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दो अक्टूबर की छुट्टी एक प्रहार

By SHYAM NARAYAN RANGA - Tuesday, September 30, 2014 No Comments
दो अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर पर छुट्टी रद्द करना संघ की लाॅबी, भारतीय जनता पार्टी व इससे जुड़ी विचारधारा का कांग्रेस व कांग्रेस की विचारधारा पर जबरदस्त हमला है क्योंकि बीजेपी और आरएसएस को नुकसान या घबराहट कांग्रेस से नहीं है गांधी नाम से है क्योंकि ये लोग जानते हैं कि गांधी नाम में वजन है और जब तक गांधी का नाम रहेगा, गांधी नेहरू परिवार रहेगा और अगर नाम मिटेगा तो ही परिवार का वजूद और वैभव मिटेगा। इसलिए ये एक सोची समझी वैचारिक लड़ाई का हिस्सा है। वर्तमान समय में पहली बार बीजेपी पूर्ण बहुमत व अपनी पूर्ण ताकत के साथ सत्ता में आई है तो यह अपने विचार को फैलाने का प्रयास करेगी और अपने विरोधी विचार को समाप्त करने की कोषिष भी होगी। चूंकि गांधी एक व्यक्ति नहीं विचार बन चुका है और आज महात्मा गांधी एक अंतर्राष्ट्रीय शख्सियत बन चुके हैं, इसी का परिणाम है कि 2 अक्टूबर अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है और भारत में 2 अक्टूबर राष्ट्रीय पर्व है और 15 अगस्त व 26 जनवरी की तरह ये दिवस महत्वूपर्ण है। 2 अक्टूबर की छुट्टी रद्द करने वाले जानते हैं कि कुछ साल तो सफाई अभियान, सफाई सप्ताह आदि आदि के रूप में मनाया जाएगा और धीरे धीरे जब छुट्टी नहीं होगी तो आम जन भूल जाएगा कि ऐसा भी एक दिन था जिस दिन मानवता का मसीहा मोहनदास करमचंद गांधी पैदा हुआ था। ये एक प्रयास है गांधी के नाम को मिटाने का, एक प्रयास है गांधी की शख्सियत को छोटा करने का। बाकी इतिहास गवाह है कि जब जब गांधी से या गांधी के नाम से या गांधी के विचार से किसी ने भी छेड़छाड़ की है तब तब गांधी और गांधी का विचार और मजबूती से उभर कर सामने आया है। विचार मरते नहीं, व्यक्ति मरता है। विचार क्रांतियां लाते हैं, समय की धारा को बदलते है। गांधी के विचार को कभी किसी ने मात नहीं दी और न ही गांधी के विचार का सामना कोई कर सका और इसी का परिणाम था कि तर्क समाप्त हो चुके थे और विचार की लड़ाई में हार हो चुकी थी इसलिए उस समय आरएसएस से जुड़े नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी। जब व्यक्ति तर्क से नहीं लड़ सकता, विचार को नहीं जीत सकता तब व्यक्ति हथियार उठाता है और ये ही नाथूराम गोडसे ने किया और ये हमला गांधी को तो मार गया पर गांधी के विचार को मजबूत कर गया और जिसके बूते कांग्रेस पार्टी जो गांधी की राजनैतिक उत्तराधिकारी थी, ने दषकों तक इस देष पर राज किया और नेहरू गांधी परिवार के लोगों ने इस पार्टी का नेतृत्व किया। आज विरोधी विचार सत्ता में पूरी ताकत के साथ काबिज है तो समय आया है पहली बार विचार को मारने का, विचार को नेस्तनाबूद करने का, पर विचार जिंदा है और जिंदा रहेंगे। किसी वैज्ञानिक की कही उक्ति याद आती है कि आने वाली पीढीयां शायद भरोसा न करें कि हांड मांस का पुतला इस धरती पर आया था जिसने मानवता की धारा बदल दी। पिछले दो हजार साल में अगर कोई सच्चा वैचारिक व्यक्ति पैदा हुआ है जिसने अपने विचार को जीकर दिखाया तो वो गांधी थे जिसकी कथनी और करनी में भेद नहीं था। बाकि विचार तो महज विचार थे विचार की प्रक्रिया का हिस्सा थे, अच्छी अच्छी बातें थी जिसने कही उसने उन बातों को माना ये जरूरी नहीं परन्तु गांधी ने अपने विचार को जिया और साबित किया कि अहिंसा के बल पर और सत्य के प्रभाव से, बिना अस्त्र शस्त्र से क्रांति लाई जाती है और ऐसी क्रांतियां सफल भी होती है। इसलिए विचार जिसका प्रभाव पूरी मानवता पर हो उसको मिटाने का ये पहला कदम हो सकता है एक बार सफल होता
Shyam Narayan Ranga "Abhimanue"

नजर आए लेकिन इसकी पूर्ण सफलता संदिग्ध है।


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