नगर बसाया। अतः राव बीका को बीकानेर राज्य का संस्थापक माना जाता है। राव जोधा का सबसे बड़ा पुत्र राव नीबा, राव जोधा के शासन काल में ही स्वर्गवासी हो गया था। दूसरा पुत्र राव बीका ही मारवाड़ का उत्तराधिकारी था लेकिन राव जोधा ने अपनी प्रिय पत्नीध्रानी जसमादे के प्रभाव में आकर दूसरे पुत्र राव सातल को जोधपुर का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। अपने पिता राव जोधा की इस हरकत से बीका नाराज हो गया। अपने चाचा के साथ राव बीका ने जोधपुर छोड दिया और करणी माता के आशीर्वाद से जांगल प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इसी कारण इस क्षेत्र के राजा को जय जंगलधर बादशाह भी कहा गया। बीका के बढते प्रभाव से जोधपुर के राजा व राव बीका के पिता राव जोधा को डर लगने लगा और उसको यह भय सताने लगा कि कहीं उनका बेटा अपना अधिकार पाने के लिए जोधुपर पर आक्रमण न कर दे। परंतु राव बीका ने अपने पिता को वचन दिया कि वह कभी भी जोधुपर पर आक्रमण नहीं करेगा व जोधपुर रियासत को अपना ज्येष्ठ मानेगा। बीकानेर के राजाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:-

1.राव बीका (1465-1504)


Rao Bikaji 
राव जोधा के पुत्र राव बीका ने 1465 ई. में जांगल प्रदेश जीतकर बीकानेर के राठौड़ राजवंश की स्थापना की। एक मान्यता के अनुसार जांगल प्रदेश को राव बीका और जाट नेता नेरा ने मिलकर जीता, दोनों के नाम पर इसका नाम बीकानेर रखा । इस अभियान में राव बिका को करणी देवी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ जिससे बीका ने अनेक छोटे बड़े कबीलो को जीत लिया। इस प्रकार बीकानेर में राठौड़ वंश की स्थापना हुयी। इन्होंने 1488 में बीकानेर शहर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया जो द्वितीय राठौड़ सत्ता का प्रमुख केंद्र बन गया । उसकी मृत्यु होने पर उसका ज्येष्ठ पुत्र नरा बीकानेर माँ स्वामी बना। इसके पश्चात बीका के दो पुत्र नारा और लूणकरण थे जो बीकानेर के स्वामी बने इन्होंने जैसलमेर पर भी अपना अधिकार जमा लिया

2. राव लूणकरण

नारा का देहांत 13 जनवरी 1505 को हो गया। नारा के निःसंतान होने से उसका छोटा भाई लूणकरण बीकानेर का शासक बना। राव लूणकरण पिता की भांति साहसी और वीर योद्धा था। उसकी शक्ति का लोहा रुद्रेवा, चायलवाडा आदी स्थानों के सरदार मानते थे, जिनका उसने निजी भुजबल से दमन किया व बड़ा दानी था। करमचंदवशोकिर्तनम काव्य में उसकी दानशीलता कर्ण से की गई है,  बिठू सुजा ने अपने जैतसी रो छंद में कलयुग का कर्ण कहां है। 1526 में धोसा नामक स्थान पर इसकी मृत्यु हो गई थी।

3. राव जैतसी (1526-1542 ई.)

बीकानेर राज्य का प्रतापी शासक एवं राव लूणकरण का पुत्र था इनके समय कामरान ने भटनेर पर आक्रमण किया उस पर अधिकार कर लिया 1534 में राव जैतसी में मुगल सेना पर आक्रमण कर भटनेर को मुगलों से छुड़ा लिया। इस युद्ध का वर्णन बिट्ट सुजा द्वारा लिखित राव जैतसी रो छंद में मिलती है खानवा के युद्ध में राव जैतसी अपने कुंवर कल्याण को सांगा की सहायता के लिए भेजा था । पहोबाध्साहेबा- बीकानेर शासक राव जैतसी में मारवाड़ के शासक मालदेव के बीच युद्ध हुआ इस युद्ध में राव जैतसी मारा गया था बीकानेर राज्य की पराजय हुई मालदेव ने बीकानेर का व्यवस्थापक कुंपा को नियुक्त किया था।


4.राव कल्याणमल(1544-1574) 

1544 में कल्याणमल बीकानेर का राजा बना। राव जैतसी के पुत्र जिन्होंने गिरिसुमेल के युद्ध मे शेरशाह सूरी की सहायता की थी । इस युद्ध के बाद शेरशाह ने बीकानेर राज्य का शासन राव कल्याणमल को सौंपा। बीकानेर के पहले शासक जिन्होंने 1570 ई. के अकबर के नागौर दरबार मे अकबर की अधीनता स्वीकार की और वैवाहिक संबंध स्थापित किए तथा अपने छोटे पुत्र पृथ्वीराज को , जो उच्च कोटि का कवि और विष्णु भक्त था, अकबर की सेवा में भेजा । इन्ही पृथ्वीराज ने ‘वेलि किसन रुक्मणी री’ की रचना की। अकबर ने 1572 में कल्याणमल के पुत्र रायसिंह को जोधपुर का शासक नियुक्त किया।

