Flash

याद आता है बणाटी उत्सव

By SHYAM NARAYAN RANGA - Monday, June 16, 2008 No Comments
Shyam Narayan Ranga
बीकानेर में दीपावली के दिन बारहगुवाड चौक में बणाटी उत्सव मनाया जाता था। पिछले तीन सालों से यह उत्सव बंद है। दीपावली आते ही यह उत्सव युवाओं व बुजुर्गों को याद आ जाता है। आईए जानते हैं क्या है बणाटी उत्सव
बणाटी की शुरूआत करीब सौ साल पहले फागणिया महाराज के परिवार द्वारा की गई थी। बणाटी एक तरह का शस्त्र है जो जरूरत पडने पर काफी काम आता है।
जानते हैं बणाटी है क्याः एक लम्बी लकडी को पहले तेल लगाकर तैयार किया जाता है। फिर उसके दोनों तरफ लोहे की परत लगा दी जाती है। इस लोहे की परत पर सूती साडी या अन्य सूती कपडों को बांधा जाता है और फिर इसे लोहे की किल व लोहे के पतले तारों से स्थिर किया जाता है। इस प्रकार सूती कपडा पूरी तरह से स्थिर हो जाता है। बाद में इस सूती कपडे को दिन भर सफेद मिट्टी में भिगोया जाता है और मिट्टी को सूखाकर इसे मगफली या सरसों के तेल में डूबोकर रखा जाता है।जब दीपावली में लक्ष्मी की पूजा की जाती है तो उस लक्ष्मी पूजन के साथ ही बणाटी की पूजा भी की जाती है। बाद में बारहगुवाड चौक में हजारों लोगों की भीड के सामने इस लकडी के दोनों तरफ आग लगाकर इसे शरीर के चारों ओर दोनों हाथों से घुमाया जाता है। इस तरह आग का यह खेल बणाटी उत्सव कहलाता है। पिछले तीन सालों से यह उत्सव नहीं मनाया जा रहा है। इस खेल से जुडे ईश्वर दास छंगाणी ने बताया कि सामाजिक कारणों से यह खेल तीन सालों से बंद है लेकिन अगले साल से यह शुरू हो सके इसके पूरे प्रयास किए जाएंगे। जब यह बणाटी घुमायी जाती थी जो दर्शक खिलाडी का प्रोत्साहन करने के लिए ’अरे वाह बुढया वाह‘ और ’अरे वाह खलीफा वाह‘ के नारे लगाते थे। इसका मतलब यह होता था कि बणाटी घुमाने वाला व्यक्ति लम्बी उम्र ले और दीर्घायु हो। इस दीपावली पर भी लोगों को बणाटी की काफी याद आती है और बणाटी उत्सव का न होना दीपावली की रौनक को कम ही करता है। बणाटी घुमाने में ईश्वर महाराज, शेर महाराज, पाघा महाराज, अणदी छंगाणी व सुंदरलाल ओझा का नाम विशेष तौर पर लिया जाता है। बणाटी वही घुमा सकता है जिसके शरीर में ताकत हो और हौसला बुलंद हो।खबरएक्सप्रेस डॉट कॉम परिवार इस बात की उम्मीद करता है कि धाीरे धीरे लुप्त हो रही यह परम्परा वापस चालू होगी और लोग इसका वही आनंद ले सकगे जो किसी जमाने में लेते थे।











श्याम नारायण रंगा (Shyam Narayan Ranga)

No Comment to " याद आता है बणाटी उत्सव "