ये रचना मैनंे 01.05.97 को तब लिखी थी तब लिखी थी जब मैं श्री जैन पी जी महाविद्यालय बीकानेर में वाणिज्य तृतीय वर्ष का छात्र था। उस समय मेरी उम्र 21 साल की थी।
देख की इस नींव की व्यथा,
कवि मन आतुर हुआ लिखने को कथा।
कंगूरा बनने की होड़ मची है चारों ओर,
सम्मान की भूख में दौड़ रहा है मानव चारो ओर।
कंगूरे की चमक में नींव की आह दब गई,
पर इसकी कठोरता से क्या सत्यता दब गई।
क्यों नहीं समझता कंगूरा नींव की पहचान को,
टिकाए खड़ा है जो उसी पर अपनी झूठी आन को।
नींव की नियति मेें परिवर्तन लाना होगा,
अब नींव की पहचान को फिर से बनाना होगा।
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
पुष्करणा स्टेडियम के पास,
नत्थूसर गेट के बाहर,
बीकानेर - 334004
मोबाईल 9950050079
देख की इस नींव की व्यथा,
कवि मन आतुर हुआ लिखने को कथा।
कंगूरा बनने की होड़ मची है चारों ओर,
सम्मान की भूख में दौड़ रहा है मानव चारो ओर।
कंगूरे की चमक में नींव की आह दब गई,
पर इसकी कठोरता से क्या सत्यता दब गई।
क्यों नहीं समझता कंगूरा नींव की पहचान को,
टिकाए खड़ा है जो उसी पर अपनी झूठी आन को।
नींव की नियति मेें परिवर्तन लाना होगा,
अब नींव की पहचान को फिर से बनाना होगा।
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
पुष्करणा स्टेडियम के पास,
नत्थूसर गेट के बाहर,
बीकानेर - 334004
मोबाईल 9950050079
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