5. महाराजा रायसिंह(1574-1612) का जन्म 20 जुलाई 1541 को हुआ। इसके पिता राव कल्याणमल थे। इनको राजपूताने का कर्ण महाराजा की उपाधि प्रदान की गई। नागौर दरबार के बाद 1572 ई. में अकबर ने इन्हें जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया। मुगल दरबार में जयपुर के बाद बीकानेर राजघराने का ही अकबर से अच्छा संबंध कायम हुआ। महाराजा रायसिंह ने 1573 में गुजरात के मिर्जा बंधुओं का दमन किया, 1574 में मारवाड़ के चंद्रसेन व देवड़ा सुरताण का दमन किया। महाराजा रायसिंह 1591 में खानेखाना की सहायता के लिए कंधार गये थे, 1593 रायसिंह थट्टा अभियान के लिए दानियाल का दमन करने गए, अकबर ने 1593 में जूनागढ़ तथा 1604 में शमशाबाद तथा नूरपुर की जागीर दी, जहांगीर ने रायसिंह का मनसब 5000 जात व 5000 सवार कर दिया। 1594 ई. में मंत्री कर्मचंद की देखरेख में बीकानेर किले (जूनागढ़) का निर्माण कराया जिसमे ‘रायसिंह प्रशस्ति’ उत्कीर्ण करवाई। महाराजा रायसिंह को मुंशी देवीप्रसाद द्वारा ‘राजपूताने का कर्ण’ की उपमा दी गयी।‘रायसिंह महोत्सव’ व ‘ज्योतिष रत्नमाला’ की भाषा टीका, महाराजा रायसिंह द्वारा लिखित रचनाएँ।  ‘कर्मचन्द्रों कीर्तनकम काव्यम’ इस ग्रन्थ में महाराजा रायसिंह को राजेन्द्र कहा गया है तथा लिखा है कि वह विजित शत्रुओं के साथ भी बड़े सम्मान का व्यवहार करते थे। महाराजा रायसिंह की मृत्यु सन 1612 ई. में बुरहानपुर में हुई।


6. दाव दलपत (1612-13)

महाराजा रायसिंह की मृत्यु के बाद दलपत सिह बीकानेर का शासक बना। राव दलपत का सम्राट जहांगीर से मनमुटाव हो गया। जहांगीर ने दलपत को गद्दी से हटाकर उसके भाई सूरसिह को शासक बना दिया।


7. महाराजा कर्ण सिंह (1631-1669)

पिता सुरसिंह के देहावसान के बाद ये सन 1631 में बीकानेर के सिंहासन पर बैठे। ये बीकानेर के प्रतापी शासक थे मुगल शासक औरंगजेब ने इन्हें जांगलधर बादशाह की उपाधि दी। मुगल शहजादों मे उतराधिकार संघर्ष के समय कर्णसिहं तटस्थ रहे। लेकिन उन्होंने अपने दो पुत्रों- पद्मसिंह और केसरीसिंह को औरंगजेब की ओर से भेजा।

मतीरे की राड़ - 1644 में कर्ण सिंह और अमर सिंह के बीच हुई थी जिसमें अमर सिंह विजय रहे । 17 वी शाताब्दी में बीकानेर शासक कर्ण सिंह ने बीकानेर से 25ाउ दूर देशनोक में करणी माता का मंदिर बनाया था। कर्णसिंह के काल की रचनाओं मे साहित्य कल्पद्दुम व कर्णभूषण (गंगा नंद मैथिली द्वारा रचित) प्रमुख हैं।

8. महाराजा अनूप सिंह –

  • औरंगजेब द्वारा ‘माही मरातिव’ और महाराजा की उपाधि
  •  बीकानेरी चित्रकारी का स्वर्ण युग, उस्ता कला को लाहौर से बीकानेर लाने का श्रेय
  • अनूप संग्रहालय का निर्माण
  • 33 करोड़ देवी देवताओं के मंदिर की संज्ञा वाले बीकानेर के हेरम्भ गणपति मंदिर का निर्माण का

9. सूरत सिंह राठौड

हनुमानगढ़ को पहले भटनेर (भट्टी राजपूतों का दुर्ग) कहा जाता था। 1805 ई. में बीकानेर रियासत में शामिल किये जाने के बाद इसको ‘हनुमानगढ़’ का नाम दिया गया था। सूरत सिंह के समय 1805 ई. में 5 माह के विकट घेरे के बाद राठौड़ों ने इसे ज़ाबता ख़ाँ भट्टी से छीना

यहाँ बीकानेर राज्य का एकाधिकार हुआ। मंगलवार के दिन इस क़िले पर अधिकार होने के कारण इस क़िले में एक छोटा सा हनुमान जी का मंदिर बनवाया गया तथा उसी दिन से उसका नाम ‘हनुमानगढ़’ रखा गया।

गंगानगर के सूरतगढ़ शहर तथा बीकानेर के सूरसागर झील के निर्माण का श्रेय

सूरत सिंह ने 1818 ई. में अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सन्धि कर ली थी।

10. महाराजा सरदार सिंह –

क्रांति के समय न केवल बीकानेर के महाराजा बल्कि अंग्रेजो की सहायता हेतु बाडलू गाँव (हिस्सार) तक जाने वाले एकमात्र राजस्थानी शासक 

11. महाराजा गंगा सिंह –

Mahara Gangasingh
  • प. नेहरू द्वारा राजस्थान के भागीरथ की संज्ञा
  • आधुनिक बीकानेर के निर्माता
  • अंग्रेजो द्वारा ‘केसर ऐ हिन्द’ की उपाधि
  • ऊँटो की सैन्य टुकड़ी – गंगा रिसाला
  • 1899 में चीन के साथ अफीम युद्ध में तथा 1900 में दक्षिण अफ्रीका में डचों के विरुद्ध बोआर के युद्ध में अंग्रेजो के साथ
  • 26 अक्टूम्बर 1927 में राजस्थान की प्रथम गंगनहर सिंचाई परियोजना का लोकार्पण
  • लन्दन में आयोजित तीनो गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने का श्रेय
  • आधुनिक गंगानगर शहर का निर्माण
  • 1922 से 1928 तक b.h.u. के कुलपति

12. महाराजा सार्दुल सिंह

आजादी एंव एकीकरण के समय बीकानेर के महाराजा


अलग पहचान है बीकानेर की रम्मतों की

- 1 Comment

Rammat At Bikaner In Holi Festival
होली का त्योहार पूरे विश्व में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। भारत में यह त्योहार भारतीय सभ्यता और संस्कृति का शानदार प्रतीक है। भारत का प्रत्येक प्रदेश होली में अपनी विशिष्टता लिए है। जिस प्रकार ब्रज की लट्ठमार होली ने अपनी अलग पहचान बनाई है, उसी प्रकार राजस्थान के बीकानेर की होली में खेली जाने वाली रम्मतों में भी अपनी खास विशेषता है।


