भारत के संविधान में आर्टिक्ल 19{1}{क} में वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है परंतु यह स्वतंत्रता निर्बाध नहीं है और इस पर राज्य युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है। साथ ही संविधान में यह भी प्रावधान है कि देष में जब भी आपातकाल लगाया जाएगा आर्टिकल 19{1}{क} अपने आप स्थगित हो जाएगा इसके लिए अलग से कोई नोटिफिकेषन की भी आवष्यकता नहीं है। वर्तमान में देष के एक न्यूज चैनल एनडीटीवी पर केन्द्र सरकार द्वारा एक दिन का प्रतिबंध लगाया गया है। यह निर्णय उच्च स्तरीय समिति ने किया है और सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने यह प्रतिबंध लगाया है। पूरे पत्रकारिता के जगत में सरकार की इस कार्यवाही की निंदा की जा रही है।
सरकार ने पठानकोट हमले के दौरान संवेदनषील जानकारियां देने के आरोप में ये प्रतिबंध लगाया है। भारतीय शोसल मीडिया पर इसकी तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। जनसत्ता के पूर्व संपादक व नामचीन पत्रकार ओम थानवी ने केन्द्र सरकार के इस कदम का जोरदार विरोध किया है और लिखा है कि देष के प्रत्येक चैनल एनडीटीवी के साथ इस दिन अपने परदे को काला रखे और एडिटर्स गिल्ड व प्रेस क्लब जैसे देषभर के संस्थान इस दिन सामूहिक विरोध दर्ज करवाएं। राजदीप सरदेसाई ने यह कहते हुए प्रष्न पूछा है कि आज एनडीटीवी कल कौन इसी तरह की प्रतिक्रिया करते हुए सागरिका घोष ने मीडिया की हत्या मत करो लिखा है। कुछ लोगों ने इसको अघोषित आपातकाल तक कहा है। अपने पूरे उत्थान काल में जो व्यक्ति व पार्टी इंदिरा गांधी की इमरजेंसी का विरोध करते आए थे और उसको काला दिन बताते आए थे आज वे ही लोग विष्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक मीडिया चैनल पर प्रतिबंध लगाकर कौनसा संदेष देना चाहते हैं ये समझ से बाहर है। ये वो ही नरेन्द्र मोदी है जो इस बात को कईं मंचों पर कहते आए हैं कि हम एक मीमांसा कर रहे हैं कि देष में कोई ऐसा नेता सामने ही न आए जिसके मन में इमरजेंसी जैसा पाप हो। वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के क्या मायने है और यह किस हद तक प्रयोग लाई जा सकती है यह तथ्य, परिस्थितियों व विवेक का प्रष्न है पर कईं बार ऐसा होता है कि बात करते करते मीडिया संस्थान व चैनल अपनी इस स्वतंत्रता का बेबाक प्रयोग करते हैं और यह स्वतंत्रता का दूरूपयोग नजर आता है। इसलिए समय समय पर विवाद का प्रष्न रहा है कि 19{1}{क} कहां तक विस्तारित है। परंतु इस मामले में यह तथ्य भी गौर करने लायक है कि एनडीटीवी व कईं चैनल पिछले लम्बे समय से मोदी सरकार व सरकार की नीतियों की घोर आलोचना करते आए हैं और ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार यह निर्णय सरकार की मंषा कर प्रष्नचिन्ह लगाता नजर आता है। कईं पत्रकारों का यह भी मानना है कि आज यह प्रतिबंध एक चैनल पर लगा है और कल इसकी लपेट में कईं और मीडिया संस्थान भी आ सकते हैं। साथ ही यह प्रष्न भी उठ रहा है कि अन्य चैनल और अगले दिन लगभग सब समाचारपत्रों ने इसी तरह की कवरेज की थी तो प्रतिबंध सिर्फ एक चैनल पर ही क्यों। भोपाल की मुठभेड़ और दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के