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भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य

By SHYAM NARAYAN RANGA - Sunday, May 29, 2016 No Comments
वर्तमान में देष की संसद से लेकर गली मौहल्ले नुक्कड़ तक यह बात चर्चा की रही है कि देष की व्यवस्था में राज्य की क्या भूमिका है। राज्य की जिम्मेदारी क्या है और प्रत्येक नागरिक राज्य की ओर आषा भरी निगाह से देखता है और मायूष होकर नजरें झुका लेता है। आज हम चर्चा करेंगे एक एसे ही महत्वपूर्ण बिंदू पर जिसको लोककल्याणकारी राज्य कहा गया है।
भारतीय संविधान में भारत को एक लोकल्याणकरी राज्य बनाने का सपना देखा गया है। भारतीय संविधान की आत्मा उसकी प्रस्तावना है जिसमें यह स्पष्ट है कि भारतीय नागरिकों को सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक न्याय दिलाया जाएगा। यह स्पष्ट है कि स्वाधीनता सिर्फ राजनैतिक नहीं होती है, जब तक भूख से, अज्ञान से, आवास की चिंता से, बुनियादी विकास से, आतंक से, मानसिक व शारीरीक शोषण से, विवषता से आम भारतीय मुक्त नहीं होता तब तक पूर्ण स्वराज्य की कल्पना करना निरर्थक है। राजनैतिक आजादी तो इन सबको प्राप्त करने का एक साधन मात्र है और सही अर्थों में भारत तभी लोक कल्याणकारी राज्य की श्रेणी में आ पाएगा जब आम नागरिक को इस प्रकार की पूर्ण आजादी प्राप्त होगी। भारत ने आजादी के बाद लोकल्याणकारी राज्य की तरफ काफी कदम बढ़ाए हैं पर आजादी के 68 सालों बाद भी हम आज पूर्ण रूप से यह कह नहीं सकते कि देष पूरी तरह लोक कल्याणकारी राज्य बन चुका है। आजादी के बाद यह महसूस किया गया कि समाज में जो समस्याएॅं हैं वे व्यक्तिगत नहीं है वरन् सामूहिक है और एक बड़े स्तर पर सामूहिक प्रयास करके ही इन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। यही कारण है कि समाज में समानता प्राप्ति के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई ताकि बरसों से जो दबे कुचले वर्ग के लोग है उनको आजदी प्राप्त हो सके। इसीलिए राज्य की जिम्मेदारी तय की गई कि राज्य अपने नागरिकों को चिकित्सा, षिक्षा सहित वह समस्त सुविधाएॅं प्रदान करें जिनके साथ एक नागरिक सम्मान की जिदगी जी सके। खाद्य सुरक्षा बिल संसद में पारित होना लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा की तरफ की एक कदम है। इसी तरह सूचना का अधिकार, नरेगा भी इसी श्रृखंला की एक कड़ी है। अपने नागरिकों के रहने की सुविधा प्रदान करना, बिजली, पानी की सुविधा प्रदान करना एवं ऐसे समस्त प्रयास करना की एक नागरिक अपने जीवन को जीने योग्य बना सके। आजादी के बाद यह प्रयास तो हुए और काफी जोरो शोरों से हुए पर आज अगर समग्र व्यवस्था पर दृष्टिपात करें तो यह समझ आता है कि जो प्रयास हुए वे नाकाफी साबित हुए और आज भी देष में करोड़ों लोग अषिक्षित है, करोड़ों लोगों के सर पर छत नहीं है, आज भी देष में भूख से मरने वालों की तादाद और आर्थिक व सामाजिक पेरषानियों के चलते आत्महत्या करने वालों की तादाद लाखों में है। निःसंदेह विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय सहित वातावरण की विभिन्नताओं वाले इस विष्व की दूसरी आबादी वाले इस देष के लिए इतना सब कर पाना आसान काम नहीं था और वो भी उस पर जब ये देष सैंकड़ों सालों की गुलामी के बाद आजाद हुआ हो। निःसंदेह प्रयास हुए पर वे प्रयास वो रंग नहीं ला सके जिसकी उम्मीद की गई थी। 