रम्मत का शाब्दिक अर्थ है खेलना। लेकिन बीकानेर में यह खेल शहर के पाटों पर और चैकों में खेला जाता है और होली के मौसम में इन रम्मतों में बीकानेर की संस्कृति की समृद्धता स्पष्ट झलकती है।


रम्मतें नाटक की एक विधा है जिसमें मनोरंजन के लिए तरह-तरह के नाटक खेले जाते हैं या विभिन्न प्रकार की गायकी से दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है। बीकानेर में मूलतः दो तरह की रम्मतें देखने को मिलती हैं।

पहली प्रकार की रम्मतें स्वांग मेरी की रम्मतें हैं जिनमें ख्याल, लावणी व चैमासों के माध्यम से प्रस्तुति दी जाती है। रम्मतों में ख्याल हर साल नए जोड़े जाते हैं और इन ख्याल के माध्यम से देश व प्रदेश की वर्तमान व्यवस्थाओं पर तथा सामाजिक कुरूतियों पर भी कटाक्ष किया जाता है और इसका प्रभावशाली प्रस्तुतिकरण होता है।


सामंतशाही दौर में दम्माणी चैक में खेली जाने वाली रम्मत में स्वर्गीय बच्छराज जी व्यास ने ख्याल में श्भगवान पधारो भारत में, तुम बिन पड़ रहया है फोड़ा.......श् का प्रस्तुतिकरण इतना प्रभावी तरीके से किया कि उस समय इस ख्याल पर सरकारी प्रतिबंध लग गया था।


इसी तरह वर्तमान में भी महंगाई, राजनैतिक भ्रष्टाचार सहित दहेज, भ्रूण हत्या, दल-बदल सहित कईं विषयों को इन ख्यालों के माध्यम से उठाया जाता हैं।


इस साल की रम्मतों में राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी सहित अरविंद केजरीवाल भी शामिल है और भ्रष्टाचार को ज्यादा तवज्जो दी गई है। इन रम्मतों का दूसरा आकर्षण है लावणी।

बीकानेर की रम्मतों में लावणी दो तरह की है। एक तो भक्ति रस पर आधारित लावणी है, जिसमें भगवान कृष्ण व राधा के रूप सौंदर्य का वर्णन किया गया है और दूसरी है सुंदर नायिका के नख-शिखा सौंदर्य से वर्णित शायरी। इन रम्मतों की लावणी में नायक अपनी नायिका को बरसों बाद देखता हैं और उसके रूप सौंदर्य का वर्णन करता है और यह साबित करने की कोशिश करता है कि मेरी नायिका से सुंदर कोई स्त्री इस पृथ्वी पर नहीं है। नायिका अपने इस सौंदर्य से परिचित है और वह नायक को अपने पतिव्रत होने का सबूत देती है।


इसी प्रकार इन रम्मतों का अगला चरण है चैमासा। चैमासे को लेकर यह बात है कि इस मरू प्रदेश के पुरुष किसी समय में दूर देशों में कमाने के लिए जाया करते थे और चैमासे की ऋतु में उनकी पत्नी या प्रेयसी उनको याद करती थी और भगवान से प्रार्थना करती थी कि इस चैमासे में उसका पति या प्रेमी घर आए।

वास्तव में चैमासे में नायक व नायिका की विरह वेदना का वर्णन किया जाता है। स्वांग मेरी की इन रम्मतों में ख्याल लावणी चैमासे के क्रम से गुजरती यह रम्मत रात भर चलती है और अलसुबह इसका समापन हो जाता है।


दूसरी तरह की रम्मतें है कथानक प्रधान। इनमें प्रमुख रूप से हड़ाऊ मेरी की रम्मत, भक्त पूरणमल की रम्मत और शहजादी नौटंकी और वीर अमरसिंह राठौड़ की रम्मत का मंचन किया जाता है। इन सब कथानकों की कहानी अलग-अलग है। इसमें हड़ाऊ मेरी की रम्मत में प्यार है, छेड़छाड़ है और राजा-रानी का रूठना-मनाना भी है।

भक्त पूरणमल की रम्मत में पूरणमल सौतेली मां को प्यार करने से मना कर देता है और अपने जीवन का बलिदान तक कर देता है। इस रम्मत में वेदों व पुराणों का उल्लेख किया गया है और शानदार जीवन चरित्र का प्रस्तुतिकरण है।

शहजादी नौटंकी में भी कथानक शानदार है और शहजादी से शादी करके नायक अपना प्रण पूरा करता है। वीर अमरसिंह राठौड़ की रम्मत वीर रस की शानदार कथानक लिए हुए रम्मत है, जिसमें नागौर के राव अमरसिंह के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है। वास्तव में बीकानेर में खेली जाने वाली इन रम्मतों में परिवार व एक विशेष प्रकार की जाति समुदाय के लोग जुड़े हैं और इन्होंने अपने परिवार की परम्परा के तौर पर इन रम्मतों को आज तक कायम रखा है।

कुछ रम्मतें जरूर बंद हो गई है परंतु जो रम्मतें वर्तमान में खेली जा रही है, उनके प्रति कलाकारों का समर्पण व उनकी कला की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। लुप्त हो रही यह कला बीकानेर में आज भी जीवित है और इनका मंचन करने वाले कलाकारों को यह नहीं पता कि वे इस देश की एक शानदार समृद्ध वैभवशाली परम्परा को संजोकर रख रहे हैं।

Rammat At Bikaner Holi

मैं यहां यह बता देना चाहता हूं कि बीकानेर की यह रम्मतें पद्य में है और रातभर गाकर इनका मंचन किया जाता है। जो इन रम्मतों की व इनको प्रस्तुत करने वालों की कला में जान डाल देने वाला पक्ष है।

भक्त पूरण मल की रम्मत के कलाकर किसन कुमार बिस्सा ने बताया कि किसी कारणवश दिल्ली व जयपुर में जवाहर कला केन्द्र और रवीन्द्र रंगमंच पर रम्मत प्रस्तुत करने का मौका मिला, तो वहां उपस्थित कलाकारों व दर्शकों ने अपने दांतों तले अंगुली दबा ली और काफी प्रस्ताव इन रम्मतों को देश व प्रदेश में प्रस्तुत करने के लिए आ रहे हैं लेकिन साधन के अभाव में वह यह काम नहीं कर पा रहे हैं।

