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साम्प्रदायिक सौहार्द का त्यौंहार आखाबीज

By SHYAM NARAYAN RANGA - Monday, April 20, 2015 1 Comment
बीकानेर, बीकानेर नगर की स्थापना सम्वत् पंद्रह सौ पैतालीस में राव बीका ने की थी और तब से लकर आज तक आखाबीज का यह त्यौंहार बीकानेर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। किसी भी शहर की स्थापना का दिन निष्चित रूप से उस शहर के वाषिंदों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन होता है।
बीकानेर में यह त्यौंहार काफी उत्साह से  मनाया जाता है और यह एक ऐसा त्यौंहार है जिसे प्रत्येक बीकानेरी मनाता है मतलब यह है कि यह त्यौंहारी किसी जाति या धर्म से जुड़ा नहीं है बल्कि नगर की स्थापना से जुड़ा होने के कारण हिन्दू, मुसलमान, सिख राजपूत सभी जाति के लोग  इस दिन को स्थापना दिवस के रूप में मनाते हैं। जहां होली दिपावली ईद मौहर्रम, आदि त्यौंहार धर्म विषेष से जुड़े हैं वहीं नगर स्थापना का यह दिन आखाबीज नगर वैभव से जुड़ा है। इस दिन बीकानेर के रहने वाले निवासी हर्षोलास के साथ अपने घरों की छत पर पतंगबाजी करते हैं और बोई काट्या और बोई मार्या की आवाजों से शहर को गुंजायमान करते र्हैं। इस दिन शहर के प्रत्येक घर में खीचड़ा बनता है। प्रायः यह व्यंजन गंेहूॅं, बाजारी का बनाया जाता है और इसके साथ ईमली से ईमली का रस जिसे ईमलाणी कहते हैं बड़े चाव से बनाई और पी तथा पिलाई जाती है। साथ में प्रत्येक घर में बनता है दो पड़द की रोटी जिसको दुपड़ा फुलका कहते हैं इसी के साथ बड़ी की सब्जी। आखाबीज को बीकानेर की स्थापना होने के कारण यह दिन बीकानेरवासियों के लिए त्यौंहार का दिन है और सभी जाति बंधनों से ऊपर उठकर लोग इस दिन मिलजुलकर नगर की स्थापना का दिवस मनाते हैं। यह त्यौंहार वास्तव में मिसाल है भाईचारे की, सम्पन्नता की, उन्नति की प्रगति की यह त्यौंहार शहर के निवासियों को सभी बातों से ऊपर उठकर साथ हिलमिलकर रहने का संदेष देता है। यह त्यौंहार बताता है कि बीकानेर के द्वार सभी धर्म, जाति बिरादरी के लिए हमेषा खुले हैं यहां जाति पांति का बंधन नहीं है यहां धर्म की राड नहीं है यह शहर अपने आप में मिसाल है भाईचारे की और स्थापना के पीछे जो मंतव्य रहा होगा राव बीकाजी का शायद यही कि बीकानेर में सभी प्रेम से रहे और सभी लोग एक दूसरे के सुख दुख के साथी बनें। राव बीकाजी ने यह शहर सुदूर पष्चिम के रेगिस्तान में बसाया और उस दिन पतंग उड़ाकर तत्कालीन चंदा उड़ाकर नगर की स्थापना की और संदेष दिया कि जिस तरह पतंग आकाष में आगे बढ़ती है उसी प्रकार जीवन में बीकानेर के लोग प्रगति करे उन्नति करे विकास करे और पतंग की डोर अपने हाथ में रखने से मतलब है कि पतंग के रूप में सुख हमेषा उपर की ओर जाएगा परंतु सुखों की डोर अपने हाथ मे रखो और जीवन को नियंत्रित रखो। और यही संदेष दुनिया का हर धर्म मजहब देता है कि सुख होने से जीवन का नियंत्रण समाप्त न हो सुखो की डोर हाथ में रखकर सुख का आनंद लिया जाए। आखाबीज का अगला दिन आखातीज भी नगर के लोग उसी उमंग से मनाते हैं स्थापना दिवस के रूप में। स्टेट टाइम में आखाबीज और आखातीज दोनों दिन का राजकीय अवकाष होता था परंतु वर्तमान में सिर्फ आखातीज का अवकाष रखा जाता है। स्थापना दिवस व पतंग को लेकर कुछ दोहे प्रचलित है जो प्रत्येक बीकानेरी की जुबान पर है:-
पंद्रह सौ पैतालवे, सुद बैषाख सुमेर
थावर बीज थरपियो, बीके बीकानेर

गवरा दादी पून दे
टाबरियो का कन्ना उडे

श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
पुष्करणा स्टेडियम के पास
बीकानेर 334004
मोबाईल 9950050079

1 One Comment " साम्प्रदायिक सौहार्द का त्यौंहार आखाबीज "

Praveen Kumar Thakur April 17, 2018 at 11:45 PM

बीकानेर की स्थापना के बारे में स्पष्ट करें कि आखाबीज है या आखातीज