![]() |
dwarka prasad g purohit |
हाल ही में मेरे दोस्त डी के कल्ला {दिनेष कुमार कल्ला} के ताऊ जी श्री भंवर जी कल्ला {भंवरा भाई जी} का निधन हो गया था। मैं अपने पापा के पास बैठा इसी पर चर्चा कर रहा था तो मेरे पापा ने बताया कि डी के कल्ला के दादाजी श्री रामनारायण जी कल्ला बीकानेर के जाने माने राजनेता स्वर्गीय द्वारका प्रसाद जी पुरोहित जो बीकानेर नगर परिषद, बीकानेर नगर विकास न्यास व कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और बीकानेर में टैक्स के प्रथम वकील भी थे, के परम मित्र थे और रामनारायण जी कल्ला और द्वारका प्रसाद पुरोहित दोनों ही राजकीय डूंगर महाविद्यालय में पढ़ते थे।
बात उस समय की है जब भारत आजाद हो गया 15 अगस्त 1947 को लेकिन मर्जर मतलब भारत संघ में विलय नहीं हुआ था और महाराजा सार्दुलसिंह जी बीकानेर के महाराजा हुआ करते थे, उस समय राजकीय डूंगर महाविद्यालय में महाराजा का जन्मदिन उत्सव के रूप में मनाने का निर्णय हुआ जिसका इन दोनों दोस्तों रामनारायण जी कल्ला और द्वारकाप्रसाद जी पुरोहित ने विरोध किया और जबरदस्त नारेबाजी कर इस जन्मोत्सव की खिलाफत की, जिसका परिणाम यह हुआ कि दोनों को काॅलेज से बर्खास्त कर दिया गया। इस प्रकार दोनों नौजवान दोस्तों ने सामंतषाही की खिलाफत की। दोनों की मित्रता की गहराई और अपनत्व इतना था कि रामनारायण जी कल्ला ने अपने दो पोतों के नाम महेष और दिनेष रखा क्योंकि द्वारका प्रकाष जी के बेटों के नाम महेष और दिनेष थे। तो ऐसी थी मित्रता और ऐसा था देष के लिए बीकानेर के नौजवानों का जज्बा। सलाम।
बात उस समय की है जब भारत आजाद हो गया 15 अगस्त 1947 को लेकिन मर्जर मतलब भारत संघ में विलय नहीं हुआ था और महाराजा सार्दुलसिंह जी बीकानेर के महाराजा हुआ करते थे, उस समय राजकीय डूंगर महाविद्यालय में महाराजा का जन्मदिन उत्सव के रूप में मनाने का निर्णय हुआ जिसका इन दोनों दोस्तों रामनारायण जी कल्ला और द्वारकाप्रसाद जी पुरोहित ने विरोध किया और जबरदस्त नारेबाजी कर इस जन्मोत्सव की खिलाफत की, जिसका परिणाम यह हुआ कि दोनों को काॅलेज से बर्खास्त कर दिया गया। इस प्रकार दोनों नौजवान दोस्तों ने सामंतषाही की खिलाफत की। दोनों की मित्रता की गहराई और अपनत्व इतना था कि रामनारायण जी कल्ला ने अपने दो पोतों के नाम महेष और दिनेष रखा क्योंकि द्वारका प्रकाष जी के बेटों के नाम महेष और दिनेष थे। तो ऐसी थी मित्रता और ऐसा था देष के लिए बीकानेर के नौजवानों का जज्बा। सलाम।
No Comment to " जब हुई महाराजा सार्दुलसिंह जी के जन्मदिवस मनाने की खिलाफत "
Post a Comment