बीकानेर का होने के नाते यहां होने वाले मेले मगरियों से भावनात्मक जुड़ाव रहा है और जिस होम सिकनेस का आम बीकानेरी शिकार है उसका एक कारण ये मेले मगरिये भी है, ऐसा मेरा मानना है। प्रतिवर्ष भाद्रपद में बीकानेर का आम नागरिक कैसे न कैसे इन मेलों मगरियों से जुड़ जाता है। ऐसे अवसर पर जहां आमजन का बड़े स्तर पर जुड़ाव हो वैसे में लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रषासन की जिम्मेदारी बड़ी हो जाती है कि वे धार्मिक आस्था व शहर की संस्कृति से जुड़े ऐसे पर्वों पर अपनी भूमिका किस तरह निभाते हैं इसका आंकलन आमजन किसी न किसी रूप में अवष्य करता है। सुधी नागरिक होनेे के नाते मेरा यह मानना है कि इस बार भी मेले में पुलिस व प्रषासन की व्यवस्था तो थी परंतु यह व्यवस्था ऊॅंट के मुॅंह में जीेरे के समान थी।
बीकानेर जिले की श्रीडूॅंगरगढ़ तहसील के पूनरासर गांव में प्रतिवर्ष लगने वाला यह मेला ऋषि पंचमी के ठीक बाद आने वाले शनिवार या मंगलवार को भरता है। यहां हजारों की संख्या में पैदल जाने वाले श्रद्धालु भी होते हैं और इन पदयात्रियों के मेले को देखने जाने वाले शहरियों की संख्या में हजारों मंे होती है। ऐसे में बीकानेर से जयपुर जाने वाली यह सड़क जनसैलाब से भर जाती है। पुलिस प्रषासन से यह साल में एक बार यह उम्मीद की जाती है कि वे इस रास्ते को मेले के लिहाज से सुगम बनाए। पुलिस प्रषासन व्यवस्था भी करता है परंतु यह व्यवस्था माकूल नहीं होती है। बीकानेर से निकलते ही हल्दीराम जी की प्याऊ के पास से रास्ता नापासर की ओर जाता है जो आगे जाकर गुसांईसर गांव के पास वापस राष्ट्रीस राजमार्ग में मिल जाता है। यह रास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग का बाईपास है। पुलिस प्रषासन दो दिन तक हल्दीराम जी की प्याऊ वाले फांटे पर गाड़ियों को बाईपास रास्ते से निकालने का प्रयास करती है परंतु यह प्रयास पूर्ण सफल नहीं होता है। बड़ी संख्या में चैपहिया वाहन व भारी वाहन इस बार भी इस रोड़ पर देखे गए इस कारण यात्रियों व सेवादारों को काफी पेरषानी का सामना करना पड़ा। हालात ये थे कि जयपुर बाईबास से रायसर तक में घंटों जाम लगा रहा जिसमें छोटे व बड़े वाहन सहित बाईक सवार फॅंसे रहे इस कारण पदयात्रियों व ऊॅंटगाड़े पर जाने वाले यात्रियों को खासी परेषानी झेलनी पड़ी। इस रोड़ पर कईं सेवा कैंप भी लगते हैं उनको भी इस कारण मुष्किलें उठानी पड़ी। इस बेतरतीब व अव्यवस्थित यातायात को प्रत्येक शहरी जो वहां मौजूद था कोसता सुना गया। साथ ही ये भी बात है कि मेले के दिन पूनरासर गांव में दर्षन करने की व्यवस्था को छोड़ दिया जाए तो कोई भी प्रषासनिक व्यवस्था संतुष्ट करने वाली नहीं थी। पूनरासर गांव की एंट्री पर जहां वाहनों की पार्किंग थी वहां काफी अव्यवस्था थी। सुबह 11 बजे तक तो ये हालात थे कि किसी वाहन को मेले में अंदर जाने से रोका तक नहीं जा रहा था। साथ ही जिधर से कच्चे रास्ते ये यात्री आते हैं वहां भी जो पार्किंग व्यवस्था की उसकी लचरता के कारण पुलिस के जवानों से आमयात्री उलझता नजर आया। इस कारण कईं बार इन दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतारें देखी गईं। वीआईपी कल्चर के कारण पुलिस की गाड़ी स्वयं मेले के अंदर कईं वाईपी को मंदिर तक ले जाते नजर आई। इस अव्यवस्था के कारण आमजन जो मेले में उसको परेषानी हुई। मेले में सेरूणा गांव से पूनरासर तक जाने की 15 किलोमीटर