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दिप और तेल

By SHYAM NARAYAN RANGA - Wednesday, July 1, 2015 No Comments
ये रचना मैंने 6.2.94 को लिखी जब मैं राजस्थान बाल मंदिर स्कूल में सीनियर हायर सैकेण्डरी वाणिज्य वर्ग का विद्यार्थी था। उस समय मेरी उम्र 18 साल की थी और मेरी यह रचना जब मैंने आज देखी पढ़ी तो मेरे मन मं  आया कि शायद कोई  था जिसके लिए यह रचनाएं लिखी गई होगी। उम्मीद है पंसद आएगी और नहीं भी आए तो पढ़ लेना भाई शायद खुद को स्कूल का समय याद आ जाए।


Shyam Narayan Ranga
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’

तुम मेरे दिल में समा गई हो, छा गई हो,
कैसे कहूॅं इस बुझे दीप को तुम ही जला गई हो।
यह दीप तुम्हारा हो गया है,
यह दिमाग तुम पर ही खो गया है।
तुम ही मेरे दिलो दिमाग पर छा गई हो,
तुम ही मुझे भा गई  हो, छा गई हो।
तुमसे मिले बिन चैन नहीं आता,
तुमसे दूर अब रह नहीं पाता।
तुम ही इस दीप में तेल बन कर आ गई हो,
तुम ही मुझे भा गई हो, दीप को जला गई हो।
दीप भी जल रहा है, तेल भी जल रहा है,
दीप का तेल बनना आपको कैसा लग रहा है।
तुम ख्याल बनके इस दिमाग में आ गई हो,
तुम इस पर छा गई हो, इसमे समा गई हो।
तुम ख्याल बनके ऐसे ही आती रहो,
तेल बनके ऐसे ही समाती रहो।
मैं जलता रहूं तेल जलता रहे और हम मिलते रहे।




श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
नत्थूसर गेट के बाहर
पुष्करणा स्टेडियम के पास
बीकानेर {राजस्थान} 334004
मोबाईल 9950050079

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