इसी तरह ख्याल का निर्माण व लावणी को गाना व रम्मत में दौबेला, चैबेला, कड़ा, दौड, लावणी, ध्रुपद, कली, भेटी सहित विभिन्न प्रकार के पद्यात्मक प्रयोग इन रम्मतों के स्तर को काफी बड़ा कर देते हैं।


इन रम्मतों में संगीत की मुश्किल से मुश्किल साधना को काफी सरलता से साधा जाता है। जिस किसी बड़े कलाकार ने आज तक इनका मंचन देखा है उसने इसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। जरूरत है सरकारी स्तर पर या संगठनात्मक स्तर पर ऐसे प्रयासों की कि बीकानेर की यह रम्मतें अपना वैभव कायम रख सके और इनको संजोकर रखा जा सकें। आज के युवाओं में इनका रूझान दिन-ब-दिन घटता जा रहा हैं, ऐसे में इनका संरक्षण काफी जरूरी है ताकि भारत के सुदूर प्रांतों में फैली यह परम्परा अपना अस्तित्व कायम रख सकें।


श्याम नारायण रंगा

बीकानेर: एक नजर

- Thursday, January 28, 2021 No Comments

Junagarh Fort, Bikaner
बीकानेर राजस्थान राज्य का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक ‘जंगल धर बादशाह’ कहलाते हैं। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था।


बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि ७३ डिग्री पूर्वी अक्षांश २८.०१ उत्तरी देशंतार पर स्थित है। समुद्र तल से ऊँचाई सामान्य रूप से २४३मीटर अथवा ७९७ फीट है

बीकानेर का इतिहास

बीकानेर एक अलमस्त शहर है, अलमस्त इसलिए कि यहाँ के लोग बेफिक्र के साथ अपना जीवन यापन करते है। बीकानेर नगर की स्थापना के विषय मे दो कहानियाँ लोक में प्रचलित है। एक तो यह कि, नापा साँखला जो कि बीकाजी के मामा थे उन्होंने राव जोधा से कहा कि आपने भले ही राव सांतल जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनाया किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक सहायता सहित सारुँडे का पट्टा दे दीजिये। वह वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा। जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली। और पचास सैनिकों सहित पट्टा नापा को दे दिया। बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नाथा जी और नन्दा जी ये पाँच सरदार जो जोधा के सगे भाई थे साथ ही नापा साँखला, बेला पडिहार, लाला लखन सिंह बैद, चैथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत, विक्रम सिंह राजपुरोहित, सालू जी राठी आदि कई लोगों ने राव बीका जी का साथ दिया। इन सरदारों के साथ राव बीका जी ने बीकानेर की स्थापना की। सालू जी राठी जोधपुर के ओंसिया गाँव के निवासी थे। वे अपने साथ अपने आराधय देव मरूनायक या मूलनायक की मूर्ति साथ लायें आज भी उनके वंशज बीकानेर में साले की होली पर होलिका दहन करते है। साले का अर्थ बहन के भाई के रूप में न होकर सालू जी के अपभ्रंश के रूप में होता है।

बीकानेर की स्थापना के पीछे दूसरी कहानी ये हैं कि एक दिन राव जोधा दरबार में बैठे थे बीकाजी दरबार में देर से आये तथा प्रणाम कर अपने चाचा कांधल से कान में धीरे धीरे बात करने लगे यह देख कर जोधा ने व्यँग्य में कहा “मालूम होता है कि चाचा-भतीजा किसी नवीन राज्य को विजित करने की योजना बना रहे हैं। इस पर बीका और कांधल ने कहाँ कि यदि आप की  कृपा हो तो यही होगा। और इसी के साथ चाचा भतीजा दोनों दरबार से उठ के चले आये तथा दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। इस संबंध में एक लोक दोहा भी प्रचलित है-

पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर

थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर


इस प्रकार एक ताने की प्रतिक्रिया से बीकानेर की स्थापना हुई। वैसे ये क्षेत्र तब भी निर्जन नहीं था इस क्षेत्र में जाट जाति के कई गाँव थे। जिनका स्वयं का शासन चलता था। बीका ने यहाँ एक योगी का रूप धरा और राजा के दरबार मे पेश हुआ और करतब दिखाए राजा प्रसन्न हो गया। बीका ने शर्त रखी कि अगला काम अगर महाराज कर दे तो मैं उनका ताउम्र दास बनकर रहूंगा अन्यथा उनको अपना राज्य मुझे सौंपना पड़ेगा, राजा ने यह स्वीकार कर लिया। बीका ने पैर के अंगूठे से अपने माथे को छूकर कहा महाराज यह करके दिखाए। राजा यह न कर सका। शर्तवश राजा ने अपना राज्य बीका को सुपुर्द कर दिया और कहा कि जब इतना बड़ा इनाम मिल रहा है तो इसकी निशानी भी रहनी चाहिए अतः आज के बाद तुम्हारा और तुम्हारे वंशजों का राजतिलक जाट जाति करेगी और तुमने इस करतब में पैर के अंगूठे के इस्तेमाल किया है तो गोदारा गोत का जाट अपने पैर के अंगूठे से तुम्हारा राजतिलक करेगा। बीका ने स्वीकार कर लिया, आज तक यही होता आ रहा है, बीकानेर शासकों का तिलक गोदारा जाट अपने पैर के अंगूठे से करता है!


