ये मेरा पुराना आलेख है जो कईं जगह छप चुका है और आज मैं इसको अपने ब्लाॅग पर लगा रहा हूॅं।
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आज सुबह उठते ही अखबार हाथ में लगा और एक कि्रकेट स्टार का फोटो मुख पृष्ठ पर चमक रहा था। जब मैंने समाचार पत्र को आगे देखा तो करीब तीन मिनट बाद मेरी नजर एक ऐसी खबर पर पडी जो कि वास्तव में शोक संतृप्त कर देने वाली थी। भारत के पहले फिल्ड मार्शल मानेक शॉ का निधन हो गया। इस खबर को समाचार पत्र में जो स्थान दिया गया था उसे देखकर मन को बडी पीडा हुई।
पहले फिल्ड मार्शल मानेक शॉ जिन्होंने भारत पाक युद्ध के दौरान करीब ९६ हजार पाकिस्तानी सै
निको को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया था तथा पाकिस्तान के तात्कालिन सेना प्रमुख ए के नियाजी को अपने हजारो सैनिको के साथ आत्मसमर्पण करना पडा था। आज जब भारत पाक का कि्रकेट मैच होता है और भारत की जीत होती है तो पूरा भारत पटाखों की आवाज से गज उठता है। मेरी नजर में मानेक शॉ की बहादूरी के सामने यह जीत कोई मायने ही नहीं रखती है। जहाँ भारतीय मीडिया, जनता व नेताओं को इस जीत पर खुशी होती है वहीं मानेक शॉ के निधन पर उतना दुःख नहीं होना हमारे लिए बडे शर्म की बात है।
मीडिया के लिए यह खबर न तो बिकने वाली है और न ही टी आर पी रेटिंग बढाने वाली, इस खबर पर किसी भी चैनल को कोई विज्ञापन भी नहीं मिल सकता और शायद यही कारण है कि भारतीय मीडिया ने भारत के इस महानायक के निधन को महज एक समाचार समझा और भारतीय मीडिया इसे वो इज्जत न दे सका जो आरूषि हत्याकांड या ऐसे ही किसी खबरों को दी जाती है। आज भी हमारे प्रत्येक न्यूज चैनल पर आरूषि हत्याकाड पर सीबीआई की प्रेस कप्रेस को महत्व दिया जा रहा था बजाय की सदी के इस वास्तविक नायक को श्रृद्धांजली दी जाती । जो बिकता है वही दिखता के माहौल ने हमारे देश के मीडिया के चरित्र को इतना गिरा दिया है कि आज मीडिया अपने दायित्वों से विमुख हो गया है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का इस हद तक गिरना हमारे लोकतंत्र व स्वस्थ समाज के लिए बडे शर्म की बात है।
मानेक शॉ के निधन को हमारी सरकार व नेताअ ने भी बडे हल्के से लिया और जिस नायक के अंतिम संस्कार में स्वयं प्रधानमंत्री क शामिल होना चाहिए था वहाँ रक्षा राज्य मंत्री की उपस्थिति ने इस समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यही सच्ची श्रृद्धांजलि है भारत के वीरों को, क्या ये सम्मान मिलता है देश पर मर मिटने वालों को। हमारे नेताओं को शर्म आनी चाहिए कि जिस बंग्लादेश को बनाने के नाम पर और पाकिस्तन के नाम पर ये लोग वोट बटोरते हैं उस पाकिस्तान को अगर वास्तव में किसी ने सबक सिखया तो मानेक शॉ थे। अपने राजनितिक स्वार्थ के लिए गली मौहल्ले व नुक्कड तक किसी मोमेन्टो को बाँटने के लिए पहच जाने वाले ये नेता अगर मानेक शॉ के अंतिम संस्कार में नहीं पहचते हैं तो ये उनका खुद का अपमान है क्योंकि मानेक शॉ ने जो किया उसे आज पूरा राष्ट्र भोग रहा है और किसी खुदगर्ज नेता के न जाने से उनके सम्मान में कमी नहीं आएगी ।
हम अपने राष्ट्र पर मर मिटने वाले ऐसे वीरों और ऐसे जाँबाजों को नमन करते हैं और दिल से श्रृंद्धाजलि अर्पित करते हैं कि भगवान उनकी आत्मा को शांति दे, सैम सर हमें माफ कर देना कि हमारे देश के नेताओं के पास व इस देश की मीडिया के पास वो दिल नहीं है, वो जज्बा नहीं है कि आप को नमन कर सके।
पहले फिल्ड मार्शल मानेक शॉ जिन्होंने भारत पाक युद्ध के दौरान करीब ९६ हजार पाकिस्तानी सै

मीडिया के लिए यह खबर न तो बिकने वाली है और न ही टी आर पी रेटिंग बढाने वाली, इस खबर पर किसी भी चैनल को कोई विज्ञापन भी नहीं मिल सकता और शायद यही कारण है कि भारतीय मीडिया ने भारत के इस महानायक के निधन को महज एक समाचार समझा और भारतीय मीडिया इसे वो इज्जत न दे सका जो आरूषि हत्याकांड या ऐसे ही किसी खबरों को दी जाती है। आज भी हमारे प्रत्येक न्यूज चैनल पर आरूषि हत्याकाड पर सीबीआई की प्रेस कप्रेस को महत्व दिया जा रहा था बजाय की सदी के इस वास्तविक नायक को श्रृद्धांजली दी जाती । जो बिकता है वही दिखता के माहौल ने हमारे देश के मीडिया के चरित्र को इतना गिरा दिया है कि आज मीडिया अपने दायित्वों से विमुख हो गया है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का इस हद तक गिरना हमारे लोकतंत्र व स्वस्थ समाज के लिए बडे शर्म की बात है।

हम अपने राष्ट्र पर मर मिटने वाले ऐसे वीरों और ऐसे जाँबाजों को नमन करते हैं और दिल से श्रृंद्धाजलि अर्पित करते हैं कि भगवान उनकी आत्मा को शांति दे, सैम सर हमें माफ कर देना कि हमारे देश के नेताओं के पास व इस देश की मीडिया के पास वो दिल नहीं है, वो जज्बा नहीं है कि आप को नमन कर सके।
जय हिन्द
श्याम नारायण रंगा
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