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एक जमाना टीवी का

By SHYAM NARAYAN RANGA - Sunday, September 14, 2014 8 Comments
दोस्तों आज आफ साथ कुछ पुरानी शानदार यादें बांटने का मन हो रहा है। मैं आज जब अपने दोस्त के घर गया तो उसके भतीजे ने टीवी के रिमोट से टीवी के विभिन्न कार्यक्रमों को देखने लगा। मेरे दोस्त ने कहा कि यार जब हम छोटे थे तो टीवी का क्या क्रेज था ओर दोस्तों यहीं से शुरू हुआ मेरे यादों का सिलसिला। वो भी क्या जमाना था जब घर में टीवी होना बडे गौरव की बात होती थी। मेरे शहर में टेलीविजन का आगमन 1983-84  में हुआ था। मेरे मौहल्ले में सबसे पहले टीवी मेरे पडौसी रोहिणी कुमार जी पुरोहित के यहां था। क्या समय था वो भी जब दूरदर्शन के कार्यक्रम आया करते थे और दूरदर्शन के वो प्रोग्राम जीवन एक एक हिस्सा बन गए थे। उन प्रोग्रामों के समय के हिसाब से ही बच्चों का खेलना व पढना, औरतों का खाना बनाना व घर के काम करना, मर्दों का बाहर जाना आना आदि के समय का निर्धारण होता था। लोगों को बडी उत्सुकता थी इस बक्से को लेकर जिसमें देश दुनिया की खबरे आती थी धारावाहिक आते थे और फिल्मी गानों का कार्यक्रम चित्रहार आता था। हम लोग, बुनियाद, तमस, रामायण, महाभारत, नुक्कड, फूल खिले हैं गुलशन गुलशन, कच्ची धूप, रजनी, गुणीराम, व्योकेश बक्शी, करमचंद, वागले की दुनिया, उडान, मुंगेरी लाल के हसीन सपने, भारत एक खोज, एक कहानी, सुरभि, तेनालीराम जैसे न जाने कितने ऐसे प्रोग्राम थे जो उस समय के लोगों के जीवन में रच बस गए थे। मुझे आज भी याद है कि जब साप्ताहिकी कार्यक्रम आता था जिसमे सप्ताह भर के कार्यक्रम के आरे में बताते थे तो लोग पेन कॉपी लेकर बैठते थे और कार्यक्रम नोट करते थे और मित्र इंतजार रहता था कि इस सप्ताह कौनसी फिल्में दूरदर्शन में आने वाली है। दूरदर्शन के वो किरदार जीवन के अपने आस पास के किरदारों की भांति लगते थे। जासूस करमचंद, व्योककेस बक्शी, हवेलीराम जी, लाजो जी, रजनी, गनपत हवलदार साईकिल मैकेनिक हरी, हज्जाम करीम, टीचर जी,  जैसे किरदारों में लोग अपने आप को पाते थे। वो भी एक जमाना था जब टीवी में मंजरी जोशी, सलमा सुल्तान न्यूज पढा करते थे। मुझे याद है मेरी बहनें सलमा सुल्तान के चेहरे पर बिन्दी लगाकर देखा करती थी कि वो कैसी लगती हे। रामायण व महाभारत के समय में तो अघोषित 144 धारा लग जाती थी, सारी सडके सूनी सारे लोग टीवी के सामने बैठ जाते थे और बहुत से ऐसे लोग थे जो रामायण में राम व सीता की आरती करते थे और टीवी के सामने फूल चढाते थे।

