भारत में सर्वाधिक बोली जानी वाली और प्रयोग में ली जाने वाली भाषा हिन्दी है। एक अनुमान के मुताबिक करीब 35 करोड लोग इस भाषा का प्रयोग देशभर में प्रतिदिन करते हैं। भारत की आजादी के बाद संविधान निर्माण के समय 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया गया तभी से हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी को राजभाषा बनवाने में हजारी प्रसाद द्विवेदी, काका कालेलकर, सेठ गोविन्द दास सहित मैथिलीशरण गुप्त और कईं प्रकाण्ड विद्वानों का योगदान रहा। इस संबंध में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का दृष्टिकोण एकदम साफ था कि हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जो राजभाषा होने की तमाम योग्यताएं रखती है। रचनात्मक कार्यक्रम में गांधी जी ने लिखा है कि समूचे हिन्दुस्तान के साथ व्यवहार करने के लिए हमको भारतीय भाषाओं में से एक ऐसी भाषा की जरूरत है, जिसे आज ज्यादा से ज्यादा तादाद में लोग जानते और समझते हों और बाकी लोग जिसे झट से सीख सके। इसमें शक नहीं कि हिंदी ही ऐसी भाषा है। सच्ची शिक्षा में गांधी जी लिखते हैं कि बच्चों को सारी शिक्षा मातृभाषा में दी जानी चाहिए और बच्चों को हिन्दी और उर्दू का ज्ञान राष्ट्रभाषा के तौर पर दिया जाना चाहिए, इसका आरम्भ अक्षर ज्ञान से होना चाहिए। यहां यह बता देना जरूरी है कि गांधी जी उर्दू को हिन्दी के समकक्ष ही मानते थे और उनका मानना था कि प्रत्येक भारतीय को हिंदी और उर्दू का ज्ञान होना चाहिए। एक इस संबंध में महात्मा गांधी के दृष्टिकोण को और स्पष्ट करें तो मेरे सपनों का भारत पुस्तक में ‘राष्ट्रभाषा और लिपि’ शीर्षक में गांधी जी ने हिंदी यह बात साफ कही है देश को एक सामान्य भाषा की जरूरत है बजाय अलग अलग देशी भाषाओं के और इसके लिए उन्होंने हिंदी को सर्वाधिक उपयुक्त माना है। उन्होंने हमारे देश की अलग अलग भाषाओं की लिपियों को इस संबंध मे सबसे बडी रूकावट माना है। महात्मा गांधी के अनुसार राष्ट्रभाषा के लिए निम्नलिखित लक्षण होने चाहिए: ऐसी भाषा सरकारी नौकरों के लिए आसान होनी चाहिए, उस भाषा के द्वारा भारत का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक कामकाज हो सकना चाहिए, उस भाषा को ज्यादातर लोग बालते हो, वह भाषा राष्ट्र के लिए आसान हो, उस भाषा का विचार करते समय क्षणिक या कुछ समय तक रहने वाली स्थिति पर जोर न दिया जाए।
यहां पर गांधी जी हिंदी और अंग्रेजी की तुलना भी की है और साफ मत बताया है कि अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी ज्यादा आसान और सर्वग्राह्य है इसलिए यह विदेशी भाषा इस देश की आमजन की भाषा नहीं हो सकती है। गांधी जी के अनुसार पढे लिखे लोगों और उच्च पद पर आसीन व्यक्तियों को एक बार ऐसा लग सकता है कि अंग्रेजी ही इस देश की भाषा बन गई है लेकिन यह सत्य नहीं है। गांधी जी के अनुसार अंग्रेजी में एक भी ऐसा लक्षण नहीं है जो उसे इस देश की राजभाषा बनाएं बल्कि यह सारी योग्यताएं हिंदी में ही है। यहां गांधी जी लिखते हैं कि यह हिन्दुस्तानी भाषा हिन्दी और उर्दू के मेल से बने और जिसमें न तो संस्कृत की और न ही फारसी या अरबी की भरमार हो। राष्ट्रपिता कहते हैं कि हम अपनी प्रांतीयता को छोडकर अखिल भारतीय देशप्रेम को अपनाएं तो हिंदी को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। उनके अनुसार प्रांत प्रेम से बडा देशप्रेम है और हमें अपनी तमाम अविकसित और अलिखित बोलियों का बलिदान करके उसे हिन्दुस्तानी की बडी धारा में मिला देना चाहिए, यह आत्मोत्कर्ष के लिए की गई कुरबानी होगी, आत्महत्या नहीं।
इस तरह हम देखते हैं कि गांधी जी हिंदी के प्रखर हिमायती थे, उनके अनुसार हिंदी की शिक्षा देश के प्रत्येक विद्यालय में जरूरी कर देनी चाहिए। जो दक्षिणभाषी लोग इस मामले में थोडी असुविधा महसूस करते हैं उनको स्वदेशाभिमान पर भरोसा करके और विशेष प्रयत्न करके हिंदी सीख लेनी चाहिए। गांधी जी के अनुसर इस देश का हर प्रांत का व्यक्ति कमोबेश हिंदी समझता है, जहां उत्तर भारत के लोग हिंदी का प्रयोग धडल्ले से करते हैं वहीं दक्षिण भारत के लोग हिंदी बोलते भले न हो पर समझते अवश्य हैं। इसलिए हिंदी का प्रयोग देश में सर्वाधिक किया जाता है इसलिए सिर्फ कानूनी और संवैधानिक तौर पर नहीं आमजन के स्तर पर हिंदी को अपनाना आवश्यक है। देश में सवोच्च और उच्च न्यायालय सहित संसद की कार्यवाही और विधानसभाओं की कार्यवाही भी हिंदी में की जाए तो आमजन समस्त व्यवस्था को ज्यादा करीब से देख व समझ सकेगा। वर्तमान समय में यह जरूरी है कि हम हिंदी के प्रचार प्रसार व आमजन के उसके प्रयोग को लेकर महात्मा गांधी के सपने को साकार करें।
श्याम नारायण रंगा
पुष्करणा स्टेडियम के पास
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