साथ साथ राहुल गांधी की गिरफ्तारी के साथ साथ मीडिया संस्थान पर यह प्रतिबंध सरकार को कटघरे में खड़ा करता है और इस कारण विपक्ष को सरकार को घेरने का एक और मुद्दा मिल गया है। वर्तमान सरकार पर असहिष्णुता सहित कईं तरह के आरोप समय समय पर लगते रहे हैं और वर्तमान प्रधानमंत्री का कार्यकाल काफी बातों को लेकर विवाद का विषय रहा है इस हालात में एक मीडिया संस्थान पर प्रतिबंध एक बार फिर नरेन्द्र मोदी को परेषानी में ला सकता है। लोकतंत्र में अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करना सबसे महत्वपूर्ण तत्व में से एक है। एक जमाना था जब शादी के कार्ड तक राजा महाराजाओं की अनुमति के बिना छपवाए नहीं जा सकते थे और जयहिंद व वंदे मातरम् तक बोलने पर राजद्रोह का आरोप लगाया जाता था और स्वतंत्रता के बाद हमारे संविधान निर्मातओं ने इस अभिव्यक्ति के महत्व को समझाा और संविधान में इस अधिकार को शामिल करके लोकतंत्र को मजबूत करने की तरफ एक कदम उठाया और पूरे विष्व में भारत के लोकतंत्र की इसलिए प्रषंसा की जाती है कि भारत के लोकतंत्र की जड़े मजबूत है परंतु ऐसी स्थिति में अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाना लोकतंत्र की जड़ों को खोदने जैसा लग रहा ळें कुछ समय पहले देष में असहिष्णुता की बात को लेकर बवाल मचाया गया था और कुछ संगठन ये तय करने में लगे थे कि हमारा खानपान और पहनावा कैसा होना चाहिए और जब देष में इन संगठनों के विरोध में आवाज उठने लगी तो संगठन के लोग मारपीट तक करने लगे और अब फिर ऐसे की अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर मीडिया संस्थान पर प्रतिबंध लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं है। अगर मान भी लिया जाए कि किसी मीडिया संस्थान से गलती हुई है तो उसके बहुत बड़े परिणाम सामने अभी तक आए नहीं है और अगर यह गंभीर अपराध है जिससे राष्ट्र को गंभीर खतरा है तो एक दिन का प्रतिबंध छोटी सजा कही जाएगी और अगर ऐसा कोई बड़ा अपराध नहीं है तो सिर्फ चेतावनी देकर भी बात को समझाया जा सकता था। इस तरह से एक दिन का प्रतिबंध बुद्विजीवियों की समझ से बाहर है। अगर किसी यूनिवर्सिटी में कोई छात्रसंघ का अध्यक्ष अपनी बात कहता है तो उसको रोका जाता है, किसी प्रदेष का कोई मुख्यमंत्री युक्तियुक्त रूप से सरकार की किसी कार्यवाही का सबूत मांगा जाता है तो उसको देषविरोधी कहकर सत्ताधारी पार्टी के लोग उस पर काली स्याही फेंकते हैं और जब कोई मीडिया संस्थान अपनी बात को कहता है और बेबाक और स्पष्ट रूप से कहता है तो उस पर प्रतिबंध लगाया जाता है। लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात युक्तियुक्त ढंग से कहने का अधिकार मिले। सरकार को सोचना होगा कि ये ही हालात रहे तो वह समय दूर नहीं की जैसे वर्ड बैंक ने देष को विकास की सूची में 130 नंबर पर रखा है उसी तरह विष्व स्तर के कईं संस्थान भारतीय लोकतंत्र की भी समीक्षा करके रेंकिंग कर दे।
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
नत्थूसर गेट के बाहर
पुष्करणा स्टेडियम के पास
बीकानेर {राजस्थान} 334004
मोबाईल 9950050079
No Comment to " मीडिया पर प्रतिबंध "
Post a Comment