टीवी से जुडी मेरी यादे और भी है दोस्तों जिनमे बहुत से मौहल्लों मे एक दो घरों में ही टीवी हुआ करता था और उस मौहल्ले के सारे लोग उस घर में जम जाया करते थे और उस घर के लोग अपने घर के आंगन में टीवी रखा करते थे । उस समय बडे बुजुर्गों को कुर्सीयां दी जाती थी और बच्चे और औरते नीचे जमीन पर बैठकर टीवी देखा करते थे। सबसे ज्यादा क्रेज चित्रहार व फिल्मों का था। जिस घर में टीवी होती थी वो तो मौहल्ले का सबसे चर्चित व्यक्ति होता था उसको तवज्जो दी जाती थी। कभी कभी अगर टीवी वाले घर के मालिक का मूड खराब है तो वो किसी को भी घर में आने नहीं देता था। काफी दिल दूखता था उस समय दोस्तों सो ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को हमेशा राजी रखा जाता था। टीवी में दो समय था सुबह और शाम के वक्त। वो लम्बी बीईप की आवाज और खराब पिक्चर आने पर घर की छत पर जाकर एंटिना का सही करना काफी याद आता है। घर का एक शक्स जो अक्सर कोई बच्चा होता था, छत पर जाकर एंटिना इधर उधर घूमाता था और एक व्यक्ति नीचे खडा रहता था और एक टीवी के आगे। इस तरह सीधी बात होती थी तीनो लोगों में कि पिक्चर सही आ रही है या नहीं और जैसे ही पिक्चर क्लियर होती, सब ठीक हो जाता। भारतीय हिन्दू औरतों ने पहली बार 1984 में किसी का अंतिम संस्कार होते देखा था और वो जिसका अंतिम संस्कार होते देखा था वो शख्सियत थी श्रीमति इंदिरा गांधी। हिन्दू औरतों का शमशान के अंदर जाना मना है तो यह पहला अवसर था जब किसी शव को ऐसे जलते हुए देखा था और करोडो लोगों की आंखों में आंसुओं की अविरल धारा बह निकली थी। राजीव गांधी की झलक देखने के लिए लोग टीवी के समाचार सुना करते थे। 

एक बात और वो जमाना था श्वेत श्याम पर्दे का और टीवी भी ऐसी जिसके शटर लगा होता था, जनाब टीवी थी कोई छोटी मोटी चीज नहीं टीवी शटर की और शटर के एक लॉक होता था जिसकी चाबी दादाजी या पापा के पास रहती थी ताकि हर कोई टीवी से छेडछाड न कर सके। और दोस्तों जिनको रंगीन टीवी का शौक था उनके लिए बाजार में एक टीवी स्क्रीन का कवर मिलता था जिसमें तीन या चार कलर होते थे और वो कवर उस श्वेंत श्याम पर्दे के आगे लगा लिया जाता था तो ऐसा लगता जैसे कोई कलरफुल विजन बन रहा है। 
तो ऐसे चला यादों का एक दौर जिसमें टीवी थी, अपनत्व था, मौहल्ले का प्रेम था, जान पहचान थी साहब और कुल मिलाकर वह टीवी समाज को जोडने, साथ बैठने और एक साथ मनोरंजन में शरीक होने का दौर था। उस दौर में कॉमेडी थी, मजा था अश्लीलता नहीं थी दोस्तों। याद आता है वो मंजर जब टीवी ने राष्ट्रीय एकता का महत्वपूर्ण कार्य किया था। धन्य धन्य टीवी धन्य धन्य दूरदर्शन । 
 



श्याम नारायण रंगा ’अभिमन्यु‘ (Shyam Narayan Ranga) "Abhimanue"
पुष्करणा स्टेडियम के पास, नत्थूसर गेट के बाहर, बीकानेर

8 Comments " एक जमाना टीवी का "

Unknown May 25, 2017 at 4:28 AM

bahut badhiya lekh
purani yade taja kardi

Sushil Kumar Acharya May 25, 2017 at 4:49 AM

Wah

Sushil Kumar Acharya May 25, 2017 at 4:49 AM

Wah

Unknown May 25, 2017 at 5:09 AM

Wah great...

neha bhargava May 25, 2017 at 6:58 AM

Mast sir ...Bahut hi badiya lekh h



Unknown May 25, 2017 at 11:38 AM

Waah shyam bhai, kya lekh likha hai aapne. Jis tarah se aapne warnan kiya hai lag raha hai ki abhi ki hi baat ho.

Unknown May 26, 2017 at 1:20 AM

Wah great...

Unknown May 28, 2017 at 5:34 PM

पढ़ कर अच्छा लगा,वो दिन कुछ अलग ही थे