की सड़क भी उबड़ खाबड़ व टूटी फूटी है, जगह जगह गड्डे हैं इस कारण इधर से निकलने वाले वाहनों का परेषानी हुई। साथ ही दूसरी ओर नजर दौड़ाएं तो प्रषासन की तरफ से कोई अन्य व्यवस्था इस मेले में दिखाई नहीं दे रही थी। इतनी बड़ी संख्या में यात्रियों की आवक के बाद भी माकूल प्रषासनिक व्यवस्था का न होना उदासीन राजनैतिक एप्रोच को दिखाता है। मुख्य मेले से एक दिन पहले पूनरासर में यात्री खीर बनाते हैं। इस दिन सैंकड़ों लीटर दूध की खपत होती है। यह दूध गांव के लोग काफी महंगा कर देते हैं। उरमूल डेयरी पहले तो यहां टैंकर भेज कर भाव नियंत्रित करने का प्रयास करती थी परंतु पिछले कुछ वर्षों से टैंकर नहीं आता इस कारण यहां दूध ऊॅंचे भावों पर यात्री खरीदने के लिए मजबूर है। यहां यात्रियों के पानी व शौचालय तक की व्यवस्था सेवादारों के स्तर पर ही होती है इसमें कोई सरकारी योदान नहीं है। बाकी जो व्यवस्था खाना पकाने की है वह पुजारी परिवार या यात्री व्यक्तिगत स्तर पर करता है। रूकने के लिए धर्मषालाएॅं भी प्राईवेट प्रयासों पर ही है। इन सबमें सरकारी प्रयास है ही नहीं। जबकि सरकार को चाहिए कि पैदल यात्रियों के मेले वाले दिन जयपुर रोड़ पर चैपहिया व भारी वाहनों का प्रवेष बीकानेर से गुसाईसर तक रात पूर्णतः निषेध हो इसमें किसी प्रकार की कोताही न की जाए। सेरूणा से पूनरासर तक की सड़क को मेले से पहले अच्छे से बना दी जाए। ओर अस्थाई रैन बसेरे बनाकर मेले में ठहरने की व्यवस्था की जाए। जलदाय विभाग की ओर से टैंकरों के माध्यम से पीने के पानी की व्यवस्था की जाए। उरमूल डेयरी मेले में तीन दिन तक अपना टैंकर भेज कर दूध की व्यवस्था करें साथ ही मेले में पार्किंग की व्यवस्था उचित व व्यवस्थित करके यात्रियों को सुविधा दी जाए। साथ ही वीआईपी कल्चर को पूरी तरह से बंद किया जाए। साथ ही पुलिस की गष्त को मेले में बढ़ा दिया जाए ताकि मेले में लड़ाई झगड़ा या किसी अप्रिय घटना को रोका जा सके।
shyam narayan ranga
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shyamnranga@gmail.com
बीकानेर जिले की श्रीडूॅंगरगढ़ तहसील के पूनरासर गांव में प्रतिवर्ष लगने वाला यह मेला ऋषि पंचमी के ठीक बाद आने वाले शनिवार या मंगलवार को भरता है। यहां हजारों की संख्या में पैदल जाने वाले श्रद्धालु भी होते हैं और इन पदयात्रियों के मेले को देखने जाने वाले शहरियों की संख्या में हजारों मंे होती है। ऐसे में बीकानेर से जयपुर जाने वाली यह सड़क जनसैलाब से भर जाती है। पुलिस प्रषासन से यह साल में एक बार यह उम्मीद की जाती है कि वे इस रास्ते को मेले के लिहाज से सुगम बनाए। पुलिस प्रषासन व्यवस्था भी करता है परंतु यह व्यवस्था माकूल नहीं होती है। बीकानेर से निकलते ही हल्दीराम जी की प्याऊ के पास से रास्ता नापासर की ओर जाता है जो आगे जाकर गुसांईसर गांव के पास वापस राष्ट्रीस राजमार्ग में मिल जाता है। यह रास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग का बाईपास है। पुलिस प्रषासन दो दिन तक हल्दीराम जी की प्याऊ वाले फांटे पर गाड़ियों को बाईपास रास्ते से निकालने का प्रयास करती है परंतु यह प्रयास पूर्ण सफल नहीं होता है। बड़ी संख्या में चैपहिया वाहन व भारी वाहन इस बार भी इस रोड़ पर देखे गए इस कारण यात्रियों व सेवादारों को काफी पेरषानी का सामना करना पड़ा। हालात ये थे कि जयपुर बाईबास से रायसर तक में घंटों जाम लगा रहा जिसमें छोटे