वर्तमान व्यवस्था पर गौर करें तो राज्य अपने इस लोक कल्याणकारी अवधारणा के विचार से दूर हट गया है। आज जिस आरक्षण के कारण वर्ग संघर्ष को कम करने की उम्मीद की गई थी वह वर्ग संघर्ष बढ़ गया है और आरक्षण राजनैतिक हथियार के रूप में प्रयोग हो रहा है। आजादी के बाद जहां एक अदद सरकारी नौकरी पाना एक युवा का सपना होता था वो आज इस समय तक आते आते सपना ही रह गया है। आज कुछ प्रतिषत लोग ही सरकारी नौकरी में कार्यरत है। आज संविदा पर कर्मचारी रखने की सरकारों की प्रवृत्ति ने इन करोड़ों लोगों के साथ अन्याय किया है जो इस समय संविदा पर सरकार में काम कर रहे हैं। जिन युवाओं को पूरा वेतन देकर काम लेने की जिम्मेदारी राज्य की थी वही राज्य अल्प वेतन में एक बनिए की तरह इन युवाओं की प्रतिभा का शोषण कर रहा है। अपने राजनैतिक लाभ के लिए सत्तासीन दल के नेता देष की नीतियों को अपने हिसाब से चलाते हैं। हमारे आजादी के बाद विष्व में प्रचलित दो बड़ी अर्थव्यवस्था को जोड़कर मिश्रित अर्थव्यवस्था का रास्ता आजादी के बाद अपनाया। हमने विकास को ऊपर से नीचे ले जाने का प्रयास किया जबकि गांधी ने ग्राम विकास के माध्यम से विकास की गति को नीचे से ऊपर ले जाने की जो बात कही थी उसको भुला दिया गया। यही कारण है कि आज अमीर और अमीर होते गए और गरीब और गरीब। हमने उन नीतियों व योजनाओं को लागू करने का प्रयास किया जो व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान पर जोर देती थी जबकि हमारी समस्याएं सामूहिक थी। इसका प्रभाव यह हुआ कि जो जिम्मेदारी राज्य की थी वो जिम्मेदारी राज्य ने बाजार पर डाल दी। अब व्यक्ति की राज्य की ओर न देखकर बाजार की ओर देखे की उसको जीवन कैसे जीना है। राज्य ने इस महत्ती जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। बढ़ती हुई बेरोजगारी ने राज्य की चिंताओं को बढ़ाया पर राज्य को आज तक इसके समाधान का रास्ता नजर नहीं आया। गांधी जी ने चरखे के माध्यम से हर हाथ को काम का रास्ता दिखाया था और इसी काम के बल पर देष की आजादी की अलख जगा दी थी परंतु वर्तमान में विकास के अवसर न होने से व समानता के अवसर न होने से व वर्ग संघर्ष की स्थिति ने युवाओं को दिषाभ्रमित किया है जिसका परिणाम है कि आज बेरोजगारों की बड़ी फौज देष में खड़ी है और खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसी तरह राजनीति में भी धर्म व जाति के आधार पर बने दलों ने आम आदमी के लिए अवसरों को खत्म कर दिया। आज राजनीति भी एक पेषा हो गया है जिससे आम आदमी ने किनारा कर लिया है। इस तरह आर्थिक आजादी तो मिली नहीं साथ ही राजनैतिक आजादी भी जाती रही। आरक्षण ने जहां सामाजिक समानता व सामाजिक आजादी की अवधारणा को खत्म ही कर दिया वहीं सैंकड़ों सालों की गुलामी की मानसिकता से हम आज तक आजाद नहीं हो पाए हैं। संसद में जोर जोर से बोलते हमारे प्रतिनिधि पता नहीं किस देष का प्रतिनिधितव करते हैं कि चुनी हुई जनता भी उनको सुनने के लिए गौर नहीं करती। आज भी भारत गांवों का देष है और एक बड़ी आबादी देष के गांवों में रहती है वहीं दूसरी तरफ विष्व स्तर पर मेट्रो सिटी की बात करें तो देष में दस ही मेट्रो शहर बना पाए हैं। ग्राम विकास की गांधी की अवधारणा ही अगर लागू कर ली जाती तो आज देष में विकास के समान अवसर प्राप्त हो जाते बल्कि ग्राम विकास की अवधारणा को छोड़ने के कारण हमने देष के अंतिम सिरे पर बैठे नागरिक को आज विकास का अवसर दिया ही नहीं है। इस तरह जिस आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक न्याय की बात हमारे संविधान ने की उसको प्राप्त करने में हम सफल तो रहे हैं परंतु सफल जितना होना था उतना हो नहीं पाए हैं। यह सच है कि राज्य अभी तक पूर्ण नियोजन, बीमारी, बेरोजगारी, गरीबी, भूखमरी, आवास सहित स्वच्छता जैसी समस्याओं पर सफलता पाने में पूर्ण रूप से सफल नहीं हुआ है परंतु राज्य द्वारा चलाई जा रही काफी योजनाओं में इनको दूर करने के प्रयास किए गए हैं और प्रावधान भी किए गए हैं। आज कानून बनाकर इन मूलभूत समस्याओं को दूर करने की कोषिष ने राज्य की मजबूत इच्छाषक्ति को दर्षाया है परंतु वर्तमान में यह जरूरी है कि नागरकि स्तर पर, राजनैतिक स्तर पर व देष की व्यवस्था के प्रत्येक स्तर पर यह प्रयास होने जरूरी है ताकि संविधान की मूल भावना के अनुरूप देष के नागरिकों को जीने का अवसर प्राप्त हो। 


श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
नत्थूसर गेट के बाहर,
पुष्करणा स्टेडियम के पास
बीकानेर
मोबाईल 9950050079

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