इस समय से पहले बीकानेर में रुनिया का बारह बास विख्यात थे जिनमे शेरेरा, हेमेरा, बदा बास, राजेरा, आसेरा, भोजेरा जेसे १२ गाँव शामिल थे जिनमे सारस्वत और गोदारों का वर्चस्व था। आदिकाल में इस जगह पर इनका ही राज्य था।


जिनमे सरस गद के राजा सरस जी महाराज और अन्य कई राजा राज्य करते थे। तदन्तर राव बीका जी ने बीकानेर नगर की स्थापना की।


बीकानेर के राजा

राव बीकाजी की मृत्यु के पश्च्यात राव नरा ने राज्य संभाला किन्तु उनकी एक वर्ष से कम में ही मृत्यु हो गयी। उसके बाद राव लूणकरण ने गद्दी संभाली। इसके बाद


राय सिंह (1573-1612)

कर्ण सिंह (1631-1669)

अनूप सिंह (1669-1698)

सरूपसिंह (1698-1700)

सुजान सिंह (1700-1736)

जोरावर सिंह (1736-1746)

गजसिंह (1746-1787)

राजसिंह (1787)

प्रताप सिंह (1787)

सुरत सिंह (1787-1828)

रतन सिंह (1828-1851)

सरदार सिंह (1851-1872)

डूंगरसिंह (1872-1887)

गंगासिंह (1887-1943)

सार्दुल सिंह (1943-1950)

करणीसिंह (1950-1988)

नरेंद्रसिंह (1988-वर्तमान)

यह सब बीकानेर के शाशक हुए।


 

बीकानेर का भूगोल

ऐतिहासिक बीकानेर राज्य के उत्तर में पंजाब का फिरोजपुर जिला, उत्तर-पूर्व में हिसार, उत्तर-पश्चिम में भावलपुर राज्य, दक्षिण में जोधपुर, दक्षिण-पूर्व में जयपुर और दक्षिण-पश्चिम में जैसलमेर राज्य, पूर्व में हिसार तथा लोहारु के परगने तथा पश्चिम में भावलपुर राज्य थे।


वर्तमान बीकानेर जिला राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है। यह २७ डिग्री ११ और २९ डिग्री ०३ उत्तर अक्षांश और ७१ डिग्री ५४ और ७४ डिग्री १२ पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल ३२,२०० वर्ग किलोमीटर है। बीकानेर के उत्तर में गंगानगर तथा फिरोजपुर, पश्चिम में जैसलमेर, पूर्व में नागौर एंव दक्षिण में जोधपुर स्थित है।


बीकानेर जिले के साथ पाकिस्तान से लगने वाली अन्तर्राष्ट्रीय सीमा की लंबाई 168 कि॰मी॰ है जोकि राजस्थान के राज्यों के साथ लगने वाली सबसे छोटी सीमा है।


बीकानेर की जलवायु

यहाँ की जलवायु सूखी, पंरतु अधिकतर अरोग्यप्रद है। गर्मी में अधिक गर्मी और सर्दी में अधिक सर्दी पडना यहाँ की विशेषता है। इसी कारण मई, जून और जुलाई मास में यहाँ लू (गर्म हवा) बहुत जोरों से चलती है, जिससे रेत के टीले उड़-उड़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर बन जाते हैं। उन दिनों सूर्य की धूप इतनी असह्महय हो जाती है कि यहाँ के निवासी दोपहर को घर से बाहर निकलते हुए भी भय खाते हैं। कभी-कभी गर्मी के बहुत बढ़ने पर अकाल मृत्यु भी हो जाती है। बहुधा लोग घरों के नीचे भाग में तहखाने बनवा लेते हैं, जो ठंडे रहते है और गर्मी की विशेषता होने पर वे उनमें चले जाते हैं। कड़ी भूमि की अपेक्षा रेत शीघ्रता से ठंड़ा हो जाता है। इसलिए गर्मी के दिनों में भी रात के समय यहाँ ठंडक रहती है। शीतकाल में यहाँ इतनी सर्दी पड़ती है कि पेड़ और पौधे बहुधा पाले के कारण नष्ट हो जाते है।


बीकानेर में रेगिस्तान की अधिकता होने के कारण कुएँ का बहुत अधिक महत्व है। जहाँ कहीं कुआँ खोदने की सुविधा हुई अथवा पानी जमा होने का स्थान मिला, आरंभ में वहाँ पर बस्ती बस गई। यही कारण है कि बीकानेर के अधिकांश स्थानों में नामों के साथ सर जुड़ा हुआ है, जैसे कोडमदेसर, नौरंगदेसर, लूणकरणसर आदि। इससे आशय यही है कि इस स्थान पर कुएं अथवा तालाब हैं। कुएं के महत्व का एक कारण और भी है कि पहले जब भी इस देश पर आक्रमण होता था, तो आक्रमणकारी कुओं के स्थानों पर अपना अधिकार जमाने का सर्व प्रथम प्रयत्न करते थे। यहाँ के अधिकतर कुएं ३०० या उससे फुट गहरे हैं। इसका जल बहुधा मीठा एंव स्वास्थ्यकर होता है।


वर्षा

जैसलमेर को छोड़कर राजपूताना के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा बीकानेर में सबसे कम वर्षा होती है। वर्षा के अभाव में नहरे कृषि सिंचाई का मुख्य स्रोत है। वर्तमान में कुल २३७१२ हेक्टेयर भूमि की सिंचाई नहरों द्वारा की जाती है।


कृषि

अधिकांश हिस्सा अनुपजाऊ एंव जलविहीन मरुभूमि का एक अंश है। जगह-जगह रेतीले टीलें हैं जो बहुत ऊँचे भी हैं। बीकानेर का दक्षिण-पश्चिम में मगरा नाम की पथरीली भूमि है जहाँ अच्छी वर्षा हो जाने पर किसी प्रकार पैदावार हो जाती है। उत्तर-पूर्व की भूमि का रंग कुछ पीलापन लिए हुए हैं तथा उपजाऊ है।


यहाँ अधिकांश भागों में खरीफ फसल होती है। ये मुख्यतरू बाजरा, मोठ, ज्वार,तिल और रुई है। रबी की फसल अर्थात गेंहु, जौ, सरसो, चना आदि केवल पूर्वी भाग तक ही सीमित है। नहर से सींची जानेवाली भूमि में अब गेंहु, मक्का, रुई, गन्ना इत्यादि पैदा होने लगे है।


खरीफ की फसल यहाँ प्रमुख गिनी जाती है। बाजरा यहाँ की मुख्य पैदावार है। यहाँ के प्रमुख फल तरबूज एवं ककड़ी हैं। यहाँ तरबूज की अच्छी कि बहुतायत से होती है। अब नहरों के आ जाने के कारण नारंगी, नींबू, अनार, अमरुद, आदि फल भी पैदा होने लगे हैं। शाकों में मूली, गाजर, प्याज आदि सरलता से उत्पन्न किए जाते है।