व बड़े वाहन सहित बाईक सवार फॅंसे रहे इस कारण पदयात्रियों व ऊॅंटगाड़े पर जाने वाले यात्रियों को खासी परेषानी झेलनी पड़ी। इस रोड़ पर कईं सेवा कैंप भी लगते हैं उनको भी इस कारण मुष्किलें उठानी पड़ी। इस बेतरतीब व अव्यवस्थित यातायात को प्रत्येक शहरी जो वहां मौजूद था कोसता सुना गया। साथ ही ये भी बात है कि मेले के दिन पूनरासर गांव में दर्षन करने की व्यवस्था को छोड़ दिया जाए तो कोई भी प्रषासनिक व्यवस्था संतुष्ट करने वाली नहीं थी। पूनरासर गांव की एंट्री पर जहां वाहनों की पार्किंग थी वहां काफी अव्यवस्था थी। सुबह 11 बजे तक तो ये हालात थे कि किसी वाहन को मेले में अंदर जाने से रोका तक नहीं जा रहा था। साथ ही जिधर से कच्चे रास्ते ये यात्री आते हैं वहां भी जो पार्किंग व्यवस्था की उसकी लचरता के कारण पुलिस के जवानों से आमयात्री उलझता नजर आया। इस कारण कईं बार इन दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतारें देखी गईं। वीआईपी कल्चर के कारण पुलिस की गाड़ी स्वयं मेले के अंदर कईं वाईपी को मंदिर तक ले जाते नजर आई। इस अव्यवस्था के कारण आमजन जो मेले में उसको परेषानी हुई। मेले में सेरूणा गांव से पूनरासर तक जाने की 15 किलोमीटर की सड़क भी उबड़ खाबड़ व टूटी फूटी है, जगह जगह गड्डे हैं इस कारण इधर से निकलने वाले वाहनों का परेषानी हुई। साथ ही दूसरी ओर नजर दौड़ाएं तो प्रषासन की तरफ से कोई अन्य व्यवस्था इस मेले में दिखाई नहीं दे रही थी। इतनी बड़ी संख्या में यात्रियों की आवक के बाद भी माकूल प्रषासनिक व्यवस्था का न होना उदासीन राजनैतिक एप्रोच को दिखाता है। मुख्य मेले से एक दिन पहले पूनरासर में यात्री खीर बनाते हैं। इस दिन सैंकड़ों लीटर दूध की खपत होती है। यह दूध गांव के लोग काफी महंगा कर देते हैं। उरमूल डेयरी पहले तो यहां टैंकर भेज कर भाव नियंत्रित करने का प्रयास करती थी परंतु पिछले कुछ वर्षों से टैंकर नहीं आता इस कारण यहां दूध ऊॅंचे भावों पर यात्री खरीदने के लिए मजबूर है। यहां यात्रियों के पानी व शौचालय तक की व्यवस्था सेवादारों के स्तर पर ही होती है इसमें कोई सरकारी योदान नहीं है। बाकी जो व्यवस्था खाना पकाने की है वह पुजारी परिवार या यात्री व्यक्तिगत स्तर पर करता है। रूकने के लिए धर्मषालाएॅं भी प्राईवेट प्रयासों पर ही है। इन सबमें सरकारी प्रयास है ही नहीं। जबकि सरकार को चाहिए कि पैदल यात्रियों के मेले वाले दिन जयपुर रोड़ पर चैपहिया व भारी वाहनों का प्रवेष बीकानेर से गुसाईसर तक रात पूर्णतः निषेध हो इसमें किसी प्रकार की कोताही न की जाए। सेरूणा से पूनरासर तक की सड़क को मेले से पहले अच्छे से बना दी जाए। ओर अस्थाई रैन बसेरे बनाकर मेले में ठहरने की व्यवस्था की जाए। जलदाय विभाग की ओर से टैंकरों के माध्यम से पीने के पानी की व्यवस्था की जाए। उरमूल डेयरी मेले में तीन दिन तक अपना टैंकर भेज कर दूध की व्यवस्था करें साथ ही मेले में पार्किंग की व्यवस्था उचित व व्यवस्थित करके यात्रियों को सुविधा दी जाए। साथ ही वीआईपी कल्चर को पूरी तरह से बंद किया जाए। साथ ही पुलिस की गष्त को मेले में बढ़ा दिया जाए ताकि मेले में लड़ाई झगड़ा या किसी अप्रिय घटना को रोका जा सके।
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1 One Comment " पूनरासर मेले पर प्रशासनिक व्यवस्था मेरी नजर में "
बहुत अच्छा आलेख। बधाई
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