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चुटकुलों और चर्चाओं जैसे सामाजिक मसालों के साथ भांग को सबसे पहले पत्थर की शिला पर रगडा जाता है और फिर साफी से छानकर एक बाल्टी में इकट्ठा किया जाता है और फिर शुरू होता है भांग गटकने का सिलसिला। यही सिलसिला इस भैंरू कुटिया पर पिछले काफी अरसे से चल रहा है चाहे कैसा भी मौसम हो भांग की तरंग नहीं कम होती ऑंधी हो या बरसात चाहे तीखी धूप हो या कैसा भी मौसम हो भांग की तरंग तो होती ही है। शहर का कोई भी व्यक्ति यदि भांग पीना चाहे तो यहाँ पहच सकता है। यह जगह जात बिरादरी से उपर है। यहा ब्राह्मण, कायस्थ, नाई, मोची, धोबी सब लोग साथ बैठकर भांग पीते हैं। पेश है श्याम नारायण रंगा की तरफ से एक साँस्कृतिक पेशकश :-
यही उद्बोधन रहता है बीकानेर की भैरूँ कुटिया में हर रोज सुबह ग्यारह छप्पन पर जी हां मस्तमौला शहर बीकानेर की मस्ती की एक तरंग है भांग और भांग प्रेमी रोज जुटते हैं एक जगह पर और गटकते लोटे पर लोटे। हम बात कर कर रहें हैं बीकानेर शहर के उन भांग प्रेमियों की जो प्रतिदिन भांग लेते है और भांग लेने का समय और स्थान भी निर्धारित है। बीकानेर शहर के पश्चिम दिशा के अंतिम छोर पर स्थित है भैंरू कुटिया और इसी स्थान पर रोजाना सुबह के ग्यारह छप्पन पर भांग छनती है और भांग प्रेमी जमकर भांग पीते हैं।भांग की इस तरंग में सरोबार होने वालों में मदन जैरी उर्फ मास्टर साहब का नाम सबसे आगे है। इसके साथ ही सेवग जी, मारू साहब और पुरोहित जी भी भांग लेने पहच जाते हैं।चुटकुलों और चर्चाओं जैसे सामाजिक मसालों के साथ भांग को सबसे पहले पत्थर की शिला पर रगडा जाता है और फिर साफी से छानकर एक बाल्टी में इकट्ठा किया जाता है और फिर शुरू होता है भांग गटकने का सिलसिला। यही सिलसिला इस भैंरू कुटिया पर पिछले काफी अरसे से चल रहा है चाहे कैसा भी मौसम हो भांग की तरंग नहीं कम होती ऑंधी हो या बरसात चाहे तीखी धूप हो या कैसा भी मौसम हो भांग की तरंग तो होती ही है। शहर का कोई भी व्यक्ति यदि भांग पीना चाहे तो यहाँ पहच सकता है। यह जगह जात बिरादरी से उपर है। यहा ब्राह्मण, कायस्थ, नाई, मोची, धोबी सब लोग साथ बैठकर भांग पीते हैं। यह बात बच्चन की मधुशाला की उन पंक्तियों को सार्थक दर्शाती है जिसमें बच्चन ने कहा है कि मंदिर मस्जिद बैर कराते प्रेम बढाती मधुशालायदि आप भी इस भांग की मस्ती में डूबना चाहते हैं तो चले आईये बीकानेर की भैरूँ कुटिया पर पर ध्यान रखिये ग्यारह छप्पन पर सुबह। और अब पढये भांग से जुडे कुछ तथ्य आयुर्वेद में भांग को एक औषधि के रूप में देखा गया है पेट संबंधी बीमारियों में भांग से उपचार किया जाता है। रिटायर्ड जिला आयुर्वेद अधिकारी बीकानेर श्री चतुर्भुज व्यास ने बताया कि भांग आयुर्वेद में एक महत्ती ओषधि है। भांग को एक सात्विक नशा माना गया है। जहाँ शराब पीकर लोग उत्पात करते हैं वहीं भांग पीकर आज तक किसी ने उत्पात नहीं किया। भांग एक शांत नशा है और भांग पीने के बाद व्यक्ति शांत स्वभाव में आ जाता है। एक अनुमान के मुताबिक बीकानेर में प्रतिदिन करीब दस हजार लोग भांग पीते हैं। जहाँ भांग सामान्य स्प से छानकर पी जाती है वहीं सुखी भांग पीने का भी प्रचलन है। साथ ही भांग में काजू, बादाम, किशमिश दूध, शहत व अन्य सामग्री मिलाकर पीने का भी प्रचलन है ऐसी स्थिति में यह भांग ठण्डाई कहलाती है। भगवान शिव के भी भांग का भोग लगाने की परम्परा है इसका कारण यह है, माना जाता है कि भांग सात्विक नशा है और भांग लेकर यदि कोई काम किया जाए तो वयक्ति वह काम पूरे मनोयोग से करेगा और उस काम मे पूरी तरह से लीन हो जाएगा, बस यही कारण है कि भगवान शिव जब ध्यान धरते हैं तो भांग लेकर धरते हैं ताकि ध्यान में ही लीन हो जाए और इसी कारण भांग शिव की प्रिय प्रसादी है। और अंतिम बात यह कि बीकानेर भांग प्रमियों की पसंदीदा जगह है यहां कोलकता, बम्बई, मद्रास, अमरावती, बडौदा, उज्जैन सहित पूरे विश्व से लोग भांग पीने के लिए आते हैं और भांग पीने का सही मौसम होली व सावन का महीना है। इन दिनों में बीकानेर ही हर बगेची व मौहल्ले में आपको भांग छनती नजर आ जाएगी Written by : Shyam Naraya Ranga : shyamnranga@gmail.com

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