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इनके लिए शोक का त्यौंहार है होली

By SHYAM NARAYAN RANGA - Sunday, September 14, 2014 No Comments
दुनियाभर में होली का त्यौंहार जहाँ उत्साह, उमंग व मस्ती के साथ मनाया जाता है वहीं पुष्करणा ब्राह्मण समाज की चोवटिया जोशी जाति के लिए होली खुशी का नहीं वरन् शोक का त्यौंहार है। ये लोग होली का त्यौंहार हँसी खुशी न मनाकर शोक के साथ मनाते हैं। इन दिनों में होलकाष्टक से लेकर धुलण्डी के दिन तक चोवटिया जोशी जाति के घरों में लगभग खाना नहीं बनता है। इस दौरान वे ऐसी सब्जी नहीं बनाते जिसमें छौंक लगाई जाए या कोई भी ऐसा व्यंजन नहीं बनाते जो तला जाए। फलस्वरूप इन चोवटिया जोशी जाति के रिश्तेदार व लडके के ससुराल के संबंधी इन लोगों के लिए आठ दिनों तक लगातार सुबह शाम दोनों वक्त भोजन का प्रबंध करते हैं।

इसके पीछे कहानी यह है कि एक समय की बात है कि हालिका दहन के समय इसी चोवटिया जोशी जाति की एक औरत दहन हो रही होली के फेरे निकाल रही थी। उस औरत के गोद में उसका छोटा बच्चा (लडका) भी था। बच्चा माँ की गोद में उछल कूद कर रहा था और माँ होलिका के फेरे लगा रही थी। इस दौरान हाथ से छिटक कर वह बच्चा माँ की गोद से धूं धूं कर जल रही होलिका में गिर गया। बच्चे को जलती हुई आग में देखकर माँ चीखने चिल्लाने लगी और बच्चे को बचाने के लिए गुहार करने लगी पर कोई और उपाय न दिखा तो अपने बच्चे को बचाने के लिए वह माँ भी जलती हुई होलिका में कूद पडी। इस दुर्घटना में वह माँ और बच्चा दोनों न बच सके और माँ अपने बच्चे के पीछे सती हो गई। कहते हैं बाद में इसी सती माता ने श्राप दे दिया कि कोई भी चोवटिया जोशी जाति का परिवार होलिका दहन में हिस्सा नहीं लेगा और न होली को उत्साह से मनाएगा और तब से पुष्करणा ब्राह्मण समाज की इस चोवटिया जाति के लिए होली मातम का त्यौंहार हो गया।

Holi Fire in Bikaner Cityअब अगर किसी भी चोवटिया जोशी परिवार में होलिका दहन के दिन लडके का जन्म हो और वह लडका पूरे एक साल तक जिंदा रहे और अपनी माँ के साथ जलती हुई होलिका की परिक्रमा कर होलिका की पूजा करे तो ही इस जाति के लिए होली का त्यौंहार हँसी खुशी के साथ मनाना संभव होगा। इसे चमत्कार कहेंगे या संयोग कि इस दुर्घटना को हुए आज सैंकडों साल हो गए हैं लेकिन आज तक चोवटिया जोशीयों के किसी भी परिवार  में होलिका दहन के दिन किसी लडके का जन्म नहीं हुआ है।

पुष्करणा ब्राह्मण समाज का बाहुल्य बीकानेर, जोधपुर, पोकरण, फलौदी, जैसलमेर में है और इसके साथ ही साथ भारत भर में इस जाति के लोग रहते हैं और यह परम्परा पूरे भारतवर्ष में निभाई जाति है। जोधपुर, पोकरण, बीकानेर  में तो यह परम्परा भी किसी समय रही है कि होलिका दहन से पूर्व जोर का उद्घोष कर आवाज लगाई जाति थी कि अगर कोई चोवटिया जोशी है तो वह अपने अपने घर म चला जाए क्योंकि होलिका दहन होने वाला है।

इसी के साथ यहाँ यह बताना भी आवश्यक है कि धुलंडी वाले दिन इन चोवटिया जोशी परिवार के लोगों को रंग लगाने के लिए व होली खेलने के लिए अपने घरों से बाहर निकालने के लिए इनके मित्र, रिश्तेदार, सगे, संबंधी इनके घर जाते हैं और इनके चेहरों पर रंग लगाकर होली की मस्ती में इनको शामिल करते हैं। बीकानेर में तणी जोडने का आायेजन भी इन्हीं जोशी परिवार के लोगों द्वारा किया जाता है।

तो यह है परम्परा आस्था और विश्वास जो हर त्यौंहार में होता है चाहे होली हो दिपावली, ईद हो या बैसाखी। विचित्र व समृद्ध परम्पराओं से भरा हमारा भारत। होली की शुभमकामनाऍं 



श्याम नारायण रंगा ’अभिमन्यु‘ (Shyam Narayan Ranga)
पुष्करणा स्टेडियम के पास, नत्थूसर गेट के बाहर, बीकानेर 

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