जंगल

बीकानेर में कोई सधन जंगल नहीं है और जल की कमी के कारण पेड़ भी यहाँ कम है। साधारण तथा यहाँ श्खेजड़ा (शमी)श् के वृक्ष बहुतायत में हैं। उसकी फलियाँ, छाल तथा पत्ते चैपाये खाते हैं। नीम, शीशम और पीपल के पेड़ भी यहाँ मिलते हैं। रेत के टीलों पर बबूल के पेड़ पाए जाते हैं।


थोड़ी सी वर्षा हो जाने पर यहाँ अच्छी घास हो जाती है। इन घासों में प्रधानतरू श्भूरटश् नाम की चिपकने वाली घास बहुतायत में उत्पन्न होती है।


पशु-पक्षी

यहाँ पहाड़ व जंगल न होने के कारण शेर, चीते आदि भयंकर जंतु तो नहीं पर जरख, नीलगाय आदि प्रायरू मिल जाते है। घास अच्छी होती है, जिससे गाय, बैल, भैंस, घोड़े, ऊँट, भेड़, बकरी आदि चैपाया जानवर सब जगह अधिकता से पाले जाते हैं। ऊँट यहाँ बड़े काम का जानवर है तथा इसे सवारी, बोझा ढोने, जल लाने, हल चलाने आदि में उपयोग किया जाता है। पक्षियों में तीतर, बटेर, बटबड़, तिलोर, आदि पाए जाते हैं।


धर्म

राज्य में हिंदु एंव जैन धर्म को मानने वाले लोग की संख्या सबसे अधिक है। सिख और इस्लाम धर्म को मानने वाले भी अच्छी संख्या में है। यहाँ ईसाई एवं पारसी धर्म के अनुयायी बहुत कम हैं।


हिंदुओं में वैष्णवों की संख्या अधिक है। जैन धर्म में श्वेताबर, दिगंबर और थानकवासी (ढूंढिया) आदि भेद हैं, जिनमें थानकवासियों की संख्या अधिक है। मुसलमानों में सुन्नियों की संख्या अधिक है। मुसलमानों में अधिकांश राजपूतों के वंशज हैं, जो मुसलमान हो गए। उनके यहाँ अब तक कई हिंदु रीति-रिवाज प्रचलित हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ अलखगिरी नाम का नवीन मत भी प्रचलित है तथा जसनाथी नाम का दूसरा मत भी हिंदुओं में विद्यमान है।


बीकानेर की जातियां: बीकानेर में मुख्यतः राजपूत, जाट, चारण, बिश्नोई, मेघवाल, भील, सुथार, बनिया, स्वामी, पुष्करणा ब्राह्मण सहित मुस्लिम जाती के लोग निवास करते हैं।

राजनीति

बीकानेर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र

बीकानेर राजनीति के लिहाज से भी महत्वपूर्ण भुमिका निभाता है। राजस्थान के प्रथम नेता-प्रतिपक्ष जसवन्तसिहजी बीकानेर के ही थे। एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है और यहाँ से वर्तमान साँसद अर्जुन राम मेघवाल हैं जो भारतीय जनता पार्टी से संबद्ध हैं। बीकानेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं। बीकानेर के राजपरिवार के महाराजा करणीसिंह जी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में बीकानेर के सबसे लंबे समय तक सांसद रहे हैं। बाॅलीवुड अभिनेता धर्मेन्द्र और कद्दावर नेता बलराम जाखड ने भी बीकानेर के सांसद के रूप में भारत की संसद में प्रतिनिधित्व किया है। बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में निम्नलिखित विधानसभा क्षेत्र सम्मिलित हैं: 

खाजूवाला

बीकानेर पश्चिम

बीकानेर पूर्व

कोलायत

लूणकरनसर

डूंगरगढ़

नोखा

बीकानेर की संस्कृति

पोशाक

शहरों में पुरुषों की पोशाक बहुधा लंबा अंगरखा या कोट, धोती और पगड़ी है। मुसलमान लोग बहुधा पाजामा, कुरता और पगड़ी, साफा या टोपी पहनते हैं। संपन्न व्यक्ति अपनी पगड़ी का विशेष रूप से ध्यान रखते हैं, परंतु धीरे-धीरे अब पगड़ी के स्थान पर साफे या टोपी का प्रचार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण लोग अधिकतर मोटे कपड़े की धोती, बगलबंदी और फेंटा काम में लाते हैं। स्रियो की पोशाक लहंगा, चोली और दुपट्टा है। मुसलमान औरतों की पोशाक चुस्त पाजामा, लम्बा कुरता और दुपट्टा है उनमें से कई तिलक भी पहनती है। 


भाषा

यहाँ के अधिकांश लोगों की भाषा मारवाड़ी है, जो राजपूताने में बोली जानेवाली भाषाओं में मुख्य है। यहाँ उसके भेद थली, बागड़ी तथा शेखावटी की भाषाएं हैं। उत्तरी भाग के लोग मिश्रित पंजाबी अथवा जाटों की भाषा बोलते हैं। यहाँ की लिपि नागरी है, जो बहुधा घसीट रूप में लिखी जाती है। राजकीय दफ्तरों तथा कर्यालयों में अंग्रेजी एवं हिन्दी का प्रचार है।


दस्तकारी

भेड़ो की अधिकता के कारण यहाँ ऊन बहुत होता है, जिसके कबंल, लोईयाँ आदि ऊनी समान बहुत अच्छे बनते है। यहाँ के गलीचे एवं दरियाँ भी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त हाथी दाँत की चूड़ियाँ, लाख की चूड़ियाँ तथा लाख से रंगी हुई लकड़ी के खिलौने तथा पलंग के पाये, सोने-चाँदी के जेवर, ऊँट के चमड़े के बने हुए सुनहरी काम के तरह-तरह के सुन्दर कुप्पे, ऊँटो की काठियाँ, लाल मिट्टी के बर्त्तन आदि यहाँ बहुत अच्छे बनाए जाते हैं। बीकानेर शहर में बाहर से आने वाली शक्कर से बहुत सुन्दर और स्वच्छ मिश्री तैयार की जाती है जो दूर-दूर तक भेजी जाती है।


