लोकतन्त्र य गणतन्त्र एक् ऐसी व्यवस्था है। जो वर्तमान में पूरे विश्व पर छाई हुई है। इसी क्रम में भारत विश्व का सबसे बडा लोकतांत्रीक देश है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें 'लोक' या 'गण' ही 'तन्त्र' क निर्माण करता है। वास्तव में तो यह व्यवस्था राजतंत्र या तानाशाही की अपेक्षा एक श्रेष्ठ व्यवस्था सिद्घ् हुई है परन्तु वर्तमान सन्दर्भ में लोकतन्त्र की चरमराई हालत देखकर यह तथ्य सिद्घ करने में मुश्किलें पैदा हो सकती है। वर्तमान लोकतंत्र की हालत यह है 'लोक' भटक गया है तथा 'तंत्र' तार-तार हो रहा है। लोकतंत्र की इस हालत का जिम्मेवार 'लोक' या 'गण' स्वयं है। अब्राहम लिंकन ने कहा था कि लोकतंत्रा जनता का, जनता के लिए तथा जनता के द्वारा शासन है। लिंकन के अनुसार लोकतंत्र में सर्वेसर्वा जनता है। अत: यह कहें तो सत्य है कि 'तंत्र' की बदहाली की जिम्मेवारी 'लोक' पर है। जब 'लोक' स्वयं यह तय करता है कि 'तन्त्र' कैसा हो तब वर्तमान परिस्थितियों क बोझ भी वह स्वयं ग्रहण करेगा। राजनैतिक दल स्वयं जनता पर आश्रीत है। अत: कोई भी दल ऐसे बात करने में हिचकिचाहट महसूस करता है। केन्द्र में मिली जुली सरकार के लिए दोष राजनैतिक दलों का नहीं है। दल यह दोष एक-दूसरे पर मढने की कोशिश करते रहते हैं। वास्तव में तो राजनैतिक दल वैसा ही 'तंत्र' बना रहे हैं जैसा 'गण' ने चाहा है। अब यह निश्चित करने का उत्तरदायित्व जनता पर् है कि वह 'तन्त्र' स्थिर हो य अस्थिर। जब 'तन्त्र' की स्थिति डाँवाडोल होगी तो उसे बचाने के लिए राजनैतिक दल तिकडम लडाते है। फलस्वरुप सांसदों, विधायकों की खरीद-फरोख्त या दल-बदल आदि समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं अर्थात् 'तन्त्र' के तार जिर्ण-शीर्ण होने लगते है। अन्तोतगत्वा इनका कारण भी 'लोक' स्वयं हुआ। अत: तन्त्र को जिर्ण-शिर्ण होने से बचाने के लिए 'लोक्' को स्वयं जागना होगा। अगर ऐसा न हुआ तो परिस्थितियाँ और बदत्तर होती चली जाएगी। परिणामस्वरुप सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, व्यवहारिक तथा वैचारिक वातावरण में विष घुल जायेगा और देश बदनाम होग, देश की जनता बदनाम होगी। उदाहरणार्थ एक् पिता स्वयं शराब पिता है तो उसका पुत्र भी शराब पियेगा। इसका दोष बेटे को देना गलत होगा क्योंकि वह तो वहीं करेगा जैसा उसके घ्रर में होता है। इसमें बेटे से ज्यादा दोष पिता का है। गणतंत्र में इसी सन्दर्भ को देखा जाए तो 'गण' पिता है 'तन्त्र' पुत्र। जैसा पिता करेगा या कहेगा वैसा पुत्रा करेगा। अगर सुधरना होगा नहीं तो लोग यही कहेंगे 'जैसा बाप वैसा बेटा' और किसी की कही ये उक्ति सही हो जाएगी कि 'लोक्तन्त्र मुर्खों का शासन है।'
Article by Shyam Narayan Ranga
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