साहित्य

साहित्य की दृष्टि से बीकानेर का प्राचीन राजस्थानी साहित्य ज्यादातर चारण, संत और जैनों द्वारा लिखा गया था। चारण राजा के आश्रित थे तथा डिंगल शैली तथा भाषा में अपनी बात कहते थे। बीकानेर के संत लोक शैली में लिखतें थे। बीकानेर का लोक साहित्य भी काफी महत्वपूर्ण है। राजस्थानी साहित्य के विकास में बीकनेर के राजाओं का भी योगदान रहा है उनके द्वारा साहित्यकारों को आश्रय मिलता रहा था। राजपरिवार के कई सदस्यों ने खुद भी साहित्य में जौहर दिखलायें। राव बीकाजी ने माधू लाल चारण को खारी गाँव दान में दिया था। बारहठ चैहथ बीकाजी के समकलीन प्रसिद्ध चारण कवि थे। इसी प्रकार बीकाने के चारण कवियों ने बिठू सूजो का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उनका काव्य ‘राव जैतसी के छंद‘ डिंगल साहित्य में उँचा स्थान रखती है। बीकानेर के राज रायसिंह ने भी ग्रंथ लिखे थे उनके द्वारा ज्योतिष रतन माला नामक ग्रंथ की राजस्थानी में टीका लिखी थी। रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज राठौड राजस्थानी के सिरमौर कवि थे वे अकबर के दरबार में भी रहे थे वेलि क्रिसन रुक्मणी री नामक रचना लिखी जो राजस्थानी की सर्वकालिक श्रेष्ठतम रचना मानी जाती है। बीकानेर के जैन कवि उदयचंद ने बीकानेर गजल (नगर वर्णन को गजल कहा गया है)रचकर नाम कमाया था। वे महाराजा सुजान सिंह की तारीफ करते थे।


ज्योतिषियों का गढ़

बीकानेर ज्योतिषियों का गढ़ है। यहाँ पूर्व राजघराने के राजगुरू गोस्वामी परिवार में अनेक विख्यात एवं प्रकांड ज्येातिषी एवं कर्मकांडी विद्वान हुए। ज्योतिष के क्षेत्र में दिवंगत पंडित श्री श्रीगोपालजी गोस्वामी का नाम देश-विदेश में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। ज्योतिष और हस्तरेखा के साथ तंत्र, संस्कृत और राजस्थानी साहित्य के क्षेत्र में भी श्रीगोपालजी अग्रणी विशेषज्ञों में शुमार किए जाते थे। पंडित बाबूलालजी शास्त्री, के जमाने में बीकानेर में ज्योतिष विद्या ने नई ऊंचाइयों को देखा। इसके बाद हर्षा महाराज, मम्मू महाराज, देव किराडू, अशोक थानवी, प्रेम शंकर शर्मा, अविनाश व्यास जैसे कृष्णामूर्ति पद्धति के प्रकाण्ड विद्वानों ने दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई और गुजरात में अपने ज्ञान का लोहा मनवाया। इसके अलावा अच्चा महाराज, व्योमकेश व्यास और लोकनाथ व्यास जैसे लोगों ने ज्योतिष में एक फक्कड़ाना अंदाज रखा। संभ्रांतता से जुडे इस व्यवसाय में इन लोगों ने औघड़ की भूमिका का निर्वहन किया है। नई पीढ़ी के ये ज्योतिषी अब पुराने पड़ने लगे हैं। अधिक कुण्डलियाँ भी नहीं देखते और नई पीढ़ी में भी अधिक ज्ञान वाले लोगों को एकान्तिक अभाव नजर आता है।


तांत्रिकों का स्थान

बीकानेर में तंत्र से जुडे भी कई फिरके हैं। इनमें जैन एवं नाथ संप्रदाय तांत्रिक अपना विशेष प्रभाव रखते हैं। मुस्लिम तंत्र की उपस्थिति की बात की जाए तो यहाँ पर दो जिन्नात हैं। एक मोहल्ला चूनगरान में तो दूसरा गोगागेट के पास कहीं। गोगागेट के पास ही नाथ संप्रदाय को दो एक अखाड़े हैं। गंगाशहर और भीनासर में जैन समुदाय का बाहुल्य है। ऐसा माना जाता है कि जैन मुनियों को तंत्र का अच्छा ज्ञान होता है लेकिन यहाँ के स्थानीय वाशिंदों ने कभी प्रत्यक्ष रूप से उन्हें तांत्रिक क्रियाएं करते हुए नहीं देखा है।


बीकानेर के मेले

पर्व एवं त्योहार

यहाँ हिंदुओं के त्योहारों में शील-सप्तमी, अक्षय तृतीया, रक्षा बंधन, दशहरा, दिवाली और होली मुख्य हैं। राजस्थान के अन्य राज्यों की तरह यहाँ गणगौर, दशहरा, नवरात्रा, रामनवमी, शिवरात्री, गणेश चतुर्थी आदि पर्व भी हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। तीज का यहाँ विशेष महत्व है। गणगौर एवं तीज स्त्रियों के मुख्य त्योहार हैं। रक्षाबंधन विशेषकर ब्राह्मणों का तथा दशहरा क्षत्रियों का त्योहार है। दशहरे के दिन बड़ी धूम-धाम के साथ महाराजा की सवारी निकलती है। मुसलमानों के मुख्य त्योहार मुहरर्म, ईदुलफितर, ईद उलजुहा, शबेबरात, बारह रबीउलअव्वल आदि है। महावीर जयंती एवं परयुशन जैनों द्वारा मनाया जाता है। यहाँ के सिख देश के अन्य भागों की तरह वैशाखी, गुरु नानक जयंती तथा गुरु गोविंद जयंती उत्साह के साथ मनाते है। नगर का स्थापना दिवस अक्षय द्वितीया भी सभी जाति धर्म के लोग पूरी आस्था से मनाते हैं। 


मेले

बीकानेर के सामाजिक जीवन में मेलों का विशेष महत्व है। ज्यादातर मेले किसी धार्मिक स्थान पर लगाए जाते हैं। ये मेले स्थानीय व्यापार, खरीद-बिक्री, आदान-प्रदान के मुख्य केन्द्र हैं। महत्वपूर्ण मेले निम्नलिखित हैं-



कतरियासर जसनाथ जी का मेला


कतरियासर गाँव में जसनाथ जी महाराज जो जसनाथ सम्प्रदाय के आराधना देव हैं इस सम्प्रदाय के लोग ज्यादातर जाट जाति के लोग हैं तथा अन्य जातियाँ के लोग भी हैं तथा कतरियासर गावँ में जसनाथ जी का भव्य मंदिर है जहाँ भव्य मेला लगता हैं भक्तगण बाड़मेर, नागौर, चुरू, जोधपुर, जैसलमेर, सीकर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं, हरियाणा तथा पंजाब व उत्तरप्रदेश से आते हैं यहाँ ओर विश्व प्रसिद्ध अग्नि नृत्य होता हैं जो धधकते अंगारो पर किया जाता हैं जो एक चमत्कार हैं जसनाथ जी महाराज का जो देखने लायक हैं अग्नि नृत्य के बीच फर्हे फर्हे(फतेह-फतेह) का घोष किया जाता हैं व साथ ही में सिंभुदड़ा का पाठन किया जाता हैं कतरियासर गाँव में जसनाथजी के मंदिर के अलावा सती माता काळलदेजी(जसनाथ जी महाराज की अर्धांगनी) का पवित्र मंदिर हैं जहाँ इनका भी भव्य मेला भरता हैं जसनाथ जी महाराज के 36 नियम हैं जिसमे पर्यावरण, वन्य जीव जंतुओं का संरक्षण, आदि के बारे में लोगों को जागरूक किया गया हैं


कोलायत मेला -

यह मेला प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष के अंतिम दिनों में श्री कोलायत जी में होता है और पूर्णिमा के दिन मुख्य माना जाता है। यहाँ कपिलेश्वर मुनि के आश्रम होने के कारण इस स्थान का महत्व बढ़ गया है। ग्रामीण लोग काफी संख्या में यहाँ जुटते है तथा पवित्र झील में स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि कपिल मुनि, जो ब्रह्मा के पुत्र हैं ने अपनी उत्तर-पूर्व की यात्रा के दौरान स्थान के प्राकृतिक सुंदरता के कारण तप के लिए उपर्युक्त समक्षा। मेले की मुख्य विशेषता इसकी दीप-मालिका है। दीपों को आटे से बनाया जाता है जिसमें दीपक जलाकर तालाब में प्रवाह कर दिया है। यहाँ हर साल लगभग एक लाख तक की भीड़ इकढ्ढा होती है।


मुकाम मेला -

नोखा तहसील में मुकाम नामक गाँव में एक भव्य मेला लगता है। यह मेला श्री जंभेश्वर जी की स्मृति में होता है, जिन्हें बिश्नोई संप्रदाय का स्थापक माना जाता है। फाल्गुन अमावस्या के दिन मेला भरता हैं। लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए देश के विभिन्न भागों से आते है। पर्यावरण एवं वन्य जीव प्रेमी बिश्नोई समाज के लिए मुकाम अंत्यत पवित्र स्थान हैं।


देशनोक मेला -

यह मेला चैत सुदी १-१० तक तथा आश्विन १-१० दिनों तक करणी जी की स्मृति में लगता है। ये एक चारण स्री हैं जिनके विषय में ऐसा माना जाता है कि इनमें दैविय शक्ति विद्यमान थी। देश के विभिन्न हिस्सों से इनका आशीर्वाद लेने के लिए लोगों ताँता लगा रहता है। यहाँ लगभग ३०,००० हजार लोगों तक की भीड़ इकठ्ठा होती है।

यहाँ के अन्य महत्वपूर्ण मेलो में कतरियासर का मरु मेला, तीज मेला, शिवबाड़ी मेला, नरसिंह चर्तुदशी मेला, सुजनदेसर मेला, केनयार मेला, जेठ भुट्टा मेला, कोड़मदेसर मेला, दादाजी का मेला, रीदमालसार मेला, धूणीनाथ का मेला आदि हैं।


सीसा भैरू-

तीन दिवसीय चलने वाले मेले का आयोजन भैरू भक्त मण्डल पारीक चैक सोनगिरी कुआं, डागा चैक अनेक स्थानों से लोगो का बाबा भैरूनाथ के दर्शन के लिए आते है शहर के साथ-साथ नापासर, नौखा ग्रामिण क्षेत्रों से पैदल यात्री जत्थों के साथ भैरूनाथ के जयकारे के साथ सीसाभैरव आते है इस मेले की विशेषता यह है कि यहाँ एक विशाल हवन का आयोजन किया जाता है। इसमें लगभग 5,००० श्रद्धालुगण आते है जिनमें ब्राह्मणों की संख्या अधिक होती है। यह मेला भादों में होता है। देश के विभिन्न हिस्सों से इनका आशीर्वाद लेने के लिए लोगों ताँता लगा रहता है।


लाधूनाथ जी मेलाः


राजस्थान के मशहूर लोक देवता एवं नायक समाज के प्रिय देवता श्री लादू नाथ जी महाराज का मेला बीकानेर जिले में मसूरी गाँव में भरा जाता है। यह राजस्थान के मशहूर संत एवं लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं इन्होंने अपने जीवन में अनेक ग्रंथों की रचनाएं की यह लोग देवता होने के साथ-साथ बहुत बड़े संत भी थे इन के मेले में नायक समाज के लोगों की अधिकता दिखाई देती है यह राजस्थान का तीसरा सबसे बड़ा मेला है इस मेले में कई समाज के लोग आते हैं श्री लादू नाथ जी महाराज एक चमत्कारी और बहुत बड़े संत के रूप में माने जाते हैं इनका मेला बड़ी धूम-धाम से और मनोरंजन का एक प्रमुख स्थान है।